SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कषाय अध्ययन १०७३ ३. बलमए, ४. रूवमए, ३. बलमद, ४. रूपमद, ५. तवमए, ६. सुयमए, ५. तपोमद, ६. श्रुतमद, ७. लाभमए, ८. इस्सरियमए।' ७. लाभ मद ८. ऐश्वर्य मद। __-ठाणं.अ.८,सु.६०६ (ग) दसहिं ठाणेहिं अहमंतीति थंभिज्जा,तं जहा (ग) इन दस स्थानों (कारणों) से व्यक्ति 'मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूँ' ऐसा मानकर अभिमान करता है, यथा१. जाइमएण वा जाव ८.इस्सरियमएण वा, १. जातिमद से यावत् ८. ऐश्वर्य मद से, ९. णागसुवन्ना वा मे अंतिय हव्वमागच्छति ९. नागकुमार, सुवर्णकुमार आदि देव मेरे पास दौड़े आते हैं, १०. पुरिसधम्माओ वा मे उत्तरिए आहोहिए णाणदसणे १०. सामान्य जनों की अपेक्षा मुझे विशिष्ट अवधिज्ञान और समुप्पन्ने। -ठाणं.अ.१०,सु.७१० अवधिदर्शन उत्पन्न हुआ है। (इस प्रकार के भाव से मान की उत्पत्ति होती है।) ४. कसायकरण भेया चउवीसदंडएसुय परूवर्ण ४. कषायकरण के भेद और चौवीसदंडकों में प्ररूपणप. कइविहाणं भंते ! कसायकरणे पण्णते? प्र. भंते ! कषाय करण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गोयमा !कसायकरणे चउव्विहे पण्णत्ते,तं जहा उ. गौतम ! कषाय करण चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. कोहकसायकरणे, २. माणकसायकरणे, १. क्रोध कषाय करण, २. मान कषाय करण, ३. मायाकसायकरणे, ४. लोभकसायकरणे, ३. माया कषाय करण, ४. लोभ कषाय करण एए सव्वे नेरइयाई दंडगा जाव वेमाणियाणं जस्स जं ये सभी नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त दण्डकों में जानना अत्थितं तस्स सव्वं भाणियव्वं।-विया.स. १९, उ.९, सु.८ चाहिए किन्तु जिसके जो कषाय हो उसके वे सब कहना चाहिए। ५. कसायनिव्वत्ति भेया चउवीसदंडएसुय परूवर्ण ५. कषायनिवृत्ति के भेद और चौवीसदंडकों में प्ररूपणप. कइविहाणं भंते ! कसायनिव्वत्ति पण्णत्ता? प. भंते ! कषायनिवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है? उ. गोयमा !चउव्विहा कसायनिव्वत्ति पण्णत्ता,तं जहा उ. गौतम ! कषायनिर्वृत्ति चार प्रकार की कही गई हैं, यथा१. कोहकसायनिव्वत्ति १. क्रोधकषाय निवृत्ति, २. मान कसाय निव्वत्ति, २. मान कषाय निर्वृत्ति, ३. मायाकसायनिव्वत्ति, ३. माया कषाय निवृत्ति ४. लोभकसायनिव्वत्ति। ४. लोभकषाय निर्वृत्ति। दं.१-२४ एवंणेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। दं. १-२४-इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त कषाय -विया.स.१९, उ.८,सु.१९-२० निवृत्ति कहनी चाहिए। ६. कसायपइट्ठाण परूवणं ६. कषाय प्रतिष्ठान का प्ररूपणप. कइ पइट्ठिए णं भंते ! कोहे पण्णत्ते? प्र. भंते ! क्रोध किन आधारों पर प्रतिष्ठित कहा गया है? उ. गोयमा ! चउपइट्ठिए कोहे पण्णत्ते, तं जहा उ. गौतम ! क्रोध चार (निमित्तों) पर प्रतिष्ठित कहा गया है, यथा१. आयपइट्ठिए, २. परपइट्ठिए,२ १. आत्मप्रतिष्ठित, २. परप्रतिष्ठित, ३. तदुभयपइट्ठिए, ४. अपइट्ठिए।३ ३. उभय प्रतिष्ठित, ४. अप्रतिष्ठित। एवं रइयाईणं जाव वेमाणियाणं दंडओ। इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त दंडक कहने चाहिए। एवं माणेणं दंडओ, मायाए दंडओ, लोभेणं दंडओ। इसी प्रकार मान, माया और लोभ के लिए भी एक-एक दंडक -पण्ण.प.१४, सु. ९६० कहना चाहिये। ७. चउगइएसु कसाय परूवणं ७. चार गतियों में कषायों का प्ररूपण१. नेरइयाणं-चत्तारि कसाया १. नैरयिकों के चार कषाय कहे गये हैं। २. तिरिक्खजोणिएसु-एगिंदिय २. तिर्यग्योनियों में एकेन्द्रियप. सुहुमपुढविकाइया णं भंते ! जीवाणं कइ कसाया प्र. भंते ! सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के कितने कषाय कहे गये है ? पण्णत्ता? १. सम.सम.८,सु.१ २. ठाणं अ.२,उ.४,सु.१११ ३. ठाणं अ.४,उ.१,सु.२४९
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy