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________________ १२२० द्रव्यानुयोग-(२) दं. ३-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। (२) द्रव्यादि द्वार में चतुर्विध वेदनाप्र. भंते ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! वेदना चार प्रकार की कही गई है, यथा १. द्रव्यतः, २. क्षेत्रतः, ३. कालतः, ४. भावतः। प्र. दं.१. भंते ! क्या नैरयिक द्रव्यतः वेदना वेदते हैं यावत् भावतः वेदना वेदते हैं ? उ. गौतम ! वे द्रव्य से भी वेदना वेदते हैं यावत् भाव से भी वेदना वेदते हैं। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। दं.३-२४.एवं जाव वेमाणिया। -पण्ण.प.३५,सु.२०५५-२०५९ (२) दव्वओदारे चउव्विहा वेयणाप. कइविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! चउव्विहा वेयणा पण्णत्ता,तं जहा १.दव्वओ,२.खेत्तओ,३.कालओ,४. भावओ। प. दं.१.णेरइया णं भंते ! किं दव्वओ वेयणं वेदेति जाव किं भावओ वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! दव्वओ वि वेयणं वेदेति जाव भावओ वि वेयणं वेदेति। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिया। -पण्ण.प.३५,सु.२०६०-२०६२ (३) सारीराइ तिविहा वेयणाप. कइविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! तिविहा वेयणा पण्णत्ता,तं जहा १.सारीरा,२. माणसा,३.सारीरमाणसा। प. दं.१.णेरइया णं भंते ! किं सारीरं वेयणं वेदेति, माणसं वेयणं वेदेति, सारीरमाणसं वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! सारीरं पि वेयणं वेदेति, माणसं पि वेयणं वेदेति, सारीरमाणसं पि वेयणं वेदेति। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिया। णवरं-एगिदिय-विगलिंदिया सारीरं वेयणं वेदेति, णो माणसं वेयणं वेदेति,णो सारीरमाणसं वेयणं वेदेति। -पण्ण.प.३५, सु.२०६३-२०६५ (४) सायाइ तिविहा वेयणाप. कइविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! तिविहा वेयणा पण्णत्ता,तं जहा १.साया,२.असाया, ३.सायासाया। प. दं.१.णेरइया णं भंते ! किं सायं वेयणं वेदेति, असायं वेयणं वेदेति,सायासायं वेयणं वेदेति? उ. गोयमा !तिविहं पि वेयणं वेदेति। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिया। -पण्ण.प.३५, सु. २०६६-२०६८ (५) दुक्खाइ तिविहा वेयणाप. कइविहा णं भंते ! वेयणा पण्णता? उ. गोयमा ! तिविहा वेयणा पण्णत्ता,तं जहा १.दुक्खा,२.सुहा, ३. अदुक्खसुहा। प. दं. १. णेरइया णं भंते ! किं दुक्खं वेयणं वेदेति, सुह वेयणं वेदेति, अदुक्खमसुहं वेयणं वेदेति? उ. गोयमा ! दुक्ख पि वेयणं वेदेति, सुहं पि वेयणं वेदेति, अदुक्खमसुहं पिवेयणं वेदेति। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिया। -पण्ण.प.३५, सु.२०६९-२०७१ (३) शारीरिकादि त्रिविध वेदना प्र. भंते ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! वेदना तीन प्रकार की कही गई है, यथा १. शारीरिक, २. मानसिक, ३. शारीरिक-मानसिक। प्र. दं.१.भंते ! क्या नैरयिक शारीरिक वेदना वेदते हैं, मानसिक वेदना वेदते हैं या शारीरिक-मानसिक वेदना वेदते हैं? उ. गौतम ! वे शारीरिक वेदना भी वेदते हैं, मानसिक वेदना भी वेदते हैं और शारीरिक-मानसिक वेदना भी वेदते हैं। दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय शारीरिक वेदना वेदते हैं, वे मानसिक और शारीरिक-मानसिक वेदना नहीं वेदते हैं। (४) सातादि त्रिविध वेदनाप्र. भंते ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! वेदना तीन प्रकार की कही गई है, यथा १.साता, २. असाता, ३. साता-असाता। प्र. दं.१.भंते ! नैरयिक सातावेदना वेदते हैं, असातावेदना वेदते हैं या साता-असाता वेदना वेदते हैं? उ. गौतम ! तीनों प्रकार की वेदना वेदते हैं। दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। (५) दुक्खादि त्रिविध वेदनाप्र. भंते ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है? उ. गौतम ! वेदना तीन प्रकार की कही गई है, यथा १. दुःखा, २. सुखा, ३. अदुःख-सुखा। प्र. दं. १. भंते ! क्या नैरयिक जीव दुःख वेदना वेदते हैं, सुख वेदना वेदते हैं या अदुःख असुख वेदना वेदते हैं? उ. गौतम ! वे दुःख वेदना भी वेदते हैं, सुख वेदना भी वेदते हैं और अदुःख असुख वेदना भी वे देते हैं। द.२-२४. इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। १. विया.स.१०,उ.२,सु.५
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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