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________________ ( ११७२ - उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति, एवं वेणइयवाई वि। ५. णाणी, आभिणिबोहियनाणी य सुयनाणी य ओहिनाणी य जहा सम्मद्दिट्ठी। द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! वे न नरकायु का बंध करते हैं यावत् न देवायु का बंध करते हैं। इसी प्रकार विनयवादी जीवों का बन्ध जानना चाहिए। ५. क्रियावादी ज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी के आयु बन्ध का कथन सम्यग्दृष्टि के समान है। प्र. भंते ! मनःपर्यवज्ञानी क्रियावादी जीव क्या नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नैरयिक, तिर्यञ्च और मनुष्य का आयुबंध नहीं करते, किन्तु देवायु का बंध करते हैं। प. मणपज्जवनाणी णं भंते ! जीवा किरियावाई किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, नो मणुस्साउयं पकरेंति, देवाउयं पकरेंति। प. जइ देवाउयं पकरेंति किं भवणवासि देवाउयं पकरेंति जाव वेमाणिय देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो भवणवासिदेवाउयं पकरेंति, नो वाणमंतर देवाउयं पकरेंति, नो जोइसियदेवाउयं पकरेंति, वेमाणियदेवाउयं पकरेंति। केवलनाणी जहा अलेस्सा। ६.अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया। ७.सण्णासु चउसु वि जहा सलेस्सा। नो सन्नोवउत्ता जहा मणपज्जवनाणी। ८. सवेयगा जाव नपुंसगवेया जहा सलेस्सा। अवेयगा जहा अलेस्सा। ९.सकसायी जाव लोभकसायी जहा सलेस्सा। प्र. यदि वे देवायु का बंध करते हैं तो क्या भवनवासी देवायु का बंध करते हैं यावत् वैमानिक देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे भवनवासी, वाणव्यन्तर या ज्योतिष्क का देवायु बंध नहीं करते. किन्तु वैमानिक देवायु का बंध करते हैं। केवलज्ञानी के विषय में अलेश्यी के समान कहें। ६. अज्ञानी से विभंगज्ञानी पर्यन्त का आयुबन्ध कृष्णपाक्षिक के समान है। ७. चारों संज्ञाओं का आयु बंध सलेश्य जीवों के समान है। नो संज्ञोपयुक्त जीवों का आयु बंध मनःपर्यवज्ञानी के समान है। ८. सवेदी से नपुंसकवेदी पर्यन्त का आयु बन्ध सलेश्य जीवों के समान है। अवेदी जीवों का आयु बन्ध अलेश्य जीवों के समान है। ९. सकषायी से लोभकषायी पर्यन्त का आयु बंध सलेश्य जीवों के समान है। अकषायी जीवों का आयु बंध अलेश्य के समान है। १०.सयोगी से काययोगी पर्यन्त का आयुबंध सलेश्य जीवों के समान है। अयोगी जीवों का आयु बंध अलेश्य के समान है। ११. साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त का आयुबंध सलेश्य जीवों के समान है। १२९. क्रियावादी आदि चारों समवसरणगत चौबीस दंडकों में ग्यारह स्थानों द्वारा आयु बंध का प्ररूपणप्र. दं.१.भंते ! क्रियावादी नैरयिक जीव क्या नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे नरकायु का बंध नहीं करते हैं, तिर्यञ्चयोनिकायु का भी बंध नहीं करते हैं, किन्तु मनुष्यायु का बंध करते हैं, देवायु का बंध नहीं करते हैं। प्र. भंते ! अक्रियावादी नैरयिक जीव क्या नरकायु का बंध करते हैं यावत् देवायु का बंध करते हैं? अकसायी जहा अलेस्सा। १०.सजोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा। अजोगी जहा अलेस्सा। ११. सागारोवउत्ता य अणागारोवउत्ता य जहा सलेस्सा। -विया. स.३०, उ. १, सु. ३३-६४ १२९. किरियावाइयाइ चउव्विहसमोसरणगएसु चउवीसदंडएस एक्कारसठाणेहिं आउय बंध परूवणंप. दं.१. किरियावाई णं भंते ! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयं पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। प. अकिरियावाई णं भंते! नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति जाव देवाउयं पकरेंति?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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