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________________ ११६० मणुस्साउयं पकरेमाणे दुविहं पकरेइ, तं जहा १. सम्मुच्छिममणुस्साउयं २. गब्मजमणुस्साउयं । देवाउयं पकरेमाणे चउव्विहं पकरेह, तं जहा १. भवणवासीदेवाउयं जाव ४. वेमाणियदेवाउयं । -विया. स. ५, उ. ३, सु. ५ ११२. अप्पाउय दीहाउय सुभासुभदीहाउय कम्मबंधहेऊ परूवणं प. कहं णं भंते! जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ? उ. गोयमा ! तिहिं ठाणेहिं, जीवा अप्पाउयत्ताए कम्मं पकरेति तं जहा १. पाणे अइवाएत्ता, २. मुसं वइत्ता, " ३. तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं, असण- पाण- खाइम साइमेणं पडिलाभेत्ता, प. कहणं भंते जीवा दीहाउयत्ताए कम्मं पकरेति ? उ. गोयमा तिहि ठाणेहिं जीवा दीहाउयत्ताए कम्म पकरैति तं जहा " १. नो पाणे अइवाइत्ता, २. नो मुखं वइत्ता, ३. तहारूवं समणं वा, माहणं वा, फासुएसणिज्जेणं असण-पाण- खाइम- साइमेणं पडिलाभेत्ता । प. कहं णं भंते! जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेति ? उ. गोयमा ! तिहि ठाणेहिं जीवा असुभदीहाउयत्ताए कम्म पकरेति तं जहा १. पाणे अइवाइत्ता, २. मुर्ख बहता, ३. तहारूवं समणं वा माहणं वा, हीलिता, निदित्ता, खिंसित्ता, गरहित्ता, अवमन्नित्ता, अन्नयरेणं अणुणेणं अपीइकारएणं असण-पाण-खाइमसाइमेणं पडिलाभेत्ता, प. कहं णं भंते! जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्मं पकरेंति ? उ. गोयमा ! तिहिं ठाणेहिं जीवा सुभदीहाउयत्ताए कम्म पकरेति । तं जहा १. नो पाणे अइवाइत्ता, १. ठाणं अ. ३, उ. १, सु. १३३ द्रव्यानुयोग - (२) जो जीव मनुष्य योनि की आयु का बंध करता है, वह दो प्रकार के मनुष्यों में से किसी एक की आयु का बंध करता है, यथा १. सम्मूर्च्छिम मनुष्यायु का या २. गर्भज मनुष्यायु का । जो जीव देवयोनि की आयु का बंध करता है, वह चार प्रकार के देवों में से किसी एक देवायु का बंध करता है, यथा १. भवनपति देवायु का यावत् ४. वैमानिक देवायु का । ११२. अल्पायु-दीर्घायु शुभाशुभदीर्घायु के कर्म बंध हेतुओं का प्ररूपण प्र. भंते ! जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म किन कारणों से बांधते हैं ? उ. गौतम ! तीन कारणों से जीव अल्पायु के कारणभूत कर्म बांधते है, , यथा १. प्राणियों की हिंसा करके, २. असत्य बोलकर, ३. तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक, अनेषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार से प्रतिलाभित कर । प्र. भंते ! जीव दीर्घायु के कारणभूत कर्म किन कारणों से बांधते हैं? उ. गौतम ! तीन कारणों से जीव दीर्घायु के कारणभूत कर्म बांधते हैं, यथा १. प्राणातिपात न करने से, २. असत्य न बोलने से, ३. तथारूप श्रमण और माहन को प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार से प्रतिलाभित करने से। प्र. भंते! जीव अशुभ दीर्घायु के कारणभूत कर्म किन कारणों से बांधते हैं ? उ. गौतम ! तीन कारणों से जीव अशुभ दीर्घायु के कारणभूत कर्म बांधते हैं, यथा १. प्राणियों की हिंसा करके, २. असत्य बोल कर, ३. तथारूप समण या माहन की हीलना, निन्दा, खिंसना झिड़काना, गर्हा एवं अपमान करके, एवं (उपेक्षा से) अमनोज्ञ या अप्रीतिकार अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार से प्रतिलाभित करके । प्र. भंते! जीव शुभ दीर्घायु के कारणभूत कर्म किन कारणों से बांधते हैं ? उ. गौतम ! तीन कारणों से जीव शुभ दीर्घायु के कारणभूत कर्म बांधते हैं, यथा १. प्राणियों की हिंसा न करने से,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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