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________________ ११६८ द्रव्यानुयोग-(२) प. असण्णी णं भंते ! जीवे प्र. भंते ! असंज्ञी जीव १. क्या नरकायु का बंध करता है किं नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं पकरेइ? यावत् ४. देवायु का बंध करता है? उ. हता, गोयमा ! नेरइयाउयं पि पकरेइ जाव देवाउयं पि उ. हां, गौतम ! वह नरकायु का भी बंध करता है यावत् देवायु पकरेइ। का भी बंध करता है। नेरइयाउयं पकरेमाणे जहण्णेणं दस वाससहस्साई, नरकायु का बंध करने पर जघन्यतः दस हजार वर्ष का बंध करता है, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेइ। उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग का बंध करता है। तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, तिर्यञ्चयोनिकायु का बंध करने पर जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त का बंध करता है, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेइ। उत्कृष्टतः पल्योपम के असंख्यातवें भाग का बंध करता है। मणुस्साउए वि एवं चेव। मनुष्यायु का बंध भी इसी प्रकार है, देवाउयं पकरेमाणे जहा नेरइया। देवायु का बंध नरकायु के समान है। -विया.स.१, उ.२, सु. २०-२१ १२६.असण्णिआउयस्स अप्पाबहुयं १२६. असंज्ञी आयुका अल्पबहुत्वप. एयस्सणं भंते !१.नेरइय असण्णियाउयस्स, प्र. भंते !१. नारक-असंज्ञी-आयु, २.तिरिक्खजोणियअसण्णियाउयस्स, २. तिर्यञ्चयोनिक असंज्ञी-आयु, ३. मणुस्स असण्णियाउयस्स, ३. मनुष्य-असंज्ञी आयु, ४. देव असण्णियाउयस्सय ४. देव-असंज्ञी-आयु, कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिए वा? इनमें कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गोयमा !१.सव्वत्थोवे देव असण्णियाउए, उ. गौतम ! १. देव-असंज्ञी-आयु सबसे कम है, २.मणुस्स असण्णियाउए असंखेज्जगुणे, २.(उनसे) मनुष्य-असंज्ञी-आयु असंख्यातगुणी है, ३.तिरिक्खजोणिय असण्णियाउए असंखेज्जगुणे, ३.(उनसे) तिर्यञ्च-असंज्ञी-आयु असंख्यातगुणी है, ४. नेरइय असण्णियाउए असंखेज्जगुणे। ४. (उनसे) भी नारक-असंज्ञी-आयु असंख्यातगुणी है। __-विया. स. १, उ.२, सु.२२ १२७.एगंतबाल-पंडित-बालपंडित मणुस्साणं आउयबंध परूवणं- १२७. एकांतबाल, पंडित और बालपंडित मनुष्यों के आयु बंध का प्ररूपणप. १. एगंतबाले णं भंते ! मणुस्से प्र. १. भंते ! क्या एकान्त-बाल (मिथ्यादृष्टि) मनुष्य, १. किं नेरइयाउयं पकरेइ, १. नरकायु का बंध करता है, २. तिरियाउयं पकरेइ, २. तिर्यञ्चायु का बंध करता है, ३. मणुस्साउयं पकरेइ, ३. मनुष्यायु का बंध करता है, ४. देवाउयं पकरेइ, ४. देवायु का बंध करता है? १. नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जइ, १. क्या वह नरकायु बांधकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है, २. तिरियाउयं किच्चा तिरिएसु उववज्जइ, २. तिर्यञ्चायु बांधकर तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है, ३. मणुस्साउयं किच्चा मणुस्सेसु उववज्जइ, ३. मनुष्यायु बांधकर मनुष्यों में उत्पन्न होता है, ४. देवाउयं किच्चा देवलोगेसु उववज्जइ? ४. देवायु बांधकर देवलोक में उत्पन्न होता है? उ. गोयमा ! एगंतबाले णं मणुस्से उ. गौतम ! एकान्त बाल मनुष्य१. नेरइयाउयं पिपकरेइ, १. नरकायु का भी बंध करता है, २. तिरियाउयं पिपकरेइ, २. तिर्यञ्चायु का भी बंध करता है, ३ मणुयाउयं पिपकरेइ, ३. मनुष्यायु का भी बंध करता है, ४. देवाउयं पिपकरेइ। ४. देवायु का भी बंध करता है। १. णेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जइ, १. नरकायु बांधकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है, २. तिरियाउयं किच्चा तिरिएसु उववज्जइ, २. तिर्यञ्चायु बांधकर तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है, १. पण्ण प.२०,सु.१४७२ २. पण्ण.प.२०,सु.१४७३
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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