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________________ द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! चार कषाय कहे गये हैं, यथा १. क्रोध कषाय, २. मान कषाय, ३. माया कषाय, ४. लोभ कषाय, १०७४ उ. गोयमा ! चत्तारि कसाया पण्णत्ता,तं जहा १. कोहकसाए, २. माणकसाए, ३. मायाकसाए, ४. लोहकसाए, ___ -जीवा. पडि.१, सु. १३(५) बायर-पुढविकाइया-जहा सुहमपुढविकाइयाणं। -जीवा. पडि.१, सु.१५ सुहुम बायर आउकाइया-जहा सुहुमपुढविकाइयाणं। -जीवा. पडि. १, सु.१६,१७ सुहुम बायर तेउकाइया-जहा सुहुमपुढविकाइयाणं। -जीवा. पडि.१, सु. २४,२५ सुहुम बायर वाउकाइया-सुहुमपुढविकाइयाणं। -जीवा. पडि.१, सु.२६ सुहुम-बायर-साहारणं-पत्तेयसरीर वणस्सइकाइया-जहा सुहुम पुढविकाइयाणं, -जीवा. पडि.१, सु.१८,२०,२१ बेइंदिया, चत्तारि कसाया -जीवा. पडि. १, सु. २८ तेइंदिया जहा बेइंदिया -जीवा. पडि. १, सु.२९ चउरिदिया-जहा तेइंदिया -जीवा. पडि. १, सु.३० संमुच्छिम पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाजलयरा-चत्तारि कसाया -जीवा. पडि.१,सु.३५ थलयरा जहा जलयराणं -जीवा. पडि. १, सु.३६ खहयरा जहा जलयराणं -जीवा. पडि. १, सु.३६ गब्भवक्कंतिय पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाजलयरा-चत्तारि कसाया -जीवा. पडि.१,सु.३८ थलयरा जहा जलयराणं -जीवा. पडि. १, सु.३९ खहयरा जहा जलयराणं -जीवा. पडि. १, सु. ४० ३. मणुस्सा-समुच्छिम मणुस्सा-जहा बेइंदियाणं -जीवा.पडि.१.सु.४१ प. गब्भवक्कंतियमणुस्साणं भंते ! जीवा किं कोहकसाई जाव लोहकसाई अकसाई? उ. गोयमा ! सव्वेवि, -जीवा. पडि.१, सु. ४१ ४. देवा-चत्तारि कसाया, -जीवा. पडि.१, सु. ४२ ८. सकसाय-अकसाय जीवाणं कायट्ठिई प. सकसाई णं भंते ! सकसाई त्ति कालओ केवचिरं होइ? बादर पृथ्वीकायिक जीवों का कथन सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के समान है। सूक्ष्म बादर अकायिक जीवों का कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के समान है। सूक्ष्म बादर तेजस्कायिक जीवों का कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के समान है, सूक्ष्म बादर वायुकायिक जीवों का कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान है। सूक्ष्म बादर साधारण प्रत्येक शरीर वनस्पतिकायिक जीवों का कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के समान है। द्वीन्द्रिय जीवों के चारों कषाय होते हैं। श्रीन्द्रिय जीवों के द्वीन्द्रिय जीवों के समान चारों कषाय होते हैं। चतुरिन्द्रिय जीवों के तेइन्द्रय जीवों के समान चारों कषाय होते हैं। सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकजलचरों के चारों कषाय होते हैं। स्थलचरों के जलचरों के समान चारों कषाय होते हैं। खेचरों के जलचरों के समान चारों कषाय होते हैं। गर्भव्युत्क्रान्तिक पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकजलचरों के चारों कषाय होते हैं। स्थलचरों के जलचरों के समान चारों कषाय होते हैं। खेचरों के जलचरों के समान चारों कषाय होते हैं। ३. मनुष्य-संमूर्छिम मनुष्यों में द्वीन्द्रियों के समान चारों कषाय होते हैं। प्र. भंते ! क्या गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य जीव क्रोध कषायी यावत् लोभकषायी और अकषायी होते हैं ? उ. गौतम ! सभी तरह के होते हैं। ४. देव-देवों में चारों कषाय होते हैं। सकषाय-अकषाय जीवों की कायस्थितिप्र. भंते ! सकषायी (जीव) सकषायी रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! सकषायी जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. अनादि अपर्यवसित, २. अनादि सपर्यवसित, ३. सादि-सपर्यवसित। उनमें जो सादि सपर्यवसित हैं उनकी जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट कायस्थिति अनन्त काल है अर्थात् अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल है और क्षेत्र से देशोन अपार्धपुद्गल-परावर्त पर्यन्त रहता है। उ. गोयमा ! सकसाई तिविहे पण्णत्ते,तं जहा १.अणाईए वा अपज्जवसिए, २.अणाईए वा सपज्जवसिए, ३.साईए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जे ते साईए सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतंकालं अणंताओ उस्सप्पिणी ओसप्पिणिओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढं पोग्गलपरियट्टदेसूणं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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