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________________ कर्म अध्ययन ११३९ ८०. जीव चउवीस दंडएसु पावट्ठाणविरएसु कम्मपयडिबंधणं- प. पाणाइवायविरए णं भंते ! जीवे कइ कम्मपयडीओ बंधइ? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, छव्विहबंधए वा, एगविहबंधए वा,अबंधए वा। एवं मणूसे विभाणियव्वे। प. पाणाइवायविरया णं भंते ! जीवा कइ कम्मपयडीओ बंधति? उ. गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य। १. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगे य। २. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य। ३. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, छविहबंधगे य। ४. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, छव्विहबंधगा य। ५. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अबंधगे य। ६. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अबंधगा य। १. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगे य,छव्विहबंधगे य। ८0. पाप स्थान विरत जीव-चौबीसदंडकों में कर्म प्रकृति बंधप्र. भंते ! प्राणातिपातविरत (एक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है? उ. गौतम ! वह सप्तविधबन्धक, अष्टविधबंधक, षड्विधबंधक या एकविधबंधक अथवा अबन्धक होता है। इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! प्राणातिपातविरत (अनेक) जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं? उ. गौतम ! सभी जीव सप्तविधबन्धक भी होते हैं और एकविधबन्धक भी होते हैं। १. अथवा अनेक सप्तविध-बन्धक-एकविधबन्धक होते हैं और एक अष्टविधबन्धक होता है। २. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं। ३. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक होते हैं और एक षड्विधबन्धक होता है। ४. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और षड्विधबन्धक होते हैं। ५. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक होते हैं और एक अबंधक होता है। ६. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अबंधक होते हैं। १. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं, तथा एक अष्टविध बन्धक और षड्विधबन्धक होता है। २. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक होता है और अनेक षड्विधबन्धक होते हैं। ३. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक,एकविधबन्धक और अष्ट विधबन्धक होते हैं और एक षड्विधबन्धक होता है। ४. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक और षड्विधबन्धक होते हैं। १. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक और एक अबन्धक होता है। २. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक अष्टविधबन्धक होता है और अनेक अबंधक होते हैं। ३. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं और एक अबन्धक होता है। ४. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक, एकविधबन्धक, अष्टविधबन्धक और अबन्धक होते हैं। १. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक षड्विधबन्धक और अबन्धक होता है। २. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और एकविधबन्धक होते हैं तथा एक षड्विधबन्धक होता है और अनेक अबन्धक होते हैं। २. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगेय,छव्विहबंधगाय। ३. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य,छव्विहबंधगे य। ४. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य,छव्विहबंधगा य। १. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगे य, अबंधएय। २. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगे य, अबंधगा य। ३. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, अबंधगे य। ४. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य,अबंधगा य। १. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, छविहबंधगे य, अबंधगे य। २. अहवा सत्तविहबंधगा य, एगविहबंधगा य, छव्विहबंधगाय,अबंधगाय।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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