SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 390
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्म अध्ययन अस्सावावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो - भुज्जो उवचिणाइ, अणाईयं च णं अणवदग्गं दीहम चाउरंत संसार कतार अणुपरियट्टा । एवं चक्खिंदिवस यि घाणिदिवस वि. रसेंद्रिय बस बि फासिंदिययसले वि जाव अणुपरियइइ । - विया. स. १२, उ. २, सु. २१ ७१. कोहाइकसायसह जीवाणं कम्मबंधाह परूवण(तए णं) संखे समणोवासए समणं भगवं महावीर वंदन नमंसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी प. कोहवसट्टे णं भंते ! जीवे किं बंधइ, किं पकरेइ, किं चिणाइ, किं उवचिणाइ ? 1 उ. संखा ! कोहवसणं जीये आउयवज्जाओ सत कम्पपगडीओ, सिविलबंधणबद्धाओं घणियबंधनबड़ाओ पकरेड जाय दीहम चाउरंत संसारकेतारं अणुपरिट्ट । एवं माणवसट्टे वि, मायावसट्टे वि लोभवसट्टे वि जाव अणुपरियट्टा । -विया. स. १२, उ. १, सु. २६-२८ ७२. पडिधाड चडव्विहा बंध भैयाचउव्यहे बंधे पण्णत्ते तं जहा१. पगडीबन्धे, २. ठिई बन्धे, , ३. अणुभाव बंधे, ४. परसबंधे।" 9. - ठाणं अ. ४, उ. २, सु. २९६ (१) ७३. कम्माणं उवक्कमाई बंध भेय परूवणं " चउच्चिहे उवक्कमे पण्णत्ते तं जहा१. बंधणोवक्कमे, ३. उवसामणोवक्कमे २. उदीरणोवक्कमे ४. विष्परिणामणोवक्कमे (१) बंधणोवक्कमे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा १. पगइबंधणोवक्कमे, ३. अणुभावबंधणोवक्कने, ४. पएसबंधणोवक्कमे । (२) उदीरणोचक्कमे चउबिहे पण्णले, तं जहा१. पगइउदीरणोवक्कमे २. टिउदीरणोवक्कमे ३. अणुभावउदीरणोवक्कमे ४. पएसउदीरणोवक्कमे । " (३) उवसामणोवक्कमे चउब्बिहे पण्णत्ते, तं जहा १. पगइउवसामणोवक्कमे २. टिईउवसामणीयक्कमे २. ठिईबंधणोवक्कमे, ३. अणुभावउवसामणोवक्कमे, ४. पएसउवसामणोवक्कमे । (४) विष्परिणामणोवक्कमे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा १. पगइविष्परिणामणोवक्कमे, सम. सम. ४, सु. ५ ११२९ अशातावेदनीय कर्म का बार-बार उपचय करता है, अनादि अनन्त दीर्घ मार्ग वाले चातुर्गतिक संसार रूपी अरण्य में परिभ्रमण करता है। इसी प्रकार चक्षुइन्द्रियवशा प्राणेन्द्रियवशात रसनेन्द्रियवशार्त और स्पर्शनेन्द्रियवशार्त जीव भी परिभ्रमण करता है तक समझना चाहिए। ७१. क्रोधादिकषाययशार्त जीवों के कर्म बंधादि का प्ररूपण(इसके बाद ) शंख श्रमणोपासक ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन- नमस्कार किया और वंदन नमस्कार करके इस प्रकार पूछा प्र. भंते ! क्रोधवशार्त जीव कितनी कर्म प्रकृतियों का बंध, उपार्जन, चय और उपचय करता है ? उ. शंख ! क्रोधवशार्त जीव आयु कर्म को छोड़कर-शिथिलबंधन बद्ध शेष सात कर्म प्रकृतियों को गाढ बंधन से बद्ध करता है यावत् दीर्घमार्ग वाले चातुर्गतिक संसार रूपी अरण्य में परिभ्रमण करता है। इसी प्रकार मानवशार्त, मायावशार्त और लोभवशार्त जीव भी परिभ्रमण करता है यहाँ तक कहना चाहिए। ७२. प्रकृतिबन्ध आदि चार प्रकार के बंध भेद बन्ध चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. प्रकृति-बंध - कर्म - पुदगलों का स्वभाव बंध, २. स्थिति - बंध - कर्म - पुद्गलों की कालमर्यादा का बंध, ३. अनुभाग- बंध - कर्म- पुद्गलों के रस (फलदान शक्ति) का बंध, ४. प्रदेश - बंध - कर्म - पुद्गलों के परिमाण का बंध। ७३. कर्मों के उपक्रमादि बंध भेदों का प्ररूपणउपक्रम चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. बंधनोपम २. उदीरनोपक्रम, ४. विपरिणामनोपक्रम | ३. उपशमनोपक्रम, (१) बंधनोपक्रम चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. प्रकृति बंधन्दोपक्रम, ३. अनुभाव - बंधनोपक्रम, (२) उदीरनोपक्रम चार प्रकार १. प्रकृति - उदीरनोपक्रम, २. स्थिति - बंधनोपक्रम, ४. प्रदेश - बंधनोपक्रम । का कहा गया है, यथा२. स्थिति उदीरनोपक्रम, ४. प्रदेश - उदीरनोपक्रम । यथा ३. अनुभाव- उदीरनोपक्रम, (३) उपशमनोपक्रम चार प्रकार का कहा गया है, १. प्रकृति उपशमनोपक्रम, २. स्थिति उपशमनोपक्रम, -- ३. अनुभाव - उपशमनोपक्रम, ४. प्रदेश-उपशमनोपक्रम । (४) विपरिणामनोपक्रम चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. प्रकृति- विपरिणामनोपक्रम,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy