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________________ कर्म अध्ययन ११६७ जं समयं इहभवियाउयं पकरेइ, णो तं समय परभवियाउयं पकरेइ। जं समयं परभवियाउयं पकरेइ, णो तं समयं इहभवियाउयं पकरेइ। इहभवियाउयस्स पकरणयाए, णो परभवियाउयं पकरेइ, परभवियाउयस्स पकरणयाए, णो इहभवियाउयं पकरेइ। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पकरेइ, तं जहा१. इहभवियाउयं वा,२.परभवियाउयं वा। __-विया. स. १, उ. ९, सु.२० १२३. जीव-चउवीसदंडएसु आभोग अणाभोगनिव्वत्तियाउयत्त परूवणंप. जीवा णं भंते ! किं आभोगनिव्वत्तियाउया, अणाभोगनिव्वत्तियाउया? | उ. गोयमा ! नो आभोगनिव्वत्तियाउया, अणाभोग निव्वत्तियाउया। जिस समय इस भव की आयु का बंध करता है, उस समय परभव की आयु का बंध नहीं करता है, जिस समय परभव की आयु का बंध करता है, उस समय इस भव की आयु का बंध नहीं करता है, इस भव की आयु का बंध करते हुए परभव की आयु का बंध नहीं करता है, परभव की आयु का बंध करते हुए इस भव की आयु का बंध नहीं करता है, इस प्रकार एक जीव एक समय में एक आयु का बंध करता है, यथा१. इस भव की आयु का या २. परभव की आयु का। दं.१-२४ एवं नेरइया जाव वेमाणिया। -विया.स.७, उ.६,सु.१२-१४ १२४. जीव-चउवीसदंडएसु सोवक्कम निरुवक्कम आउय परूवणंप. जीवाणं भंते ! किं सोवक्कमाउया, निरुवक्कमाउया? उ. गोयमा ! जीवा सोवक्कमाउया वि, निरुवक्कमाउया वि। प. दं. १ नेरइया णं भंते ! किं सोवक्कमाउया निरुवक्कमाउया। उ. गोयमा ! नेरइया नो सोवक्कमाउया, निरुवक्कमाउया। १२३. जीव-चौबीसदंडकों में आभोग अनाभोगनिवर्तित आयु का प्ररूपणप्र. भंते ! जीव आभोगनिवर्तित आयुष्य वाले हैं या अनाभोगनिर्वर्तित आयुष्य वाले हैं? उ. गौतम ! जीव आभोगनिवर्तित आयु (जानते हुए बंध करने) वाले नहीं हैं, किन्तु अनाभोगनिवर्तित आयु (न जानते हुए बंध करने) वाले हैं। दं.१-२४ इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त आय के विषय में कहना चाहिए। १२४. जीव चौबीसदंडकों में सोपक्रम-निरुपक्रम आयु का प्ररूपणप्र. भंते ! जीव सोपक्रम आयु वाले होते हैं या निरुपक्रम आयु वाले होते हैं? उ. गौतम ! जीव सोपक्रम आयु वाले भी होते हैं और निरुपक्रम आयु वाले भी होते हैं। प्र. दं.१. नैरयिक सोपक्रम आयु वाले होते हैं या निरुपक्रम आयु वाले होते हैं? उ. गौतम ! नैरयिक सोपक्रम आयु वाले नहीं होते किन्तु निरुपक्रम आयु वाले होते हैं। दं.२-११. इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए। दं.१२ पृथ्वीकायिकों का आयुऔधिक जीवों के समान है। दं.१३-२१ इसी प्रकार मनुष्य पर्यन्त कहना चाहिए। दं. २२-२४ वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों का आयु सम्बन्धी कथन नैरयिकों के समान है। १२५. असंज्ञी आयु के भेद और बंध स्वामित्व प्र. भंते ! असंज्ञी आयु कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! असंज्ञी आयु चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. नैरयिक-असंज्ञी आयु, २. तिर्यञ्चयोनिक-असंज्ञी आयु, ३. मनुष्य-असंज्ञी आयु, ४. देव-असंज्ञी आयु। दं.२-११ एवं जाव थणियकुमारा। दं. १२ पुढविकाइया जहा जीवा। दं.१३-२१ एवं जावमणुस्सा। दं. २२-२४ वाणमंतर जोइसिय वेमाणिया जहा नेरइया। -विया. स.२०, उ.१०, सु.१-६ १२५. असण्णिआउयस्सभेया बंध सामित्तं य प. कइविहे णं भंते ! असण्णियाउए पण्णत्ते? उ. गोयमा !चउविहे असण्णियाउए पण्णत्ते,तं जहा १. नेरइय असण्णियाउए, २. तिरिक्खजोणिय-असण्णियाउए, ३. मणुस्स-असण्णियाउए, ४. देव-असण्णियाउए।' १. पण्ण.२०.सु.१४७१
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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