SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 399
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११३८ उ. गोयमा ! आउयवज्जाओ सत वि बंधति । आउय भयणाए। ११. मणजोगिआई पडुच्च प. णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं मणजोगी बंधइ, वयजोगी बंधइ, कायजोगी बंधइ, अजोगी बंधइ ? उ. गोयमा ! हेल्ला तिष्णि भयणाए, अजोगी न बंधइ । एवं वेयणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ भाणियव्वाओ। वेवणिज्जं हेठिल्ला बंधति, अजोगी न बंध। १२. सागार - अणागारोवउत्तं पडुच्च प. णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं सागारोवर ते बंधइ, अणागारोवउत्ते बंध ? उ. गोयमा ! अट्ठसु वि भयणाए । १३. आहारय- अणाहारए पडुच्च प. णाणावरणिज णं भंते! कम्म कि आहारए बंधन, अणाहारए बंधइ ? उ. गोयमा ! दो वि भयणाए। एवं वेयणिग्ज आउयवज्जाणं छण्हं कम्मपगडीणं भाणिय वेयणि आहारए बंध, अणाहारए भवणाए। आउयं आहारए भयणाए, अणाहारए न बंधइ । १४. सुडुम बायराई पद्दुच्च प. णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं सुहुमे बंधइ, बायरे बंध, नो सुहु-नो बायरे बंधइ ? उ. गोयमा ! सुहमे बंध. बायरे भयणाए, नो सुहुमे नो बायरे न बंधइ । एवं आउयबजाओ सत्त कम्मपगडीओ भाणिवय्याओ। आउयं सुहुमे बायरे भयणाए, नो सुहुमे नो बायरे ण बंध। १५. चरिमाचरिमे पडुच्च प. णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं चरिमे बंध, अचरिमे बंध ? उ. गोयमा अट्ठ वि भयणाए। - विया. स. ६, उ. ३, सु. १२-२८ द्रव्यानुयोग - (२) उ. गौतम ! आयुकर्म को छोड़कर शेष सातों कर्म प्रकृतियों को बांधते है। आयुकर्म को ये तीनों भजना से बांधते हैं। ११. मनोयोगी आदि की अपेक्षा प्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या मनोयोगी बांधता है, वचनयोगी बांधता है, काययोगी बांधता है या अयोगी बांधता है ? उ. गौतम ! आदि के तीन भजना से बांधते हैं, अयोगी नहीं बांधता है। इसी प्रकार बेदनीय को छोड़कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। वेदनीय कर्म को आदि के तीन बांधते हैं, अयोगी नहीं बांधता है। १२. साकार - अनाकारोपयुक्त की अपेक्षा प्र. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या साकारोपयोगी बांधता है या अनाकारोपयोगी बांधता है ? उ. गौतम ! ये आठों कर्मप्रकृतियों को भजना से बांधते हैं। १३. आहारक - अनाहारक की अपेक्षा प्र. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या आहारक जीव बांधता है या अनाहारक जीव बांधता है ? उ. गौतम ! दोनों प्रकार के जीव भजना से बांधते हैं। इसी प्रकार वेदनीय और आयुकर्म को छोड़कर शेष छहों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझ लेना चाहिए। वेदनीय कर्म को आहारक जीव बांधता है, अनाहारक भजना से बांधता है। आयुकर्म को आहारक भजना से बांधता है, अनाहारक नहीं बांधता है। १४. सूक्ष्म बादर आदि की अपेक्षा प्र. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या सूक्ष्म जीव बांधता है, बादर बांधता है या सूक्ष्म नो बादर जीव बांधता है ? उ. गौतम ! सूक्ष्म जीव बांधता है, बादर जीव भजना से बांधता है, किन्तु नो सूक्ष्म-नो बादर जीव नहीं बांधता है। इसी प्रकार आयुकर्म को छोड़कर शेष सातों कर्म प्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। आयुकर्म को सूक्ष्म और बादर जीव भजना से बांधते हैं किन्तु नो सूक्ष्म-नो बादर जीव नहीं बांधता है। १५. चरम - अचरम की अपेक्षा प्र. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या चरमजीव बांधता है या अचरमजीव बांधता है ? उ. गौतम ! आठों कर्मप्रकृतियों को भजना से बांधते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy