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________________ कर्म अध्ययन उ. गोयमा ! जस्स नाणावरणिज्जं तस्स वेयणिज्जं नियमा अत्थि, जस्स पुण वेयणिज्जं तस्स नाणावरणिज्जं सिय अत्थि, सिय नत्थि। प. जस्स णं भंते ! नाणावरणिज्जं तस्स मोहणिज्ज, जस्स मोहणिज्जं तस्स नाणावरणिज्जं? उ. गोयमा ! जस्स नाणावरणिज्जं तस्स मोहणिज्जं सिय अत्थि, सिय नत्थि, जस्स पुण मोहणिज्जं तस्स नाणावरणिज्ज नियमा अत्थि। प. जस्स णं भंते ! नाणावरणिज्जं तस्स आउयं, जस्स आउयं तस्स नाणावरणिज्जं? उ. गोयमा ! जहा वेयणिज्जेणं समं भणिय, तहा आउएण वि समं भाणियव्वं । एवं नामेण वि, एवं गोएण वि समं। अंतराइएण वि जहा दरिसणावरणिज्जेण समं तहेव नियमा परोप्परं भाणियव्वाणि। १०८३ उ. गौतम ! जिस जीव के ज्ञानावरणीय कर्म है, उसके नियमतः वेदनीय कर्म है, किन्तु जिस जीव के वेदनीय कर्म है, उसके ज्ञानावरणीय कर्म कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं होता है। प्र. भंते ! जिसके ज्ञानावरणीय कर्म है, क्या उसके मोहनीय कर्म है और जिसके मोहनीय कर्म है, क्या उसके ज्ञानावरणीय कर्म है? उ. गौतम ! जिसके ज्ञानावरणीय कर्म है, उसके मोहनीय कर्म कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं भी होता है, किन्तु जिसके मोहनीय कर्म है, उसके ज्ञानावरणीय कर्म नियमतः होता है। प्र. भंते ! जिसके ज्ञानावरणीय कर्म है, क्या उसके आयुकर्म होता है और जिसके आयुकर्म है, क्या उसके ज्ञानावरणीय कर्म होता है? उ. गौतम ! जिस प्रकार वेदनीय कर्म के साथ (ज्ञानावरणीय के विषय में) कहा गया है, उसी प्रकार आयुकर्म के साथ ज्ञानावरणीय के विषय में भी कहना चाहिए। इसी प्रकार नामकर्म और गोत्रकर्म के साथ (ज्ञानावरणीय के विषय में) भी कहना चाहिए। जिस प्रकार दर्शनावरणीय के साथ (ज्ञानावरणीय कर्म के विषय में) कहा, उसी प्रकार अन्तराय कर्म के साथ (ज्ञानावरणीय के विषय में) भी नियमतः परस्पर सहभाव कहना चाहिए। प्र. भंते ! जिस जीव के दर्शनावरणीय कर्म है, क्या उसके वेदनीय कर्म होता है और जिसके वेदनीय कर्म है, क्या उसके दर्शनावरणीय कर्म होता है? उ. गौतम ! जिस प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म का कथन ऊपर के सात कर्मों के साथ किया गया है। उसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म का भी ऊपर के छह कर्मों के साथ अन्तराय कर्म तक कथन करना चाहिए। प्र. भंते ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके मोहनीयकर्म है और जिस जीव के मोहनीय कर्म है,क्या उसके वेदनीय कर्म होता है? उ. गौतम ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, उसके मोहनीय कर्म कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता है, किन्तु जिस जीव के मोहनीयकर्म है, उसके वेदनीय कर्म नियमतः होता है। प्र. भंते ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके आयुकर्म है और जिसके आयुकर्म है क्या उसके वेदनीयकर्म है? उ. गौतम ! ये दोनों कर्म नियमतः परस्पर साथ-साथ होते हैं। जिस प्रकार आयुकर्म के साथ (वेदनीय कर्म के विषय में) कहा, उसी प्रकार नाम और गोत्रकर्म के साथ भी (वेदनीयकर्म के विषय में) कहना चाहिए। प्र. भंते ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, क्या उसके अन्तरायकर्म है और जिसके अन्तरायकर्म है, क्या उसके वेदनीयकर्म है? उ. गौतम ! जिस जीव के वेदनीयकर्म है, उसके अन्तरायकर्म कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं भी होता है, प. जस्स णं भंते ! दरिसणावरणिज्जं तस्स वेयणिज्जं, जस्स वेयणिज्ज तस्स दरिसणावरणिज्ज? उ. गोयमा ! जहा नाणावरणिज्ज उवरिमेहिं सत्तहिं कम्मेहिं समं भणियं। तहा दरिसणावरणिज्जं पि उवरिमेहिं छहिं कम्मेहि समं भाणियव्वं जाव अंतराइएणं। प. जस्स णं भंते ! वेयणिज्जं तस्स मोहणिज्जं, जस्स मोहणिज्जं तस्स वेयणिज्जं? उ. गोयमा ! जस्स वेयणिज्जं तस्स मोहणिज्जं सिय अस्थि, सिय नत्थि, जस्स पुण मोहणिज्जं तस्स वेयणिज्ज नियमा अत्थि । प. जस्स णं भंते ! वेयणिज्जं तस्स आउयं, जस्स आउयं तस्स वेयणिज्जं? गोयमा ! एवं एयाणि परोप्परं नियमा। जहा आउएण समं एवं नामेण वि, गोएण वि समं भाणियव्यं। प. जस्स णं भंते ! वेयणिज्जं तस्स अंतराइयं, जस्स अंतराइयं तस्स वेयणिज्जं? उ. गोयमा ! जस्स वेयणिज्जं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि सिय नत्थि,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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