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________________ ११६६ १. तत्थ णं जे ते निरुवक्कमाउया ते णियमा तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। २. तत्थ णं जे ते सोवक्कमाउया ते णं सिय तिभागे परभवियाउयं पकरेंति। सिय तिभाग-तिभागे य परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभाग-तिभाग-तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। दं.२१.एवं मणूसा वि। द. २२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया। -पण्ण.प.६, सु.६७७-६८३ १२२. एगसमएदुविहाउय बंध-णिसेहो प. अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेंति-एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पकरेइ,तं जहा१. इहभवियाउयंच, २. परभवियाउयं च। जं समयं इहभवियाउयं पकरेइ,तं समय परभवियाउयं पकरेइ, जं समयं परभवियाउयं पकरेइ,तं समयं इहभवियाउयं पकरेइ। इहभवियाउयस्स पकरणयाए परभवियाउयं पकरेइ, द्रव्यानुयोग-(२) १. इनमें से जो निरुपक्रम आयु वाले हैं, वे नियमतः आयु का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बंध करते हैं। २. इनमें से जो सोपक्रम आयु वाले हैं, वे कदाचित् आयु के तीसरे भाग में परभव की आयु का बन्ध करते हैं, कदाचित् आयु के तीसरे भाग के, तीसरे भाग में परभव की आयु का बन्ध करते हैं, कदाचित् आयु के तीसरे भाग के, तीसरे भाग, का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बंध करते हैं। दं. २१. इसी प्रकार मनुष्यों का भी आयु बन्ध काल जानना चाहिए। दं. २२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के आयु बन्ध का कथन नैरयिकों के समान (छह मास शेष रहने पर) कहना चाहिए। १२२. एक समय में दो आयु बंध का निषेध प्र. भंते ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् इस प्रकार की प्ररूपणा करते हैं कि-एक जीव एक समय में दो आयु का बन्ध करता है, यथा१. इस भव की आयु का, २. परभव की आयु का, जिस समय इस भव का आयु बंध करता है, उस समय परभव का आयु बंध करता है, जिस समय परभव का आयु बंध करता है, उस समय इस भव का आयु बंध करता है। इस भव की आयु का बंध करते हुए परभव की आयु का बंध करता है, परभव की आयु का बंध करते हुए इस भव की आयु का बंध करता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में दो आयु का बंध करता है,यथा-१. इस भव की आयु का,२.परभव की आयु का। भंते ! क्या वे यह कैसे कहते हैं? उ. गौतम ! अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करता हैं किएक जीव एक समय में दो आयु का बंध करते हैं-इस भव की आयु का और परभव की आयु का, उन्होंने जो ऐसा कहा है, वह मिथ्या कहा है। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करता हूँ कि ‘एक जीव एक समय में एक आयु का बंध करता है, यथा१.इस भव की आयु का (मनुष्य-मनुष्य का) या २. परभव की आयु का', परभवियाउयस्स पकरणयाए इहभवियाउयं पकरेइ। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पकरेइ, तं जहा-१.इहभवियाउयंच,२. परभवियाउयं च। से कहमेय भंते ! एवं वुच्चइ? उ. गोयमा !जणं ते अण्णउत्थिया एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेंति, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पकरेइ, इहभवियाउयं च,परभवियाउयं च। जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमिएवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एग आउयं पकरेइ, तं जहा१. इहभवियाउयं वा,२ २. परभवियाउयं वा। १. ठाणं अ.६,सु.५३६/४-८ २. यहां इहभव का अर्थ है मनुष्य-मनुष्य का आय, तिर्यञ्च-तिर्यञ्च का आय. पृथ्वीकायिक-पृथ्वीकायिक का आय। आयु तो सदा आगे के भव का ही बांधा जाता है। वर्तमान भव का आयु तो जीव पूर्व भव में ही बांध कर आता है। अतः इहभव से वर्तमान भव का आयु बांधना न समझें।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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