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________________ कर्म अध्ययन ७. अणागारोवउत्ता संखेज्जगुणा, ८. सागारोवउत्ता संखेज्जगुणा, ९. नो इंदियउवउत्ता विसेसाहिया, १०. असायावेयगा विसेसाहिया, ११. असमोहया विसेसाहिया, । ११६५ ) ७. (उनसे) अनाकारोपयुक्त संख्यातगुणे हैं, ८. (उनसे) साकारोपयुक्त संख्यातगुणे हैं, ९. (उनसे) नो इन्द्रियोपयुक्त विशेषाधिक हैं, १०. (उनसे) असातावेदक विशेषाधिक हैं, ११. (उनसे) समुद्घात न करने वाले जीव विशेषाधिक हैं, १२. (उनसे) जागृत विशेषाधिक हैं, १३. (उनसे) पर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं, १४. (उनसे) आयुकर्म के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। १२. जागरा विसेसाहिया, १३. पज्जत्तगा विसेसाहिया, १४. आउयस्स कम्मस्स अबंधगा विसेसाहिया। -पण्ण.प.३.सु.३२५ १२१. चउवीसदंडएसुपरभवियाउय बंधकाल परवणंप. दं. १. नेरइया णं भंते ! कइभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! णियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। दं.२-११ एवं असुरकुमारा विजाव थणियकुमारा वि। प. दं. १२. पुढविकाइया णं भंते ! कइभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! पुढविकाइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. सोवक्कमाउया य, २. निरुवक्कमाउया य। १. तत्थ णं जे ते निरुवक्कमाउया ते णियमा तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। २. तत्थं णं जे ते सोवक्कमाउया ते सिय तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागा-तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागा-तिभागा-तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। दं. १३-१९ आउ-तेउ-वाउ-वणस्सइकाइयाणं बेइंदिय तेइंदिय-चउरिंदियाण वि एवं चेव। १२१. चौबीसदंडकों में परभव की आयु बंध काल का प्ररूपण प्र. दं.१.भंते ! आयु का कितना भाग शेष रहने पर नैरयिक परभव की आयु का बंध करते हैं? उ. गौतम !(वे) नियमतः छह मास आयु शेष रहने पर परभव की आयु का बंध करते हैं। दं. २-११ इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक (आयुबन्ध काल का कथन करना चाहिए।) प्र. दं. १२. भंते ! पृथ्वीकायिक जीव आयु का कितना भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. सोपक्रम आयु वाले, २. निरुपक्रम आयु वाले। १. इनमें से जो निरुपक्रम आयु वाले हैं, वे नियमतः आयुष्य का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं, २. इनमें जो सोपक्रम आयु वाले हैं, वे कदाचित् आयु के तीसरे भाग में परभव की आयु का बन्ध करते हैं, कदाचित् आयु के तीसरे भाग के तीसरे भाग के शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं, कदाचित् आयु के तीसरे भाग के तीसरे भाग का तीसरा भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं। दं. १३-१९. अकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिकों तथा द्वीन्द्रिय , त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रियों क आयु बंध का कथन भी इसी प्रकार है। प्र. दं.२०. भंते ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक आयु का कितना भाग शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं ? उ. गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. संख्यातवर्षायुष्क, २. असंख्यातवर्षायुष्क। १. उनमें से जो असंख्यात वर्ष की आयु वाले हैं, वे नियमतः छह मास आयु शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं, २. उनमें से जो संख्यातवर्ष की आयु वाले हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. सोपक्रम आयु वाले, २. निरुपक्रम आयु वाले। प. दं. २०. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया णं भंते ! कइभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति? उ. गोयमा ! पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. संखेज्जवासाउया य, २. असंखेज्जवासाउया य। १. तत्थ णं जे ते असंखेज्जवासाउया ते नियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। २. तत्थ णं जे ते संखेज्जवासाउया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा१. सोवक्कमाउया य, २. निरुवक्कमाउया य।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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