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________________ कषाय अध्ययन - १०७५) प. कोहकसाई णं भंते ! कोहकसाई त्ति कालओ केवचिरं होड? उ. गोयमा !जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त। एवं माणकसाई मायाकसाई वि। प. लोभकसाई णं भंते ! लोभकसाई त्ति कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुत्तं। प. अकसाई णं भंते !अकसाई त्ति कालओ केवचिर होइ? उ. गोयमा ! अकसाई दुविहे पण्णत्ते,तं जहा १. साईए वा अपज्जवसिए, २.साईए वा सपज्जवसिए। तत्थ णंजे से साईए सपज्जवसिए से जहण्णेणं एक समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्त। -पण्ण. प.१८, सु. १३३१-१३३४ ९. सकसाय-अकसाय जीवाणं अंतरकाल परूवणं १. कोहकसाई, २. माणकसाई, ३. मायाकसाईणं अंतरं जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं, ४. लोभकसाईस्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं, ५: अकसायिस्स साईए अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, साईए सपज्जवसियस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतंकालं। -जीवा. पडि. ९, सु. २४८ १०. सकसाय-अकसाय जीवाणं अप्पबहुत्तंप. एएसिणं भंते !जीवाणं १.सकसाईणं २. कोहकसाईण ३. माणकसाईणं,४. मायाकसाईणं, ५. लोभकसाईणं, ६. अकसाईण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा जीवा अकसाई, २. माणकसायी अणंतगुणा, ३. कोहकसायी विसेसाहिया, ४. मायाकसायी विसेसाहिया, ५. लोभकसायी विसेसाहिया,१ ६. सकसायी विसेसाहिया।२।। -पण्ण.प.३,सु.२५४ प्र. भंते ! क्रोध कषायी क्रोध कषायी के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! उसकी जघन्य और उत्कृष्ट कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त है, इसी प्रकार मानकषायी और मायाकषायी की कायस्थिति जाननी चाहिए। प्र. भंते ! लोभकषायी लोभ-कषायी के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक रहता है? प्र. भंते ! अकषायी-अकषायी के रूप में कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! अकषायी (जीव) दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा १. सादि-अपर्यवसित,२. सादि-सपर्यवसित। इनमें से जो सादि-सपर्यवसित है, वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक (अकषायी रूप में) रहता है। ९. सकषाय-अकषाय जीवों के अन्तर काल का प्ररूपण १. क्रोध कषायी, २. मान कषायी, ३. माया कषायी का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। ४. लोभकषायी का अन्तर जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त है। ५. सादि-अपर्यवसित अकषायी का अन्तर नहीं है, सादि-सपर्यवसित का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल है। १०. सकषाय-अकषाय जीवों का अल्पबहुत्वप्र. भंते ! इन १. सकषायी, २. क्रोधकषायी, ३. मानकषायी, ४. माया कषायी, ५. लोभकषायी और ६. अकषायी जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक है ? उ. गौतम ! १. सबसे थोड़े जीव अकषायी हैं, २. (उनसे) मानकषायी अनन्त गुणे हैं, ३. (उनसे) क्रोध कषायी विशेषाधिक हैं, ४. (उनसे) माया कषायी विशेषाधिक हैं, ५. (उनसे) लोभ कषायी विशेषाधिक हैं, ६. (उनसे) सकषायी विशेषाधिक हैं। १. जीवा. पडि.९,सु.२४८ २. सकसायी अणंतगुणा -जीवा. पडि.९, सु. २३२
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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