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________________ कर्म अध्ययन ११३७ ७. पज्जत्तापज्जत्ताइं पडुच्चप. णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं पज्जत्तओ बंधइ, अपज्जत्तओ बंधइ, नो पज्जत्तए नो अपज्जत्तए बंधइ? उ. गोयमा ! पज्जत्तए भयणाए, अपज्जत्तएबंधइ, नो पज्जत्तए नो अपज्जत्तए न बंधइ। एवं आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ भाणियव्वाओ। आउयं हेट्ठिल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले ण बंधइ। ८. भासयाभासए पडुच्चप. णाणावरणिज्जंणं भंते ! कम्मं किं भासए बंधइ, अभासए बंधइ? उ. गोयमा ! दो वि भयणाए। एवं वेयणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ भाणियव्वाओ। वेयणिज्जं भासए बंधइ, अभासए भयणाए। ९. परित्तापरित्ताई पडुच्चप. णाणावरणिज्जणं भंते ! कम्मं किं परित्ते बंधइ, अपरिते बंधइ, नो परित्ते नो अपरित्ते बंधइ? ७. पर्याप्त-अपर्याप्त आदि की अपेक्षाप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या पर्याप्तक जीव बांधता है, अपर्याप्तक जीव बांधता है या नो पर्याप्तक-नो अपर्याप्तक जीव बांधता है? उ. गौतम ! पर्याप्तक जीव भजना से बांधता है, अपर्याप्तक जीव बांधता है, किन्तु नो-पर्याप्तक नो अपर्याप्तक जीव नहीं बांधता है। इसी प्रकार आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। आयुकर्म को आदि के दो (पर्याप्तक और अपर्याप्तक) भजना से बांधते हैं, किन्तु अन्तिम (नो पर्याप्त-नो अपर्याप्त) नहीं बांधते हैं। ८. भाषक-अभाषक की अपेक्षाप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या भाषक जीव बांधता है या अभाषक जीव बांधता है ? उ. गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म को दोनों-(भाषक और अभाषक) भजना से बांधते हैं। इसी प्रकार वेदनीय को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। वेदनीय कर्म को भाषक जीव बांधता है, अभाषक जीव भजना से बांधता है। ९. परित्त-अपरित्त आदि की अपेक्षाप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या परित्त जीव बांधता है, अपरित्त जीव बांधता है या नो परित्त-नो अपरित्त जीव बांधता है? उ. गौतम ! परित्त जीव भजना से बांधता है, अपरित्त जीव बांधता है किन्तु नो परित्त-नो अपरित्त जीव नहीं बांधता है। इसी प्रकार आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्म प्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। आयुकर्म को परित्तजीव भी और अपरित्तजीव भी भजना से बांधते हैं, किन्तु नो परित्त-नो अपरित्त जीव नहीं बांधते हैं। १०. ज्ञानी-अज्ञानी की अपेक्षाप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या आभिनिबोधिकज्ञानी बांधता है, श्रुतज्ञानी बांधता है, अवधिज्ञानी बांधता है, मनःपर्यवज्ञानी बांधता है या केवलज्ञानी बांधता है? उ. गौतम ! आदि के चार भजना से बांधते हैं, किन्तु केवलज्ञानी नहीं बांधता है। इसी प्रकार वेदनीय को छोड़कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों क विषय में समझ लेना चाहिए। वेदनीय कर्म को आदि के चारों बांधते हैं, केवलज्ञानी भजना से बांधता है। प्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या मति-अज्ञानी बांधता है, श्रुत-अज्ञानी बांधता है या विभंगज्ञानी बांधता है ? उ. गोयमा ! परित्ते भयणाए, अपरित्ते बंधइ, नो परित्ते नो अपरित्ते न बंधइ। एवं आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ भाणियव्वाओ। आउयं परित्तो वि, अपरित्तो विभयणाए। नो परिते नो अपरित्ते न बंधइ। १०. णाणि-अण्णाणिणो पडुच्चप. णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं आभिणिबोहियनाणी बंधइ, सुयनाणी बंधइ, ओहिनाणी बंधइ, मणपज्जवनाणी बंधइ, केवलनाणी बंधइ? उ. गोयमा ! हेट्ठिल्ला चत्तारि भयणाए, केवलनाणी न बंधइ। एवं वेयणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ भाणियव्याओ। वेयणिज्जं हेट्ठिल्ला चत्तारि बंधइ, केवलनाणी भयणाए। प. णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं मइअण्णाणी बंधइ, सुयअण्णाणी बंधइ, विभंगणाणी बंधइ?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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