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________________ कर्म अध्ययन ११७३ उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मणुस्साउयं पि पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। एवं अण्णाणियवाई वि, वेणइयवाई वि। प. सलेस्सा णं भंते ! नेरइया किरियावाई किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! एवं सव्वे वि नेरइया जे किरियावाई ते मणुस्साउयं एगंपकरेंति, जे अकिरियावाई, अण्णाणियवाई, वेणइयवाई, ते सव्वट्ठाणेसु वि, नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मणुस्साउयं पिपकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। णवर-सम्मामिच्छत्ते उवरिल्लेहिं दोहि वि समोसरणेहिं न किंचि विपकरेंति जहेवजीवपदे। दं.२-११.एवं जाव थणियकुमाराजहेव नेरइया। प. द. १२. अकिरियावाई णं भंते ! पुढविकाइया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। एवं अण्णाणियवाई वि। उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते हैं, किन्तु तिर्यञ्चयोनिकायु का बंध करते हैं, मनुष्यायु का बंध करते हैं, देवायु का बंध नहीं करते हैं। इसी प्रकार अज्ञानवादी और विनयवादी के नरकायु का बंध जानना चाहिए। प्र. भंते ! सलेश्यी क्रियावादी नैरयिक क्या नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं? उ. गौतम ! इसी प्रकार सभी नैरयिक जो क्रियावादी हैं, वे एक मनुष्यायु का ही बंध करते हैं, जो अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी नैरयिक हैं, वे सभी स्थानों में नरकायु का बंध नहीं करते, किन्तु तिर्यञ्चयोनिकायु का बंध करते हैं, मनुष्यायु का बंध करते हैं, देवायु का बंध नहीं करते हैं। विशेष-सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिक, अज्ञानवादी और विनयवादी इन दो समवसरणों में जीव स्थान के समान किसी भी प्रकार के आयु का बन्ध नहीं करते। दं. २-११. इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त आयु बन्ध का कथन नैरयिकों के समान है। प्र. द. १२. भंते ! अक्रियावादी पृथ्वीकायिक जीव क्या नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते, किन्तु तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु का बन्ध करते हैं, देवायु का बंध नहीं करते हैं, इसी प्रकार अज्ञानवादी (पृथ्वीकायिक) जीवों का आयु बंध कहना चाहिए। प्र. भंते ! सलेश्य अक्रियावादी पृथ्वीकायिक जीव नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! जो-जो स्थान पृथ्वीकायिक जीवों के हैं, उन-उन में मध्य के दो समवसरणों में पूर्व कथनानुसार मनुष्य और तिर्यञ्च दो प्रकार का आयु बांधते हैं। विशेष-तेजोलेश्या में किसी भी प्रकार का आयु बंध नहीं करते हैं। द.१३-१६. इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के आयु का बंध जानना चाहिए। दं. १४-१५. तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव, सभी स्थानों में मध्य के दो समवसरणों में नरकायु का बंध नहीं करते, किन्तु तिर्यञ्चयोनिक आयु का बंध करते हैं, वे मनुष्यायु और देवायु का बंध नहीं करते; दं. १७-१९. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों का आयु बंध पृथ्वीकायिक जीवों के समान है। विशेष-सम्यक्त्व और ज्ञान में वे एक भी आयु का बंध नहीं प. सलेस्सा णं भंते ! पुढविकाइया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! एवं जं जं पयं अत्थि पढविकाइयाणं तहिं तहिं मज्झिमेसु दोसु समोसरणेसु एवं चेव दुविहं आउयं पकरेंतिः णवरं-तेउलेस्साए न किं पिपकरेंति। दं. १३,१६. एवं आउक्काइयाण वि, वणस्सइकाइयाण वि। दं. १४-१५. तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं सब्वट्ठाणेसु मज्झिमेसु दोसु समोसरणेसु, नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, नो मणुस्साउयं पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। दं. १७-१९. बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाणं-जहा पुढविकाइयाणं, णवरं-सम्मत्त-नाणेसुन एक्कं पि आउयं पकरेंति। करते।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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