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________________ १०९४ प. दरिसणावरणिज्जेणं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १.णिद्दापंचए य, २.दसणचउक्कएय। प. (क)णिद्दापंचए णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा १.णिद्दा,२.निद्दानिद्दा, ३.पयला,४.पयलापयला, ५.थीणगिद्धी। प. (ख) दसणचउक्कएणं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा !चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा १.चक्खुदंसणावरणिज्जे,२.अचक्खुदंसणावरणिज्जे, ३.ओहिदंसणावरणिज्जे,४.केवलदसणावरणिज्जे।' प. (३.)वेयणिज्जे णं भंते! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तंजहा १.सातावेयणिज्जे य,२.असातावेयणिज्जे यार प. (क) सातावेयणिज्जे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! अट्ठविहे पण्णत्ते,तं जहा १. मणुण्णा सद्दा, २. मणुण्णा रूवा, ३. मणुण्णा गंधा, ४. मणुण्णा रसा, ५. मणुण्णा फासा, ६. मणोसुहया, ७. वय सुहया, ८. कायसुहया। प. (ख) असातावेयणिज्जे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णते? द्रव्यानुयोग-(२) प्र. भंते ! दर्शनावरणीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. निद्रापंचक २. दर्शनचतुष्क। प्र. (क) भंते ! निद्रापंचक कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा १.निद्रा, २. निद्रानिद्रा, ३. प्रचला, ४. प्रचलाप्रचला, ५. स्त्यानगृद्धि। प्र. (ख) भंते ! दर्शनचतुष्क कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है, यथा १. चक्षुदर्शनावरणीय, २. अचक्षुदर्शनावरणीय, ३. अवधिदर्शनावरणीय, ४. केवलदर्शनावरणीय। प्र. (३) भंते ! वेदनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. सातावेदनीय, २. असातावेदनीय। प्र. (क) भंते ! सातावेदनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह आठ प्रकार का कहा गया है, यथा १. मनोज्ञ शब्द, २. मनोज्ञ रूप, ३. मनोज्ञ गंध, ४. मनोज्ञ रस, ५. मनोज्ञ स्पर्श, ६. मन का सौख्य, ७. वचन का सौख्य, ८. काया का सौख्य। प्र. (ख) भंते ! असातावेदनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह आठ प्रकार का कहा गया है, यथा १.अमनोज्ञ शब्द यावत् ८. कायदुःखता। प्र. (४) भंते ! मोहनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. दर्शनमोहनीय, २. चारित्रमोहनीय। प्र. (क) भंते ! दर्शन-मोहनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १. सम्यक्त्ववेदनीय, २. मिथ्यात्ववेदनीय, ३. सम्यग्-मिथ्यात्ववेदनीय। प्र. (ख) भंते ! चारित्रमोहनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा १. कषायवेदनीय, २. नो कषायवेदनीय। प्र. (ग) भंते ! कषायवेदनीयकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? उ. गौतम ! वह सोलह प्रकार का कहा गया है, यथा १. अनन्तानुबन्धी क्रोध, २. अनन्तानुबन्धी मान, ३. अनन्तानुबन्धी माया, ४. अनन्तानुबन्धी लोभ। ५. अप्रत्याख्यानी क्रोध, ६. अप्रत्याख्यानी मान, उ. गोयमा ! अट्ठविहे पण्णत्ते,तं जहा १.अमणुण्णा सद्दा जाव ८.कायदुहया।३ प. (४) मोहणिज्जे णं भंते । कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १.दंसणमोहणिज्जे य, २. चरित्तमोहणिज्जे य।। प. (क) दंसणमोहणिज्जे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते,तं जहा १. सम्मत्तवेयणिज्जे, २. मिच्छत्तवेयणिज्जे, ३. सम्मामिच्छत्तवेयणिज्जे य। प. (ख) चरित्तमोहणिज्जे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. कसायवेयणिज्जे य, २. णो कसायवेयणिज्जे य। प. (ग) कसायवेयणिज्जे णं भंते ! कम्मे कइविहे पण्णते? उ. गोयमा ! सोलसविहे पण्णत्ते,तं जहा १. अणंताणुबंधी कोहे, २. अणंताणुबंधी माणे, ३. अणंताणुबंधी माया, ४. अणंताणुबंधी लोभे। ५. अपच्चक्खाणे कोहे, ६. अपच्चक्खाणे माणे, १. (क) ठाणं.अ.९,सु.६६८ (ख) सम.सम.९,सु.११ (ग) उत्त.अ.३३, गा.५-६ २. ठाणं.अ.२, उ.४, सु. ११६ (३) ३. उत्त.अ.३३,गा.७ ४. ठाणं.अ.२, उ.४,सु.११६ (४)
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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