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________________ कर्म अध्ययन ११६९ ३. मणुस्साउयं किच्चा मणुस्सेसु उववज्जइ, ४. देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ। प. २.एगंतपंडिए णं भंते ! मणुस्से किं नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं पकरेइ, नेरइयाउयं किच्चा नेरइएस उवज्जइ जाव देवाउयं किच्चा देवलोएसु उववज्जइ? उ. गोयमा ! एगंतपंडिएणं मणुस्से आउयं सिय पकरेइ, सिय नो पकरेइ। जइ पकरेइ-नो नेरइयाउयं पकरेइ, नो तिरियाउयं पकरेइ, नो मणुस्साउयं पकरेइ, देवाउयं पकरेइ। नो नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जइ, नो तिरियाउयं किच्चा तिरिएसु उववज्जइ, नो मणुस्साउयं किच्चा मणुस्सेसु उववज्जइ, देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ'एगंतपंडिए मणुस्सेनो नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं पकरेइ, नो नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ? उ. गोयमा ! एगंत पंडियस्स णं मणुस्सस्स केवलमेव दो गइओ पण्णायंति,तं जहा१. अंतकिरिया चेव, २. कप्पोववत्तिया चेव। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"एगंतपंडिए मणुस्से-जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ।" प. ३. बालपंडिए णं भंते ! मणुस्से किं नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं पकरेइ, ३. मनुष्यायु बांधकर मनुष्यों में उत्पन्न होता है, ४. देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है। प्र. २. भंते ! एकान्त पण्डित मनुष्य क्या नरकायु का बंध करता है यावत् देवायु का बंध करता है? क्या नरकायु बांधकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है यावत् देवायु बांधकर देवलोक में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! एकान्त पण्डित मनुष्य, कदाचित् आयु का बंध करता है और कदाचित् आयु का बंध नहीं करता। यदि आयु का बंध करता है तो देवायु का बंध करता है, किन्तु नरकायु, तिर्यञ्चायु और मनुष्यायु का बंध नहीं करता। वह नरकायु का बंधन करने से नारकों में उत्पन्न नहीं होता, तिर्यञ्चायु का बंध न करने से तिर्यञ्चों में उत्पन्न नहीं होता, मनुष्यायु का बंध न करने से मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होता, किन्तु देवायु का बंध करने से देवों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "एकान्त पंडित मनुष्य नरकायु का बंध नहीं करता यावत् देवायु का बंध करता है, वह नरकायु का बंधन करने से नारकों में उत्पन्न नहीं होता यावत् देवायु का बन्ध करने से देवों में उत्पन्न होता है?" उ. गौतम ! एकान्त पण्डित मनुष्य की केवल दो गतियां कही गई हैं, यथा१. अन्तक्रिया, २. कल्पोपपत्तिका (सौधर्मादि कल्पों में उत्पन्न होना)। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"एकान्त पण्डित मनुष्य यावत् देवायु बांध कर देवों में उत्पन्न होता है।" प्र. ३. भंते ! बाल पण्डित मनुष्य क्या नरकायु का बंध करता है यावत् देवायु का बंध करता है? क्या नरकायु बांधकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है यावत् देवायु बांधकर देवलोक में उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! वह नरकायु का बंध नहीं करता यावत् देवायु का बंध करता है, वह नरकायु बांधकर नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होता यावत् देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि बालपण्डित मनुष्य-नरकायु का बंध नहीं करता यावत् देवायू का बंध करता है वह नरकायु बांधकर नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होता यावत देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! बाल पण्डित मनुष्य नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ? उ. गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं पकरेइ, नो नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ। प. सेकेणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ बालपंडिए मणुस्से-नो नेरइयाउयं पकरेइ जाव देवाउयं पकरेइ, नेरइयाउयं किच्चा नेरइएसु उववज्जइ जाव देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ?" उ. गोयमा ! बालपंडिएणं मणुस्से
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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