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________________ कर्म अध्ययन ११३५ ७८. सुहुम संपराय जीवट्ठाणे बज्झमाण कम्मपयडीओ सुहमसंपराए णं भगवं सुहुमसंपरायभावे वट्टमाणे सत्तरस कम्मपगडीओ णिबंधति,तं जहा१. आभिणिबोहियणाणावरणे, २. सुयणाणावरणे, ३. ओहिणाणावरणे, ४. मणपज्जवणाणावरणे, ५. केवलणाणावरणे, ६. चक्खुदसणावरणे, ७. अचक्खुदंसणावरणे, ८. ओहीदसणावरणे, ९. केवलदंसणावरणे, १०. साया वेयणिज्जं ११. जसोकित्तिनाम, १२. उच्चागोयं, १३. दाणंतरायं, १४. लाभंतरायं, १५. भोगंतरायं, १६. उवभोगंतरायं, १७. वीरियअंतरायं। ___ -सम. सम.१७, सु.१० ७९. विविह बंधगवेक्खया अट्ठ कम्मपगडीणं बंध-परूवणं १. इत्थी-पुरिस-नपुंसए पडुच्चप. नाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ, नपुंसओ बंधइ, नो इत्थी नो पुरिसो नो नपुंसओ बंधइ? उ. गोयमा ! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ, नपुंसओ वि बंधइ, नो इत्थी-नो पुरिसो-नो नपुंसओ सिय बंधइ, सिय नो बंधइ। एवं आउयवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ भाणियव्वओ। ७८. सूक्ष्म संपराय जीव स्थान में बंधने वाली कर्मप्रकृतियां सूक्ष्म संपराय भाव में स्थित सूक्ष्मसंपराय भगवान् सतरह कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है, यथा१. आभिनिबोधिकज्ञानावरण, २. श्रुतज्ञानावरण, ३. अवधिज्ञानावरण, ___४. मनःपर्यवज्ञानावरण, ५. केवलज्ञानावरण, ६. चक्षुदर्शनावरण, ७. अचक्षुदर्शनावरण, ८. अवधिदर्शनावरण, ९. केवलदर्शनावरण, १०. सातावेदनीय, ११. यशःकीर्तिनाम, १२. उच्चगोत्र, १३. दानान्तराय, १४. लाभान्तराय, १५. भोगान्तराय, १६. उपभोगान्तराय, १७. वीर्यान्तराय। ७९. विविध बंधकों की अपेक्षा अष्ट कर्म प्रकृतियों के बंध का प्ररूपण१. स्त्री पुरुष नपुंसक की अपेक्षाप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बांधती है, पुरुष बांधता है, या नपुंसक बांधता है ? अथवा नो स्त्री, नो पुरुष, नो नपुंसक बांधता है? उ. गौतम ! स्त्री भी बांधती है, पुरुष भी बांधता है और नपुंसक भी बांधता है, किन्तु नो स्त्री-नो पुरुष, नो नपुंसक कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है। इसी प्रकार आयुकर्म को छोड़कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। प्र. भंते ! आयुकर्म को क्या स्त्री बांधती है, पुरुष बांधता है या नपुंसक बांधता है अथवा नो स्त्री नो पुरुष नो नपुंसक बांधता है ? उ. गौतम ! कदाचित् स्त्री बांधती है और नहीं भी बांधती है। इसी प्रकार तीनों के विषय में भी कहना चाहिए। नो स्त्री-नो पुरुष-नो नपुंसक आयुकर्म को नहीं बांधता है। २. संयत-असंयत की अपेक्षाप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या संयत बांधता है, असंयत बांधता है, संयतासंयत बांधता है अथवा नो संयत-नो असंयत-नो संयतासंयत बांधता है ? उ. गौतम ! कदाचित् संयत बांधता है और नहीं भी बांधता है, असंयत बांधता है, संयतासंयत भी बांधता है, परन्तु नो संयत-नो असंयत-नो संयतासंयत नहीं बांधता है। इसी प्रकार आयुकर्म को छोड़कर शेष सातों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझना चाहिए। आयुकर्म को आदि के तीन-(संयत, असंयत और संयतासंयत) भजना से बांधते हैं और अन्तिम (नो संयत-नो असंयत-नो संयतासंयत) नहीं बांधते हैं। ३. सम्यग्दृष्टि आदि की अपेक्षाप्र. भंते ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या सम्यग्दृष्टि बांधता है, मिथ्यादृष्टि बांधता है या सम्यग्मिथ्यादृष्टि बांधता है ? प. आउयं णं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ, नपुंसओ बंधइ, नो इत्थी-नो पुरिसो-नो नपुंसओ बंधइ? उ. गोयमा ! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, एवं तिण्णि विभाणियव्वा। नो इत्थी-नो पुरिसो-नो नपुंसओ न बंधइ। २. संजयासंजयाई पडुच्चप. .णाणावरणिज्जणं भंते ! कम्मं किं संजए बंधइ, असंजए बंधइ, संजयासंजए बंधइ, नो संजए-नो असंजए-नो संजयासंजए बंधइ? उ. गोयमा ! संजए सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, असंजए बंधइ,संजयासंजए वि बंधइ, नो संजए-नो असंजए-नो संजयासंजए न बंधइ। एवं आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ भाणियव्वाओ। आउयं हेट्ठिल्ला तिण्णि भयणाए, उवरिल्ले ण बंधइ। ३. सम्मद्दिट्ठिआई पडुच्चप. णाणावरणिज्जं णं भंते ! कम्मं किं सम्मद्दिट्ठी बंधइ, मिच्छद्दिट्ठी बंधइ, सम्मामिच्छद्दिट्ठी बंधइ?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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