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________________ ११४० ३. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, छव्विहबंधगा य,अबंधएय। ४. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, छव्विहबंधगा य,अबंधगा य। १. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगे य,छव्विहबंधगे य,अबंधगे य। २. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगे य,छव्विहबंधगे य,अबंधगा य। ३. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, __ अट्ठविहबंधगे य, छव्विहबंधगा य,अबंधगे य। ४. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगे य,छव्विहबंधगा य,अबंधगा य। ५. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य,छव्विहबंधगे य,अबंधगे य। ६. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य,छव्विहबंधगेय,अबंधगा य। ७. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, छव्विहबंधगा य, अबंधगे य। ( द्रव्यानुयोग-(२) ) ३. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और षड्विधबन्धक होते हैं और एक अबन्धक होता है। ४. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, षड्विधबन्धक और अबन्धक होते है। १. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक, षड्विधबन्धक और अबन्धक होता है। २. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक और षड्विधबन्धक होता है एवं अनेक अबन्धक होते हैं। ३. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक होता है एवं अनेक षविधबन्धक होते हैं और एक अबन्धक होता है। ४. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक होता है एवं अनेक षड्विधबन्धक और अबन्धक होते हैं। ५. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं तथा एक षविधबन्धक और एक अबन्धक होता है। अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं तथा एक षड्विधबन्धक होता है एवं अनेक अबन्धक होते हैं। ७. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक और षड्विधबंधक होते हैं तथा एक अबन्धक होता है। ८. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, षड्विधबन्धक और अबन्धक होते हैं। ये कुल आठ भंग हुए। सब मिलाकर ये सत्ताईस भंग होते हैं। इसी प्रकार मनुष्यों के भी यही सत्ताईस भंग कहने चाहिये। इसी प्रकार मृषावादविरत यावत् मायामृषाविरत एक जीव और मनुष्य के लिए भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! मिथ्यादर्शनशल्य-विरत (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बंध करता है? उ. गौतम ! (वह) सप्तविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, षड्विधबन्धक, एकविधबन्धक या अबन्धक होता है। प्र. दं.१. भंते ! मिथ्यादर्शनशल्य विरत (एक) नैरयिक कितनी कर्मप्रकृतियों का बंध करता है? उ. गौतम !(वह) सप्तविधबन्धक या अष्टविधबन्धक होता है। दं.२-२०.इसी प्रकार (यह कथन) पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक तक (समझना चाहिए।) दं.२१. मनुष्य का कथन जीव के समान करना चाहिए। दं.२२-२४. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक का कथन नैरयिक के समान करना चाहिए। प्र. मिथ्यादर्शनशल्य से विरत (अनेक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं? ८. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, छव्विहबंधगा य,अबंधगा य। एए अट्ठ भंगा।सव्वे वि मिलिया सत्तावीसं भंगा भवंति। एवं मणूसाण वि एएचेव सत्तावीसंभंगा भाणियव्वा। एवं मुसावायविरयस्स जाव मायामोसविरयस्स जीवस्स यमणूसस्स य। प. मिच्छादसणसल्लविरए णं भंते ! जीवे कइ कम्मपयडीओ बंधइ? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, छव्विहबंधए वा, एगविहबंधए वा, अबंधए वा। प. दं. १. मिच्छादसणसल्लविरए णं भंते ! णेरइए कइ कम्मपयडीओ बंधइ? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, दं.२-२० एवं जाव पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिए। दं.२१. मणूसे जहा जीवे। दं.२२-२४. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिए जहा णेरइए। प. मिच्छादसणसल्लविरया णं भंते ! जीवा कइ कम्मपयडीओ बंधति?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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