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________________ ( ११४६ - ११४६ से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ'अत्थेगइया तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्म पकरेंति अत्थेगइया तुल्लट्ठिईया वेमायविसेसाहियं कम पकरेंति। -विया. स. ३४/१, उ. २, सु.७ ८६. उववज्जणं पडुच्च परंपरोववन्नगएगिदिएसु कम्मबंध परूवणंप. परंपरोववन्नग एगिदिया णं भंते ! किं तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति जाव वेमायट्ठिईया वेमायविसेसाहियं कम्म पकरेंति? उ. गोयमा ! अत्थेगइया तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्म पकरेंति जाव अत्थेगइया वेमायट्ठिईया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "अत्थेगइया तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्म पकरेंति जाव अत्थेगइया वेमायट्ठिईया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति?" उ. गोयमा ! एगिंदिया चउव्विहा पण्णत्ता,तं जहा अत्थेगइया समाउया समोववन्नगा जाव अत्थेगइया विसमाउया विसमोववन्नगा। द्रव्यानुयोग-(२) इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि 'कई तुल्यस्थिति वाले तुल्य विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं और कई तुल्य स्थिति वाले विषम विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। ८६. उत्पत्ति की अपेक्षा परंपरोपपत्रक एकेन्द्रियों में कर्म बंध का प्ररूपणप्र. भंते ! परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव क्या तुल्य स्थिति वाले होते हैं एवं तुल्य विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं यावत् विषम स्थिति वाले होते हैं एवं विषम विशेषाधिक कर्म का बंध करते हैं? उ. गौतम ! कई तुल्य स्थितिवाले होते हैं एवं तुल्य-विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं यावत् कई विषम स्थिति वाले होते हैं एवं विषम विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि “कई तुल्य स्थिति वाले होते हैं एवं तुल्य विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं यावत् कई विषम स्थिति वाले होते हैं एवं विषम विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं ? उ. गौतम ! एकेन्द्रिय जीव चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा कई जीव समान आयु वाले और साथ उत्पन्न होने वाले होते हैं यावत् कई जीव विषम आयु वाले और विषम उत्पन्न होने वाले होते हैं। इनमें से जो समान आयु वाले हैं और साथ उत्पन्न होने वाले होते हैं वे तुल्य स्थिति वाले होते हैं एवं तुल्य विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं यावत् इनमें से जो विषम आयु वाले हैं और विषम उत्पन्न होने वाले होते हैं वे विषम स्थिति वाले होते हैं एवं विषम विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'कई तुल्य स्थिति वाले होते हैं एवं तुल्य विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं यावत् कई विषम स्थिति वाले होते हैं एवं विषम विशेषाधिक कर्म का बन्ध करते हैं।' तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा ते णं तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति जाव तत्थ णं जे ते विसमाउया विसमोववन्नगा ते णं वेमायट्ठिईया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ“अत्थेगइया तुल्लट्ठिईया तुल्लविसेसाहियं कम्म पकरेंति जाव अत्थेगइया वेमायट्ठिईया वेमायविसेसाहियं कम्मं पकरेंति। -विया. स.३४/१, उ.३, सु. ३(२) ८७. जीव-चउवीसदंडएसुकम्म पयडिवेयण परूवणं प. जीवेणं भंते ! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेइ? उ. गोयमा ! अत्थेगइए वेदेइ,अत्थेगइएणो वेदेइ। प. दं.१.णेरइए णं भंते ! नाणावरणिज्ज कम्मं वेदेइ ? उ. गोयमा ! णियमा वेदेइ। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिए। णवरं-मणूसे जहा जीवे। ८७. जीव चौबीस दंडकों में कितनी कर्म प्रकृति के वेदन का प्ररूपणप्र. भंते ! क्या जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता है? उ. गौतम ! कोई जीव वेदन करता है और कोई नहीं करता है। प्र. द. १. भंते ! क्या नैरयिक ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता है? उ. गौतम ! वह नियमतः वेदन करता है। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष-मनुष्य का कथन सामान्य जीव के समान करना चाहिए। प्र. भंते ! क्या अनेक जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करते हैं? उ. गौतम ! पूर्ववत् कहना चाहिये। दं.१-२४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। प. जीवाणं भंते ! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेति? उ. गोयमा ! एवं चेव। दं.१-२४.एवंणेरइया जाव वेमाणिया।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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