SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ११५९ ) अद्धायु दो प्रकार के जीवों की कही गई है, यथा१. मनुष्यों की, २. पंचेंन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों की। भवायु दो प्रकार के जीवों की कही गई है, यथा१. देवों की, २. नैरयिकों की। कर्म अध्ययन दोण्हं अद्धाउए पण्णत्ते,तं जहा१. मणुस्साणं चेव, २. पंचिंदियतिरक्खजोणियाणं चेव। दोहं भवाउए पण्णत्ते,तं जहा१. देवाणं चेव, २. णेरइयाणंचेव। -ठाणे अ.२, उ.३,सु.७९(१९-२१) १०९. अहाउयपालणं संवट्टण सामित्तं य दो अहाउयं पालेंति,तं जहा१. देवच्चव, २. णेरइयच्चेव॥ दोण्हं आउय-संवट्टए पण्णत्ते,तं जहा१. मणुस्साणं चेव, २. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। -ठाणं अ.२, उ.३, सु.७९(२३-२४) ११०. जीव-चउवीसदंडएसु आउकम्मस्स कज्जाइंप. दं.१.जीवे णं भंते ! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते ! किं साउए संकमइ, निराउए संकमइ? १०९. पूर्णायु के पालन और संवर्तन का स्वामित्व दो यथायु (पूर्णायु) का पालन करते हैं, यथा१. देव, २. नैरयिक। दो के आयुष्य का संवर्तन (अकाल मरण) कहा गया है, यथा१. मनुष्यों के, २. पंचेंन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के। है? उ. गोयमा ! साउए संकमइ, नो निराउए संकमइ। प. से णं भंते ! आउए कहिं कडे ? कहिं समाइण्णे? उ. गोयमा ! पुरिमे भवे कडे,पुरिमे भवे समाइण्णे। दं.२-२४ एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं दंडओ। -विया.स.५, उ.३,सु.२-४ १११. जोणी सावेक्खं आउबंध परूवणं प. से नूणं भंते ! जे णं भविए जं जोणिं उववज्जित्तए से तमाउयं पकरेइ,तं जहानेरइयाउयं वा जाव देवाउयं वा? ११०. जीव-चौबीस दंडकों में आयु कर्म का कार्य प्र. दं.१. भंते! जो जीव नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य हैं तो भंते ! क्या वह जीव यहीं से आयु-युक्त होकर नरक में जाता है या आयु-रहित होकर जाता है? उ. गौतम ! वह आयु-युक्त होकर नरक में जाता है, आयु रहित होकर नहीं जाता। प्र. भंते ! उस जीव ने वह आयु कहां बाँधा और कहां समाचरण किया? उ. गौतम ! उस जीव ने वह आयु-पूर्वभव में बांधा और पूर्वभव में समाचरण किया। दं. २-२४ इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक सभी दण्डकों में कहना चाहिए। १११. योनि सापेक्ष आयु बंध का प्ररूपण प्र. भंते ! जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होने योग्य है, क्या वह उस योनि के आयु का बंध करता है? जैसे-नरक योनि में उत्पन्न होने वाला क्या नरक योनि के आयु का बंध करता है यावत् देवयोनि में उत्पन्न होने वाला क्या देवयोनि के आयु का बंध करता है? उ. हां, गौतम ! जो जीव जिस योनि में उत्पन्न होने योग्य है, वह जीव उस योनि की आयु का बंध करता है। जैसे-नरक योनि में उत्पन्न होने योग्य जीव नरकयोनि की आयु का बंध करता है यावत् देवयोनि में उत्पन्न होने योग्य जीव देवयोनि की आयु का बंध करता है। जो जीव नरकयोनि की आयु का बंध करता है, वह सात प्रकार की नैरयिक पृथ्वियों में से किसी एक की आयु का बंध करता है, यथा१. रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक की आयु का यावत् ७. अधःसप्तम पृथ्वी के नैरयिक की आयु का। जो जीव तिर्यञ्चयोनिक की आयु का बंध करता है, वह पांच प्रकार के तिर्यञ्चों में से किसी एक प्रकार की आयु का बंध करता है, यथा१. एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकायु का यावत् ५. पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकायु का। उ. हता, गोयमा ! जे णं भविए जं जोणिं उववज्जित्तए से तमाउयं पकरेइ,तं जहानेरइयाउयं वा जाव देवाउयं वा। नेरइयाउयं पकरेमाणे सत्तविहं पकरेइ, तं जहा १. रयणप्पभापुढविनेरइयाउयं वा जाव ७. अहेसत्तमा पुढविनेरइयाउयं वा। तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे पंचविहं पकरेइ, तं जहा १. एगिदिय-तिरिक्खजोणियाउयं वा जाव ५. पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाउयं वा।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy