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________________ - ११९७ ) कर्म अध्ययन उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति। ५. तिरिक्खजोणियाउयस्स जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडिं चउहि वासेहिं अहियं बंधंति। एवं मणुयस्साउअस्स वि। ६-८.सेसं जहा एगिंदियाणं जाव अंतराइयस्स। -पण्ण.प.२३, उ.२,सु.१७१५-१७२० १५०. तेइंदियएसु अट्ठकम्मपयडीणं ठिईबंध परूवणं प. १. तेइंदिया णं भंते ! जीवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमपण्णासाए तिण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति। २-३. एवं जस्स जइ भागा ते तस्स सागरोवमपण्णासाए सह भाणियव्या। प. ४. तेइंदिया णं भंते ! मिच्छत्तमोहणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमपण्णासं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। ५. तिरिक्खजोणियाउयस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उत्कृष्ट वही पच्चीस सागरोपम की स्थिति बांधते हैं। ५. द्वीन्द्रिय जीव तिर्यंचयोनिकायु कर्म की जघन्य अन्तर्मुहूर्त की स्थिति बांधते हैं उत्कृष्ट चार वर्ष अधिक पूर्वकोटि वर्ष की स्थिति बांधते हैं। इसी प्रकार मनुष्यायु की बंध स्थिति भी कहनी चाहिए। ६-८. शेष प्रकृतियों की अन्तरायकर्म तक (पच्चीस सागरोपम से गुणित) एकेन्द्रियों के समान स्थिति जाननी चाहिए। १५०. त्रीन्द्रिय जीवों में आठ कर्म प्रकृतियों की स्थिति बंध का प्ररूपणप्र. १. भंते ! त्रीन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पचास सागरोपम के सात भागों में से तीन भाग (३/७) की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट वही पूर्ण पचास सागरोपम के (३/७) भाग की स्थिति बांधते हैं? २-३. इस प्रकार जिसके जितने भाग है, वे पचास सागरोपम के साथ कहने चाहिए। प्र. ४. भंते ! त्रीन्द्रिय जीव मिथ्यात्व-वेदनीय (मोहनीय) कर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं ? उ. गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पचास सागरोपम की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट वही पूर्ण पचास सागरोपम की स्थिति बांधते हैं। ५. त्रीन्द्रिय जीव तिर्यञ्चयोनिकायु कर्म की जघन्य अन्तर्मुहूर्त की स्थिति बांधते हैं। उत्कृष्ट सोलह रात्रि-दिवस तथा रात्रिदिवस के तीसरे भाग अधिक पूर्व कोटी की स्थिति बांधते हैं। इसी प्रकार मनुष्यायु की भी स्थिति जाननी चाहिए। (६-८) शेष प्रकृतियों की अन्तरायकर्म तक पचास सागरोपम से गुणित द्वीन्द्रियों के समान स्थिति जाननी चाहिए। १५१. चतुरिन्द्रिय जीवों में आठ कर्म प्रकृतियों की स्थिति बंध का प्ररूपणप्र. १. भंते ! चतुरिन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सौ सागरोपम के सात भागों में से तीन भाग (३/७) की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट वही पूर्ण सौ सागरोपम के (३/७) भाग की स्थिति बांधते हैं। इस प्रकार जिसके जितने भाग हैं वे उनके सौ सागरोपम के साथ कहने चाहिये। चतुरिन्द्रिय जीव तिर्यञ्चयोनिकायुकर्म की जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की स्थिति बांधते हैं। उक्कोसेणं पुव्वकोडिं सोलसहिं राइदिएहिं राइंदिय तिभागेण य अहियं बंधंति। एवं मणुस्साउयस्स वि। ६-८.सेसं जहा बेइंदियाणं जाव अंतराइयस्स। -पण्ण.प.२३, उ.२,सु.१७२१-१७२४ १५१. चउरिदिएसुअट्ठकम्मपयडीणं ठिईबंध परवणं प. १. चउरिंदिया णं भंते ! जीवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमसयस्स तिण्णि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। (२-३) एवं जस्स जइ भागा ते तस्स सागरोवमसतेण सह भाणियव्वा। (४) तिरिक्खजोणियाउअस्स कम्मस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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