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________________ कर्म अध्ययन २. अत्थेगइया समाउया विसमोववन्नगा, ३. अत्थेगइया विसमाउया समोववन्नगा, ४. अत्येगइया विसमाउया विसमोचवन्नगा । १. तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा तेणं तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति, २. तत्य णं जे ते समाउया विसमोवचन्नगा तेणं तुल्लईया वेमायविसेसाहियं कम्पं पकरैति ३. तत्थ णं जे ते विसमाउया समोववन्नगा तेणं मायटिया तुल्लविसेसाहियं कम्म पकरेति, ४. तत्थ णं जे ते विसमाउया विसमोववन्नगा तेणं वेमायदिईया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ“अत्थेगइया तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति जाव अत्थेगइया वेमायट्ठिईया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति । " -विया. स. ३४/१, उ. १, सु. ७६, ८५. उववज्जणं पडुच्च अणंतरोववन्नगएगिदिए कम्मबंध परूवणं प. अनंतरोववन्नगएगिंदिया णं भंते ! किं तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति जाव वेमायट्ठिईया मायविसेसाहियं कम्म पकरेति ? उ. गोयमा ! अत्येगइया तुल्लटिईया तुल्लविसेसाहिय कम्म पकरेंति, अत्थेगइया तुल्लट्ठिईया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति । प. से केणट्ठेण भंते ! एवं बुच्चइ 'अत्थेगइया तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति आत्येगइया तुल्लट्ठिईया वैमायविसेसाहिय कम्म पकरेति ? उ. गोयमा ! अणंतरोववन्नगा एगिंदिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा १. अत्थेगइया समाउया समोववन्नगा, २. अत्थेगइया समाउया विसमोववन्नगा । १. तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा तेणं तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति । २. तत्थ णं जे ते समाउया विसमोदवन्नगा तेणं तुल्लईया वेमायविसेसाहियं कम्पं पकरेति । ११४५ २. कई जीव समान आयु वाले और विषम भिन्न-भिन्न समयों में उत्पन्न होने वाले हैं। ३. कई जीव विषम आयु वाले और एक साथ उत्पन्न होने वाले हैं। ४. कई जीव विषम आयु वाले और विषम उत्पन्न होने वाले हैं। १. इनमें से जो समान आयु वाले और साथ उत्पन्न होने वाले होते हैं, वे तुल्य स्थिति वाले तुल्य विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। २. इनमें से जो समान आयु वाले और विषम उत्पन्न होने वाले होते हैं, वे तुल्य स्थिति वाले विषम विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। ३. इनमें से जो विषम आयु वाले और एक साथ उत्पन्न होने वाले हैं, वे विषम स्थिति वाले तुल्य-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। ४. इनमें जो विषम आयु वाले और विषम उत्पन्न होने वाले होते हैं, वे विषम स्थिति वाले विषम विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि "कई तुल्य स्थिति वाले तुल्य विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं यावत् कई विषम स्थिति वाले विषम विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं।" ८५. उत्पत्ति की अपेक्षा अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रियों में कर्म बंध का प्ररूपण प्र. भंते ! क्या अनन्तरोपपत्रक एकेन्द्रिय तुल्य स्थिति वाले होते हैं और तुल्य विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं यावत् विषम स्थिति वाले होते हैं और विषम विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं ? उ. गौतम ! कई तुल्यस्थिति वाले होते हैं एवं तुल्य विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं और कई तुल्यस्थिति वाले होते हैं एवं विषम विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। (ये दो भंग ही होते हैं।) प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'कई तुल्य स्थिति वाले होते हैं तुल्य विशेषाधिक कर्म का बंध करते हैं और कई तुल्यस्थिति वाले विषम-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं ? उ. गौतम ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. कई जीव समान आयु और समान उत्पत्ति वाले होते हैं, २. कई जीव समान आयु और विषम उत्पत्ति वाले होते हैं, १. इनमें से जो समान आयु और समान उत्पत्ति वाले हैं, वे तुल्यस्थिति वाले और तुल्य विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। २. इनमें से जो समान आयु और विषम उत्पत्ति वाले हैं, वे तुल्य स्थिति वाले और विषम विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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