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________________ ११७४ द्रव्यानुयोग-(२) प्र. दं. २०. भंते ! क्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक क्या नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? प. दं. २०. किरियावाई णं भंते ! पंचेंदिय-तिरिक्ख जोणिया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! जहा मणपज्जवनाणी। अकिरियावाई,अन्नाणियवाई,वेणइयवाई यचउव्विहं पिपकरेंति। जहा ओहिया तहा सलेस्सा वि।। उ. गौतम ! इनका आयु बंध मनःपर्यवज्ञानी के समान है। अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय जीव चारों प्रकार के आयु का बंध करते हैं। सलेश्य तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय का आयुबंध सामान्य जीवों के समान है। प्र. भंते ! कृष्णलेश्यी क्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक क्या नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु यावत् देवायु का बंध नहीं करते हैं। प. कण्हलेस्सा णं भंते ! किरियावाई पंचेंदिय-तिरिक्ख जोणिया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं - पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति। अकिरियावाई, अन्नाणियवाई वेणइयवाई य चउव्विहं पिपकरेंति। जहा कण्हलेस्सा एवं नीललेस्सा वि, काउलेस्सा वि। तेउलेस्सा जहा सलेस्सा, णवरं-अकिरियावाई,अन्नाणियवाई, वेणइयवाई य नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, देवाउयं पिपकरेंति। एवं पम्हलेस्सा वि सुक्कलेस्सा विभाणियव्वा। अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयबादी कृष्णलेश्यी चारों प्रकार के आयु का बंध करते हैं। नीललेश्यी और कापोतलेश्यी का आयु बंध कृष्णलेश्यी(पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक) के समान है। तेजोलेश्यी का आयु बंध सलेश्य के समान है। विशेष-अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी नैरयिक का आयु नहीं बांधते, वे तिर्यञ्च, मनुष्य और देव का आयु बांधते हैं। कण्हपक्खिया तिहिं समोसरणेहिं चउव्विहं पि आउयं पकरेंति। सुक्कपक्खिया जहा सलेस्सा। सम्मदिट्ठी जहा मणपज्जवनाणी तहेव वेमाणियाउयं पकरेंति। मिच्छट्ठिी जहा कण्हपक्खिया। सम्मामिच्छट्ठिीणं एक्कं पिपकरेंति जहेव नेरइया। नाणी जाव ओहिनाणी जहा सम्मट्ठिी । इसी प्रकार पद्मलेश्यी और शुक्ललेश्यी जीवों का आयुबंध कहना चाहिए। कृष्णपाक्षिक अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी जीव चारों ही प्रकार के आयु का बंध करते हैं। शुक्लपाक्षिक का आयु बंध सलेश्यी के समान है। सम्यग्दृष्टि जीव मनःपर्यवज्ञानी के समान वैमानिक देवों का आयु बंध करते हैं। मिथ्यादृष्टि का आयु बंध कृष्णपाक्षिक के समान है। सम्यग्मिध्यादृष्टि जीव नैरयिकों के समान एक ही प्रकार का आयु बंध करते हैं। ज्ञानी से अवधिज्ञानी पर्यन्त के जीवों का आयु बंध सम्यग्दृष्टि जीवों के समान है। अज्ञानी से विभंगज्ञानी पर्यन्त के जीवों का आयु बंध कृष्णपाक्षिकों के समान है। शेष अनाकारोपयुक्त पर्यन्त सभी जीवों का आयु बंध सलेश्यी जीवों के समान कहना चाहिए। दं. २१. जिस प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों का कथन कहा, उसी प्रकार मनुष्यों का आयु बंध भी कहना चाहिए। विशेष-मनःपर्यवज्ञानी और नो संज्ञोपयुक्त मनुष्यों का आयु बंध सम्यग्दृष्टि तिर्यञ्चयोनिकों के समान कहना चाहिए। अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया। सेसा जाव अणागारोवउत्ता सव्ये जहा सलेस्सा तहेव भाणियव्या। दं. २१. जहा पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं वत्तव्वया भणिया तहामणुस्साण विभाणियव्या, णवरं-मणपज्जवनाणी नो सन्नोवउत्ता य जहा सम्मद्दिट्ठी तिरिक्खजोणिया तहेव भाणियव्या।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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