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________________ कर्म अध्ययन उ. गोयमा ! अट्ठकम्मपयडीओ पण्णत्ताओ,तं जहा १.नाणावरणिज्जंजाव ८.अंतराइयं। प. पज्जत्त बायर-पुढविकाइयाणं भंते ! कइ कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! एवं चेव। एवं एएणं कमेणं जाव बायर-वणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाण त्ति। प. अपज्जत्त सुहुम-पुढविकाइयाणं भंते ! कइ कम्मपयडीओ बंधति? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधगा वि,अट्ठविहबंधगा वि। सत्त बंधमाणा आउयवज्जाओ सत्त कम्मपयडीओ बंधति। अट्ठ बंधमाणा पडिपुण्णाओ अट्ठ कम्मपयडीओ बंधति। प. पज्जत्त-सुहुम-पुढविकाइया णं भंते ! कइ कम्मपयडीओ बंधति? उ. गोयमा ! एवं चेव। एवं एएणं कमेणं जाव पज्जत्त-बायर-वणस्सइकाइयत्ति। - ११४९ ) उ. गौतम ! उनके आठ कर्मप्रकृतियाँ कही गई हैं, यथा १. ज्ञानावरणीय यावत् ८. अंतराय। प्र. भंते ! पर्याप्तबादरपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियां कही गई हैं ? उ. गौतम ! उनके भी इसी प्रकार (आठ कर्मप्रकृतियां) कही है। इसी प्रकार इसी क्रम से पर्याप्तबादर वनस्पतिकायिक जीवों तक कर्मप्रकृतियों का कथन करना चाहिए। प्र. भंते ! अपर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं ? उ. गौतम ! वे सात या आठ कर्मप्रकृतियों के बंधक हैं। सात बांधते हुए आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं, आठ बाँधते हुए सम्पूर्ण आठ कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं, प. अपज्जत्त-सुहुम-पुढविकाइया णं भंते ! कइ कम्मपयडीओ वेदेति? उ. गोयमा ! चोद्दस कम्मपयडीओ वेदेति,तं जहा १-८ नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं, ९. सोतिंदियवझं, १०. चक्खिदियवज्झं, ११.घाणिंदियवझं, १२. जिभिदियवज्झं, १३.थीवेदवझं, १४. पुरिसवेदवज्झं। एवं एएणं कमेणं चउक्कएणं भेएणं जाव पज्जत्त-बायर-वणस्सइकाइया चोद्दस कम्मपयडीओ वेदेति। -विया. स.३३/१, उ.१, सु.७-१६ ९२. अणंतरोववन्नग-एगिदिएसु कम्मपयडिबंधसामित्तं वेयणपरूवण यप. अणंतरोववन्नग-सुहुम-पुढविकाइयाणं भंते ! कइ कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ? । उ. गोयमा ! अट्ठ कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ,तं जहा १.नाणावरणिज्जंजाव ८.अंतराइयं। प. अणंतरोववन्नग-बायर-पुढविकाइयाणं भंते! कइ कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! अट्ठ कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ,तं जहा १. नाणावरणिज्जं जाव ८.अंतराइयं। एवं जाव अणंतरोववन्नग-बायर-वणस्सइकाइय त्ति। प्र. भंते ! पर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं? उ. गौतम ! इसी प्रकार (सात या आठ कर्मप्रकृतियां) बांधते हैं। इसी प्रकार इसी क्रम से पर्याप्त बादरवनस्पतिकायिक जीवों तक कर्मप्रकृतियों के बंध का कथन करना चाहिए। प्र. भंते ! अपर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं? उ. गौतम ! वे चौदह कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं, यथा १-८. ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय, ९. श्रोत्रेन्द्रियावरण, १०. चक्षुरिन्द्रियावरण, ११. घ्राणेन्द्रियावरण, १२. जिह्वेन्द्रियावरण, १३. स्त्रीवेदावरण, १४. पुरुषवेदावरण। इसी प्रकार इसी क्रम से चारों भेदों (सूक्ष्म, बादर और इनके पर्याप्त अपर्याप्त) से युक्त पर्याप्तबादरवनस्पतिकायिक पर्यन्त चौदह कर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं। ९२. अनन्तरोपपत्रक एकेन्द्रिय जीवों में कर्म प्रकृतियों के स्वामित्व बंध और वेदन का प्ररूपणप्र. भंते ! अनन्तरोपपन्नकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियां कही गई हैं ? उ. गौतम ! उनके आठ कर्मप्रकृतियां कही गई हैं, यथा १. ज्ञानावरणीय यावत् ८. अन्तराय। प्र. भंते ! अनन्तरोपपत्रक बादरपृथ्वीकायिक जीव के कितनी कर्म प्रकृतियां कही गई हैं ? उ. गौतम ! उनके आठ कर्मप्रकृतियां कही गई हैं, यथा १. ज्ञानावरणीय यावत् ८. अन्तराय। इसी प्रकार अनन्तरोपपन्नक बादरवनस्पतिकायिक-पर्यन्त कर्म प्रकृतियां जाननी चाहिए। प्र. भंते ! अनन्तरोपपन्नकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं? प. अणंतरोववन्नग-सुहुम-पुढविकाइयाणं भंते ! कइ कम्मपयडीओ बंधति?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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