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________________ ११९६ बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदिय जाइणामए जहण्णेणं सागरोवमस्स णव पणतीसतिभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। एवं जत्थ जहण्णगं दो सत्तभागा वा, चत्तारि वा, सत्तभागा अट्ठावीसइभागा भवंति। तत्थ णं जहण्णेणं तं चेव पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा भाणियव्वा, उक्कोसेणं तं चेव पाडेपुण्णं बंधंति, जत्थणं जहण्णेणं एगो वा, दिवड्ढी वा, सत्तभागो तत्य जहण्णेणं तं चेव भाणियव्यं, उकोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। ७. जसोकित्ति-उच्चागोयाणंजहण्णेणं सागरोवमस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति। प. ८. एगिदिया णं भंते ! जीवा अंतराइयस्स कम्मस्स किं बंधति? उ. गोयमा ! जहाणाणावरणिज्जस्स जहण्णेणं उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति। -पण्ण.प.२३, उ.२,सु.१७०५-१७१४ १४९. बेइदिएसु अह कम्मपयडीणं ठिईबंध परवणं द्रव्यानुयोग-(२) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जाति-नामकर्म जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के पैंतीस भागों में नव भाग (९/३५) की स्थिति बांधते हैं। उत्कृष्ट वही पूर्ण (९/३५) भाग की स्थिति बांधते हैं। जहां जघन्यतः २/७ भाग, ३/७,४/७ भाग (५/२८, ६/२८ एवं ७/२८) भाग कहे गये हैं, वहां के भाग जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम कहने चाहिए। उत्कृष्ट वे भाग परिपूर्ण समझने चाहिए। इसी प्रकार जहां जघन्य रूप से १/७ या ११/०/७ भाग कहे हैं, वहीं जघन्यतः वही भाग न्यून कहना चाहिए। उत्कृष्टतः वही भाग परिपूर्ण समझना चाहिए। ७. एकेन्द्रिय जीव यश कीर्तिमान और उच्चगोत्रकर्म जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से एक भाग (१/७) की स्थिति बांधते हैं। उत्कृष्ट वही पूर्ण (१/७) की स्थिति बांधते हैं। प्र. ८. भंते ! एकेन्द्रिय जीव अन्तरायकर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! अन्तराय कर्म की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति ज्ञानावरणीय कर्म के समान जाननी चाहिए। प. १. बेईदिया णं.भंते ! जीवा णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किंबंधति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमपणवीसाए तिण्णि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति। २. एवं णिदापंचगस्स वि। एवं जहा एगिंदियाणं भणियं तहा बेइंदियाण वि भाणियव्यं। १४९. द्वीन्द्रिय जीवों के आठ कर्मप्रकृतियों की स्थिति बंध का प्ररूपणप्र. १. भंते ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पच्चीस सागरोपम के सात भागों में तीन भाग (३/७) की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट वही पच्चीस सागरोपम के पूर्ण (३/७) की स्थिति बांधते हैं। २. इसी प्रकार निद्रापंचक की स्थिति के विषय में जानना चाहिए। इसी प्रकार जैसे एकेन्द्रिय जीवों की बन्धस्थिति का कथन किया है, वैसे ही द्वीन्द्रिय जीवों की बंध स्थिति का कथन करना चाहिए। विशेष-जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पच्चीस सागरोपम सहित स्थिति कहनी चाहिए। शेष कथन पूर्ववत् है। ३. जिन प्रकृतियों को एकेन्द्रिय नहीं बांधते, उनको ये भी नहीं बांधते हैं। प्र. ४.भंते ! द्वीन्द्रिय जीव मिथ्यात्ववेदनीय (मोहनीय) कर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पच्चीस सागरोपम की स्थिति बांधते हैं, णवर-सागरोवमपणवीसाए सह भाणियव्वा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, सेसंतं चेव, ३.जत्थ एगिदिया ण बंधंति तत्थ एए विण बंधंति। प. ४. बेइंदिया णं भंते ! जीवा मिच्छत्तमोहणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधति? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमपणवीसं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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