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________________ कर्म अध्ययन उ. गोयमा !तं चेव सत्तावीसं भंगा भाणियव्या। प. दं. १. मिच्छादसणसल्लविरया णं भंते ! णेरइया कइ कम्मपयडीओ बंधति? उ. गोयमा !१.सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा। २. अहवा सत्तविहबंधगा य,अट्ठविहबंधगे य, ३. अहवा सत्तविहबंधगा य,अट्ठविहबंधगा य। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिया। दं.२१.णवरं-मणूसाणं जहा जीवाणं। -पण्ण. प. २२, सु. १६४२-१६४९ ८१. णाणावरणिज्जाइ कम्म वेएमाणे जीव-चउवीसदंडएस कम्मबंध परूवणंप. जीवे णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं वेएमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, छव्विहबंधए वा, एगविहबंधए वा। प. दं.१.णेरइए णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं वेएमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा। दं.२-२४. एवं जाव वेमाणिए। णवरं-दं.२१. मणूसे जहा जीवे।। प. जीवा णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम वेएमाणा कइ कम्मपगडीओ बंधति? उ. गोयमा ! १. सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, २. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, छव्विबंधएय, ३. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, छव्विहबंधगाय, ४. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, एगविहबंधगे य, ५. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, एगविहबंधगाय, ६. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, छव्विहबंधए य,एगविहबंधए य, ७. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, छव्विहबंधए य, एगविहबंधगा य, । ११४१ उ. गौतम ! वे पूर्वोक्त सत्ताईस भंग यहां भी कहने चाहिए। प्र. दं. १. भंते ! मिथ्यादर्शनशल्य से विरत (अनेक) नैरयिक कितनी कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं? । उ. गौतम ! १. सभी नैरयिक सप्तविधबन्धक होते हैं। २. अथवा (अनेक) सप्तविध-बन्धक होते हैं और (एक) अष्टविध-बन्धक होता है, ३. अथवा अनेक सप्तविधबन्धक और अष्टविधबन्धक होते हैं। दं. २-२४. इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिए। दं.२१. विशेष-मनुष्यों के आलापक अनेक जीवों के समान कहना चाहिए। ८१. ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का वेदन करते हुए जीव-चौबीसदंडकों में कर्म बंध का प्ररूपणप्र. भंते ! (एक) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है? उ. गौतम ! वह सात. आठ, छह या एक कर्मप्रकृति का बन्ध करता है। प्र. द.१. भंते ! (एक) नैरयिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता हुआ कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है? उ. गौतम ! वह सात या आठ कर्मप्रकृतियों का बंध करता है। द.२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष-मनुष्य का कथन सामान्य जीव के समान है। प्र. भंते ! (बहुत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करते हुए कितनी कर्मप्रकृतियों का बंध करते हैं? उ. गौतम ! १. सभी जीव सात और आठ कर्मप्रकृतियों के बंधक होते हैं, २. अथवा अनेक जीव सात और आठ के बंधक होते हैं और एक छह का बंधक होता है, ३. अथवा अनेक जीव सात, आठ और छह के बन्धक होते हैं। ४. अथवा अनेक जीव सात या आठ के बन्धक होते हैं और (एक जीव) एक का बन्धक होता है। ५. अथवा अनेक जीव सात, आठ और एक के बंधक होते हैं। ६. अथवा अनेक जीव सात और आठ के बन्धक होते हैं तथा एक जीव छह और एक का बंधक होता है ७. अथवा अनेक जीव सात और आठ के बंधक होते हैं तथा एक जीव छह का बंधक होता है तथा अनेक जीव एक के बंधक होते हैं, ८. अथवा अनेक जीव सात, आठ और छह के बंधक होते हैं तथा एक जीव एक का बंधक होता है। ९. अथवा अनेक जीव सात, आठ, छह और एक के बन्धक होते हैं। इस प्रकार ये कुल नौ भंग हुए। ८. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, छव्विहबंधगा य, एगविहबंधए य, ९. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, छव्विहबंधगा य, एगविहबंधगा य, एवं एएनव भंगा।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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