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________________ १०४२ उ. गोयमा ! णो इथिवेया, णो पुरिसवेया, नपुंसगवेया पण्ण्ता । प. दं. २ असुरकुमारा णं भंते! किं इथिवेया, पुरिसवेया, नपुंसगवेया पण्णत्ता? उ. गोयमा ! इथिवेया, पुरिसवेया, णो नपुंसगवेया पण्णत्ता? दं.३-११ एवं जाव थणियकुमारा। दं. १२-२१ पुढवी-आऊ-तेऊ-वाऊ-वणस्सई बि-तिचउरिदिय-सम्मुच्छिम-पंचेंदियतिरिक्ख-सम्मुच्छिम-मणुस्सा नपुंसगवेया, गब्भवक्कंतियमणुस्सा पंचिंदियतिरिक्खया यतिवेया। दं. २२-२४ जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरा जोइसिया-वेमाणिया वि। -सम. सु. १५६ ५. चउगइसु वेय परूवणं १. नेरइयाणं-नपुंसगवेया, -जीवा. पडि.१, सु.३२ २. तिरिक्खजोणिएसु-एगिंदिया प. सुहमपुढविकाइयाणं भंते ! जीवा किं इत्थिवेया, पुरिसवेया, नपुंसगवेया? उ. गोयमा ! नो इत्थिवेया, नो पुरिसवेया, नपुंसगवेया। -जीवा. पडि.१, सु.१३(११) बायरपुढविकाइया-जहा सुहुमपुढविकाइयाणं। -जीवा. पडि.१, सु.१५ सुहुम-बायर आउकाइया-जहा सुहुमपुढविकाइयाणं -जीवा. पडि. १, सु.१६-१७ सुहुम-बायर तेउकाइया जहा सुहुमपुढविकाइयाणं। -जीवा. पडि.१, सु. २४-२५ सुहुम-बायर वाउकाइया जहा सुहुमपुढविकाइयाणं। -जीवा. पडि. १, सु.२६ सुहम-बायर-साहारण-पत्तेय सरीर वणस्सइकाइयाजहा सुहमपुढविकाइयाणं। -जीवा. पडि. १, सु.२०-२१ (ख) बेइंदिया-नपुंसगवेया -जीवा. पडि.१, सु.२८ (ग) तेइंदिया-जहा बेइंदियाणं -जीवा पडि.१, सु. २९ (घ) चउरिंदिया-जहा तेइंदियाणं, -जीवा. पडि. १, सु.३० (ङ) सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया जलयरा-नपुंसगवेया -जीवा. पडि. १, सु. ३५ थलयरा-जहा जलयराणं' -जीवा. पडि. १, सु.३६ खहयरा-जहा जलयराणं -जीवा. पडि. १, सु. ३६ (च) गब्भवक्कंतियपंचेंदिय तिरिक्खजोणिया जलयरा-तिविहवेया- -जीवा. पडि. १, सु. ३८ थलयरा-जहा जलयराणं२ -जीवा. पडि. १, सु.३९ खहयरा-जहा जलयराणं -जीवा. पडि.१,सु.४० १-२. जीवा. पडि.३, उ.१, सु. ९७ (२) द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! नैरयिक न स्त्रीवेदक हैं, न पुरुषवेदक हैं किन्तु नपुंसकवेदक कहे गये हैं ? प्र. द. २ भंते ! क्या असुरकुमार स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक या नपुंसकवेदक कहे गये हैं? उ. गौतम ! स्त्रीवेदवाले हैं, पुरुषवेद वाले हैं, किन्तु नपुंसकवेद वाले नहीं हैं। दं. ३-११ इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए। दं. १२-२१ पृथ्वी, अप, तेजस् वायु, वनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, सम्मूर्छिम पंचेन्द्रियतिर्यञ्च और सम्मूर्छिम मनुष्य नपुंसक वेद वाले हैं। गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य और पंचेन्द्रियतिर्यञ्च तीनों वेद वाले हैं। दं. २२-२४ वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों का कथन असुरकुमारों के समान करना चाहिए। ५. चार गतियों में वेद का प्ररूपण १. नैरयिक-नपुंसकवेद वाले हैं। २. तिर्यञ्चयोनिक-एकेन्द्रिय प्र. भंते ! सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव क्या स्त्रीवेद वाले हैं, पुरुषवेद वाले हैं या नपुंसकवेद वाले हैं ? उ. गौतम ! न स्त्रीवेद वाले हैं, न पुरुषवेद वाले हैं, किन्तु नपुंसकवेद वाले हैं। बादर पृथ्वीकायिकों का कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान है। सूक्ष्म-बादर अप्कायिकों का कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान है। सूक्ष्म-बादर तेजस्कायिकों का कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान है। सूक्ष्म-बादर वायुकायिकों का कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान है। सूक्ष्म-बादर-साधारण, प्रत्येक वनस्पतिकायिकों का कथन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के समान है। (ख) द्वीन्द्रिय-नपुंसकवेद वाले हैं। (ग) त्रीन्द्रिय का कथन उसी प्रकार (द्वीन्द्रियों के समान) है। (घ) चतुरिन्द्रिय का कथन उसी प्रकार (त्रीन्द्रियों के समान) है। (ङ) सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर-नपुंसकवेद वाले हैं। स्थलचर-जलचरों के समान (नपुंसक वेद वाले) हैं। खेचर-जलचरों के समान (नपुंसक वेद वाले) हैं। (च) गर्भव्युत्क्रांतिक पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जलचर-तीनों वेद वाले हैं। स्थलचर-जलचरों के समान (तीनों वेद वाले) हैं। खेचर- जलचरों के समान (तीनों वेद वाले) हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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