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________________ ( १०८४) जस्स पुण अंतराइयं तस्स वेयणिज्जं नियमा अत्थि। प. जस्स णं भंते ! मोहणिज्जं तस्स आउयं, जस्स आउयं तस्स मोहणिज्जं? उ. गोयमा !जस्स मोहणिज्जंतस्स आउयं नियमा अस्थि, जस्स पुण आउयं तस्स पुण मोहणिज्जं सिय अत्थि, सिय नत्थि । एवं नाम,गोयं,अंतराइयं च भाणियव्वं। प. जस्सणं भंते ! आउयं तस्स नाम, जस्स नामं तस्स आउयं? उ. गोयमा ! दो वि परोप्परं नियमा। एवं गोत्तेण वि समं भाणियव्वं । प. जस्स णं भंते ! आउयं तस्स अंतराइयं, जस्स अंतराइयं तस्स आउयं? उ. गोयमा ! जस्स आउयं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि, सिय नत्थि,जस्स पुण अंतराइयं तस्स आउयं नियमा। द्रव्यानुयोग-(२) परन्तु जिसके अन्तरायकर्म होता है उसके वेदनीय कर्म नियमतः होता है। प्र. भंते ! जिस जीव के मोहनीयकर्म होता है, क्या उसके आयुकर्म होता है और जिसके आयुकर्म होता है, क्या उसके मोहनीयकर्म होता है? उ. गौतम ! जिस जीव के मोहनीयकर्म है, उसके आयुकर्म नियमतः होता है, जिसके आयुकर्म है, उसके मोहनीयकर्म कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं भी होता है। इसी प्रकार नाम, गोत्र और अन्तराय कर्म के विषय में भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! जिस जीव के आयुकर्म होता है, क्या उसके नामकर्म होता है और जिसके नामकर्म होता है, क्या उसके आयुकर्म होता है? उ. गौतम ! ये दोनों कर्म परस्पर नियमतः होते हैं। इसी प्रकार गोत्रकर्म के साथ भी आयुकर्म के विषय में कहना चाहिए। प्र. भंते ! जिस जीव के आयुकर्म होता है, क्या उसके अन्तरायकर्म होता है और जिसके अन्तरायकर्म होता है, क्या उसके आयुकर्म होता है? गौतम !जिसके आयुकर्म होताहै,उसके अन्तरायकर्म कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं भी होता है, किन्तु जिस जीव के अन्तरायकर्म होता है, उसके आयुकर्म नियमतः होता है। प्र. भंते ! जिस जीव के नामकर्म होता है, क्या उसके गोत्रकर्म होता है और जिसके गोत्रकर्म होता है क्या उसके नामकर्म होता है? उ. गौतम ! ये दोनों कर्म परस्पर नियमतः होते हैं। प्र. भंते ! जिसके नामकर्म होता है, क्या उसके अन्तरायकर्म होता है और जिसके अन्तरायकर्म होता है क्या उसके नामकर्म होता है? उ. गौतम ! जिस जीव के नामकर्म होता है, उसके अन्तराय कर्म होता भी है और नहीं भी होता है, किन्तु जिसके अन्तरायकर्म होता है, उसके नामकर्म नियमतः होता है। प्र. भंते ! जिसके गोत्रकर्म होता है, क्या उसके अन्तरायकर्म होता है और जिस जीव के अन्तराय कर्म होता है, क्या उसके गोत्रकर्म होता है? उ. गौतम ! जिसके गोत्रकर्म है, उसके अन्तरायकर्म होता भी है और नहीं भी होता है, किन्तु जिसके अन्तरायकर्म है उसके गोत्रकर्म नियमतः होता है। १०. मोहनीय कर्म के बावन नाम मोहनीय कर्म के बावन नाम कहे गये हैं, यथा प. जस्सणं भंते ! नामं तस्स गोयं, जस्स णं गोयं तस्स णं नामं? उ. गोयमा ! दो वि एए परोप्पर नियमा। प. जस्सणं भंते ! नामं तस्स अंतराइयं, जस्स णं अंतराइयं तस्स णं नामं? उ. गोयमा ! जस्स नामं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि सिय नत्थि, जस्स पुण अंतराइयं तस्स नाम नियमा अस्थि । प. जस्स णं भंते ! गोयं तस्स अंतराइयं, जस्स अंतराइयं तस्स गोयं? उ. गोयमा ! जस्स णं गोयं तस्स अंतराइयं सिय अत्थि सिय नत्थि,जस्स पुण अंतराइयं तस्स गोयं नियमा अत्थि। -विया.स.८, उ. १०, सु.४२-५८ १०. मोहणिज्जकम्मस्स बावन्नं नामधेज्जा मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स बावण्णं नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा१. कोहे, २. कोवे, ३. रोसे, ४. दोसे, ५. असमा, ६.संजलणे,७.कलहे,८. चंडिक्के,९.भंडणे, १०.विवाए। १. क्रोध, २. कोप, ३. रोष, ४. द्वेष, ५. अक्षमा, ६. संज्वलन, ७. कलह, ८. चांडिक्य, ९. भंडन, १०. विवाद, (ये दस क्रोधकषाय के नाम हैं) ११. मान, १२. मद, १३. दर्प, १४. स्तम्भ, १५. आत्मोत्कर्ष, १६. गर्व, १७. परपरिवाद, १८. उत्कर्ष, ११. माणे, १२. मदे, १३. दप्पे, १४. थंभे, १५. अत्तुक्कोसे, १६. गब्बे, १७. परपरिवाए १८. उक्कोसे,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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