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________________ ११३६ उ. गोयमा ! सम्मद्दिट्ठी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, मिच्छद्दिट्ठी बंधइ,सम्मामिच्छद्दिट्ठी बंधइ। एवं आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ भाणियव्याओ। आउयं हेट्ठिल्ला दो भयणाए, सम्मामिच्छदिट्ठी न बंधइ। ४. सण्णि-असण्णिआई पडुच्चप. णाणावरणिज्जणं भंते ! कम्मं किं सण्णी बंधइ, असण्णी बंधइ, नो सण्णी-नो असण्णी बंधइ ? उ. गोयमा ! सण्णी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, असण्णी बंधइ, नो सण्णी नो असण्णी न बंधइ। एवं वेयणिज्जाऽऽउयवज्जाओ छ कम्मप्पगडीओ। वेयणिज्जं हेट्ठिल्ला दो बंधति, उवरिल्ले भयणाए। आउयं हेट्ठिल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले न बंधइ। ५. भवसिद्धियाई पडुच्चप. णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं भवसिद्धीए बंधइ, अभवसिद्धीए बंधइ, नो भवसिद्धीए-नो अभवसिद्धीए बंधइ? उ. गोयमा ! भवसिद्धीए भयणाए, अभवसिद्धीए बंधइ, नो भवसिद्धीए नो अभवसिद्धीए न बंधइ। एव आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ भाणियव्वाओ। द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! कदाचित् सम्यग्दृष्टि बांधता है और नहीं भी बांधता है, किन्तु मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि तो बांधता ही है। इसी प्रकार आयुकर्म को छोड़कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए। आयुकर्म को आदि के दो (सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि) भजना से बांधते हैं सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं बांधता है। ४. संज्ञी-असंज्ञी की अपेक्षाप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या संज्ञी बांधता है, असंज्ञी बांधता है या नो संज्ञी-नो असंज्ञी बांधता है? उ. गौतम ! कदाचित् संज्ञी बांधता है और नहीं भी बांधता है। असंज्ञी बांधता है, किन्तु नो संज्ञी-नो असंज्ञी नहीं बांधता है। इसी प्रकार वेदनीय और आयु को छोड़कर शेष छह कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। वेदनीय कर्म को आदि के दो (संज्ञी और असंज्ञी) बांधते हैं, किन्तु अन्तिम के लिए भजना है। आयुकर्म को आदि के दो (संज्ञी और असंज्ञी) भजना से बांधते हैं, किन्तु अन्तिम नहीं बांधता है। ५. भवसिद्धिक आदि की अपेक्षाप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या भवसिद्धिक बांधता है, अभवसिद्धिक बांधता है या नो भवसिद्धिक-नो अभवसिद्धिक बांधता है? उ. गौतम ! भवसिद्धिक जीव भजना से बांधता है। अभवसिद्धिक जीव बांधता ही है, किन्तु नो भवसिद्धिक-नो अभवसिद्धिक जीव नहीं बांधता है। इसी प्रकार आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। आयुकर्म को आदि के दो (भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक) भजना से बांधते हैं। किन्तु अन्तिम (नो भवसिद्धिक-नो अभवसिद्धिक) नहीं बांधता है। ६. चक्षुदर्शनी आदि की अपेक्षाप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म को क्या चक्षुदर्शनी बांधता है, अचक्षुदर्शनी बांधता है, अवधिदर्शनी बांधता है या केवलदर्शनी बांधता है ? उ. गौतम ! आदि के तीन (चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी) भजना से बांधते हैं किन्तु अंतिम (केवलदर्शनी) नहीं बांधता है। इसी प्रकार वेदनीय को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों के विषय में समझ लेना चाहिए। वेदनीयकर्म को आदि के तीन (चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी) बांधते हैं, किन्तु अंतिम केवलदर्शनी भजना से बांधता है। आउय हेट्ठिल्ला दो भयणाए, उवरिल्लो न बंधइ। ६. चक्खुदंसणीआई पडुच्चप. णाणावरणिज्जं णं भंते ! किं चक्खुदसणी बंधइ, अचक्खुदंसणी बंधइ, ओहिदसणी बंधइ, केवलदसणी बंधइ? उ. गोयमा ! हेट्ठिल्ला तिण्णि भयणाए, उवरिल्ले ण बंधइ। एवं वेयणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ भाणियव्वाओ। वेयणिज्जं हेट्ठिल्ला तिण्णि बंधति, केवलदसणी भयणाए।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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