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________________ १०९३ कर्म अध्ययन उ. गोयमा ! चउहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु, तं जहा१. कोहेणं, २. माणेणं, ३. मायाए, ४. लोभेणं। दं.१-२४. एवं नेरइया जाव वेमाणिया। प. (५) जीवा णं भंते ! कइहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणंति? उ. गोयमा ! चउहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणंति, तं जहा१. कोहेणं, २. माणेणं, ३. मायाए, ४. लोभेणं, दं.१-२४.एवं नेरइया जाव वेमाणिया। (६) एवं उवचिणिस्संति।। प. (७-९) जीवा णं भंते ! कइहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ बंधिंसु, बंधति, बंधिस्संति? उ. गोयमा ! चउहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ बंधिंसु, बंधति, बंधिस्संति,तं जहा१. कोहेणं, २. माणेणं, ३. मायाए, ४. लोभेणं। दं.१-२४.एवं नेरइया जाव वेमाणिया। उ. गौतम ! चार कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का उपचय किया है,यथा१. क्रोध से, २. मान से, ३. माया से, ४. लोभ से। दं. १-२४. इसी प्रकार नरयिकों से वैमानिकों तक जानना चाहिए। प्र. (५) भंते ! जीव कितने कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का उपचय करते है? उ. गौतम ! चार कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का उपचय करते हैं,यथा१. क्रोध से, २. मान से, ३. माया से, ४. लोभ से। दं. १-२४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक जानना चाहिए। (६) इसी प्रकार उपचय भी करेंगे ऐसा कहना चाहिए। प्र. (७-९) भंते ! जीवों ने कितने कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का बंध किया है, करते हैं और करेंगे? उ. गौतम ! चार कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का बंध किया है, करते हैं और करेंगे, यथा-- १. क्रोध से, २. मान से, ३. माया से, ४. लोभ से। १-२४. इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक जानना चाहिए। (१०-१२) इसी प्रकार १.उदीरणा की, २. उदीरण करते हैं, ३. उदीरणा करेंगे। (१३-१५) १. वेदन किया, २. वेदन करते हैं, ३. वेदन करेंगे। (१६-१८) १. निर्जरा की, २. निर्जरा करते हैं, ३. निर्जरा करेंगे। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त समुच्चय जीवों में ये अठारह दंडक (आलापक) कहना चाहिये। २४. मूलकों की उत्तर प्रकृतियाँ(१) ज्ञानावरणीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. देशज्ञानावरणीय, २. सर्वज्ञानावरणीय। (१०-१२) एवं १. उदीरेंसु, २. उदीरति, ३.उदीरिस्संति, (१३-१५)१. वेदेसु, २. वेदेति,३.वेदिस्संति, (१६-१८)१.निज्जरेंसु,२.निज्जरंति, ३.निज्जरिस्संति। एवमेव जीवाईया वेमाणिय पज्जवसाणा अट्ठारस दंडगा भाणियव्यवा। -पण्ण. प.१४, सु. ९६४-९७१ २४. मूलकम्माणं उत्तरपयडीओ(१) णाणावरणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा१.देसणाणावरणिज्जे चेव, २. सव्वणाणावरणिज्जे चेव। -ठाणं. अ.२, उ.४,सु.११६(१) प. णाणावरणिज्जे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १. आभिणिबोहियणाणावरणिज्जे, २. सुय णाणावरणिज्जे, ३. ओहिणाणावरणिज्जे, ४. मणपज्जवणाणावरणिज्जे, ५. केवलणाणावरणिज्जे। "'-पण्ण. प. २३, उ. २, सु.१६८८ (२) दरिसणावरणिज्जे कम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १.देसदरिसणावरणिज्जे चेव, २.सव्वदरिसणावरणिज्जे चेव। -ठाणं.अ.२,उ.४,सु.११६(२) प्र. भंते ! ज्ञानावरणीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा १. आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय, २. श्रुतज्ञानावरणीय, ३. अवधिज्ञानावरणीय, ४. मनःपर्यवज्ञानावरणीय, ५. केवलज्ञानावरणीय। (२) दर्शनावरणीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. देशदर्शनावरणीय, २. सर्वदर्शनावरणीय। १. ठाणं.अ.४,उ.१,सु. २५० २. (क) उत्त.अ.३३,गा.४ (ख) ठाणं.अ.५,उ.३, सु.४६४
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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