SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्म अध्ययन ७५. जीव-चउवीसदंडएसु णाणावरणिज्जाइ कम्म बंधमाणे कइ कम्मपयडी बंधंप. १. जीवे णं भंते। णाणावरणिज्ज कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, छव्विहबंधए वा। प. द.१.णेरइएणं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ बंधइ? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा। दं.२-२४.एवं जाव वेमाणिए। दं.२१.णवरं-मणूसे जहा जीवे। प. जीवा णं भंते ! णाणावरणिज्ज कम्मं बंधमाणा कइ कम्मपगडीओ बंधति? उ. गोयमा ! १. सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, २. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, छव्विहबंधगे य, ३. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, छव्विहबंधगाय। प. दं.१.णेरइया णं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्मं बंधमाणा कइ कम्मपगडीओ बंधति? उ. गोयमा ! १.सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा, ११३१ ) ७५. जीव-चौबीसदंडकों में ज्ञानावरणीय आदि कर्म बांधते हुए को कितनी कर्म प्रकृतियों का बन्धप्र. १. भंते ! (एक) जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधता हुआ कितनी कर्म प्रकृतियों को बांधता है ? उ. गौतम ! वह सात, आठ या छह कर्म-प्रकृतियों का बंधक होता है। प्र. दं. १. भंते ! (एक) नैरयिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधता हुआ कितनी कर्म-प्रकृतियों को बांधता है ? उ. गौतम ! वह सात या आठ कर्म-प्रकृतियों का बंधक होता है। दं.२-२४. इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। दं.२१.विशेष-मनुष्य-सम्बन्धी कथन जीव के समान जानना चाहिए। प्र. भंते ! (बहुत) जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्म-प्रकृतियों को बांधते हैं ? उ. गौतम !१.सभी जीव सात या आठ कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं, २. अथवा बहुत से जीव सात या आठ कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं और एक जीव छह कर्म प्रकृतियों का बन्धक होता है। ३. अथवा बहुत से जीव सात, आठ या छह कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं। प्र. दं.१. भंते ! (बहुत से) नैरयिक ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्म-प्रकृतियों को बांधते हैं ? उ. गौतम ! १. सभी नैरयिक सात कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं। २. अथवा बहुत से नैरयिक सात कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं और एक नैरयिक आठ कर्म-प्रकृतियों का बन्धक होता है, ३. अथवा बहुत से नैरयिक सात या आठ कर्म-प्रकृतियों के बन्धक होते हैं। ये तीन भंग होते हैं। दं.२-११. इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। प्र. दं. १२. भंते ! (बहुत) पृथ्वीकायिक जीव ज्ञानावरणीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्म प्रकृतियों को बांधते हैं ? उ. गौतम ! वे सात या आठ कर्म प्रकृतियों के बन्धक होते हैं। दं. १३-१६ इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों पर्यन्त कहना चाहिए। दं. १७-२०. विकलेन्द्रियों और तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिययोनिकों में तीन भंग होते हैं१. सभी सात कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं, २. अथवा बहुत से सात कर्मप्रकृतियों के बंधक होते हैं और एक आठ कर्म प्रकृतियों का बन्धक होता है। ३. अथवा बहुत-से सात और आठ कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं। २. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगे य, ३. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य, तिण्णि भंगा। दं.२-११.एवं असुरकुमारा जाव थणियकुमारा प. दं. १२. पुढविक्काइयाणं भंते ! णाणावरणिज्जं कम्म बंधमाणा कइ कम्मपगडीओ बंधति? उ. गोयमा ! सत्तविहबंधगा वि,अट्ठविहबंधगा वि। दं.१३-१६.एवं जाव वणस्सइकाइया। दं. १७-२०. वियलाणं पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाण य तियभंगो१. सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा, २. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधए य, ३. अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगा य।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy