SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११३० २. ठिईविष्परिणामणोवक्कमे ३. अणुभावविप्परिणामणोवक्कमे ४. पएसविष्परिणामणोवक्कमे । चउब्जिहे संकमे पण्णत्ते तं जहा 7 T १. पगइसकमे, ३. अणुभावसंकमे, चउब्विहे णिहत्ते पण्णत्ते, तं जहा १. पगडणिहते, ३. अणुभावणिहते, चउव्विहे णिगाइए पण्णत्ते, तं जहा १. पगइ अप्पाबहुए. ३. अणुभाव अप्पाबहुए. २. ठिईसंकमे, ४. पएससंक । १. पगइणिगाइए, ३. अणुभावणिगाइए, उव्व अप्पा बहुए पण्णत्ते, तं जहा २. ठिईणिहत्ते, ४. पएसहिते । २. ठिईणिगाइए, ४. पएसणिगाइए। १. अत्तुक्कोसेणं, २. परपरिवारणं, ३. भूकम्पेण, ४. कोउयकरणेणं । २. टिईअप्पाबहुए ७४. अवडंस मेएहिं कम्मबंध परूवणंचविहे अवद्धंसे पण्णत्ते, तं जहा१. आसुरे, ३. संमोहे, ४. पएस अप्पाबहुए। - ठाणं. अ. ४, उ. २, सु. २९६ (२-१०) (१) चउहिं ठाणेहिं जीवा आसुरत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा १. कोहसीलयाए, २. पाहुडसील्याए, ३. संसत्ततयोकम्पेण, ४. निमित्ताजीवयाए । २. आभिओगे, ४. देवकिि (२) चउहिं ठाणेहिं जीवा आभिओगत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा - (३) चउहि ठाणेहिं जीवा सम्मोहत्ताए कम्मं पगरेति, तं जहा१. उम्मग्गदेसणाए, २. मग्गंतराएणं, ३. कामासंसप्पओगेणं, ४. भिज्झानियाणकरणेण । (४) चउहि ठाणेहिं जीवा देवकिब्बिसियत्ताए कम्म पगरेति, तं जहा १. अरहंताणं अवन्नं वयमाणे, २. अरहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स अवन्नं वयमाणे, ३. आयरिय-उवज्झायाणमवन्नं वयमाणे, ४. चाउवन्नस्स संघस्स अवन्नं वयमाणे । - ठाणं अ. ४, उ. ४, सु. ३५४ द्रव्यानुयोग - ( २ ) २. स्थिति विपरिणामनोपक्रम, ३. अनुभाव-विपरिणामनोपक्रम, ४. प्रदेश - विपरिणामनोपक्रम । संक्रम चार प्रकार का कहा गया है, यथा २. स्थिति-संक्रम, ४. प्रदेश - संक्रम। १. प्रकृति-संक्रम, ३. अनुभाव-संक्रम, निधत्त चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. प्रकृति-निधत्त, २. स्थिति-नियत ३. अनुभाव-निधत्त, निकाचित चार प्रकार का कहा गया है, १. प्रकृति - निकाचित, ४. प्रदेश - निधत्त । यथा२. स्थिति - निकाचित, प्रदेश-निकाचित। यथा ३. अनुभाव-निकाचित, ४. अल्पबहुत्व चार प्रकार का कहा गया है, १. प्रकृति - अल्पबहुत्व, २. स्थिति - अल्पबहुत्व, ३. अनुभाव - अल्पबहुत्व, ३. प्रदेश- अल्पबहुत्व। ७४. अपध्वंस के भेद और उनसे कर्म बंध का प्ररूपण अपध्वंस (साधना का विनाश) चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. आसुर अपध्यंस, २. आभियोग अपस, ४. देवकिल्विष - अपध्वंस । ३. सम्मोह- अपध्वंस, (१) चार स्थानों से जीव आसुरत्व-कर्म का अर्जन करता है, यथा१. (कोपशीलता) क्रोधी स्वभाव से, २. प्राभृतशीलता - कलहस्वभाव से, ३. संसक्त तप-कर्म (प्राप्ति की अभिलाषा रखकर तप करने से ), ४. निमित्त जीविता- निमित्तादि बताकर आजीविका करने से। (२) चार स्थानों से जीव आभियोगित्व-कर्म का अर्जन करता है, यथा १. आत्मोत्कर्ष - आत्म- गुणों का अभिमान करने से, २. पर परिवाद- दूसरों का अवर्णवाद बोलने से, ३. भूतिकर्म - भस्म, लेप आदि के द्वारा चिकित्सा करने से, ४. कौतुककरण-मंत्रित जल द्वारा स्नान कराने से (३) चार स्थानों से जीव सम्मोहत्व-कर्म का अर्जन करता है, यथा १. उन्मार्ग देशना - मिथ्या धर्म का प्ररूपण करने से, २. मार्गान्तराय - सन्मार्ग से विचलित करने पर, ३. कामाशंसाप्रयोग - विषयों में अभिलाषा करने पर, ४. मिथ्यानिदानकरण-गृद्धिपूर्वक निदान करने से (४) चार स्थानों से जीव देव-किल्विषिकत्व कर्म का अर्जन करता है, यथा १. अर्हन्तों का अवर्णवाद बोलने से, २. अर्हन्त प्रज्ञप्त धर्म का अवर्णवाद बोलने से, ३. आचार्य तथा उपाध्याय का अवर्णवाद बोलने से, ४. चतुर्विध संघ का अवर्णबाद बोलने से ।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy