SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्म अध्ययन प. एगिदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तमोहणिज्जरस कम्मरस कि बंधति ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति । प. एगिदिया णं भंते! जीवा सम्मामिच्छतमोहणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति ? उ. गोयमा ! णत्थि किंचि बंधति प. एगिंदिया णं भंते! कसायबारसगस्स किं बंधति ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स चत्तारि सत्तभागे पलि ओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तं चैव पडिपुण्णं बंधति । एवं कोहसंजलणए विजाय लोभसंजलणए वि इत्थवेयस्स जहा सायावेयणिज्जस्स । एगिंदिया पुरिसवेयस्स कम्मस्स, सागरोवमस्स एक सत्तभागं असंखेज्जहभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं तं चैव पडिपुण्णं बंधति । एगिंदिया णपुंसगवेयस्स कम्मस्स, सागरोवमस्स दो सत्तभागे असंखेज्जभागेणं ऊणगं, जहणेण पलिओदमस्स जहणेणं पलिओवमस्स उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति । हास - रतीए जहा पुरिसवेयस्स । अरइ-भय-सोग-दुर्गछाए जहा णपुंसगयेयस्स । गैरइयाउअ देवाउअ णिरयगइणाम, देवगइणाम, देउखियसरीरणाम, आहारगसरीरणाम, रइयाणुपुव्विणाम, देवाणुपुव्विणाम, तित्थगरणाम एयाणि पयाणि ण बंधति । ५. तिरिक्खजोणियाउ अस्स जहणणेणं अंतोमुहतं. वाससहस्से हिं उक्कोसेणं पुव्यकोडी सत्तहिं वाससहस्सतिभागेणं य अहियं बंधति । एवं मनुस्साउ अस्स वि। ६. तिरियगइणामए जहा णपुंसगवेयस्स । मणुयगणामए जहा सायायेपणिज्जस्स । एगिंदियजाइणामए पंचेंदियजाइणामए य जहा पुंगवेयस्स, ११९५ प्र. भंते ! एकेन्द्रिय जीव मिथ्यात्ववेदनीय (मोहनीय) कर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं ? उ. गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम एक सागरोपम की स्थिति बांधते हैं। उत्कृष्ट वही पूर्ण स्थिति बांधते हैं। प्र. भंते! एकेन्द्रिय जीव सम्यग्मिथ्यात्ववेदनीय (मोहनीय) कर्म की कितने काल की स्थिति बांधते हैं? उ. गौतम ! वे बंध करते ही नहीं है। प्र. भंते ! एकेन्द्रिय जीव कषायद्वादशक की कितने काल की स्थिति बांधते है? उ. गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से चार भाग की स्थिति बांधते हैं। उत्कृष्ट वही पूर्ण (४/७) भाग की स्थिति बांधते हैं। इसी प्रकार संज्वलन क्रोध यावत् संज्वलन लोभ की स्थिति बांधते हैं। स्त्रीवेद की बंध स्थिति सातावेदनीय की बन्ध स्थिति के समान है। एकेन्द्रिय जीव पुरुषवेदकर्म जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से एक भाग (१/७) की स्थिति बांधते हैं। उत्कृष्ट वही पूर्ण (१/७) भाग की स्थिति बांधते हैं। एकेन्द्रिय जीव नपुंसकवेदक में जयन्यतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के सात भागों में से दो भाग (२/७) की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट वही पूर्ण (२/७) भाग की स्थिति बांधते हैं। हास्य और रति की बन्ध स्थिति पुरुषवेद के समान है। अरति, भय, शोक और जुगुप्सा की बन्ध स्थिति नपुंसकवेद के समान है। नरकायु, देवायु, नरकगतिनामकर्म देवगतिनामकर्म, वैकियशरीरनामकर्म, आहारकशरीरनामकर्म, नरकानुपूर्वीनामकर्म, देवानुपूर्वीनामकर्म तीर्थंकर नामकर्म इन नौ प्रकृतियों को एकेन्द्रिय जीव नहीं बांधते हैं। ५. एकेन्द्रिय जीव तिर्यञ्चायु की जघन्य अन्तर्मुहूर्त की स्थिति बांधते हैं, उत्कृष्ट सात हजार वर्ष तथा एक हजार वर्ष से तृतीय भाग अधिक पूर्व कोटि की स्थिति बांधते हैं। इसी प्रकार मनुष्यायु की भी बंध स्थिति है। ६. तिर्यञ्चगतिनामकर्म की बन्ध स्थिति नपुंसकवेद क समान है। मनुष्यगतिनामकर्म की बन्ध स्थिति सातावेदनीय के समान है। एकेन्द्रियजाति-नामकर्म और पंचेन्द्रियजाति- नामकर्म की बन्ध स्थिति नपुंसक वेद के समान जानना चाहिए।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy