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________________ वेद अध्ययन १०४१ २९. वेयऽज्झयणं २९. वेद-अध्ययन सूत्र १. वेद के तीन भेद प्र. भंते ! वेद कितने प्रकार के कहे गये हैं? उ. गौतम ! वेद तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा १. स्त्रीवेद, २. पुरुषवेद, ३. नपुंसकवेद। सूत्र १. वेयस्स तिविहा भेया प.. कइविहे णं भंते ! वेए पण्णत्ते? उ. गोयमा !तिविहे वेए पण्णत्ते, तं जहा१. इथिवेए, २.पुरिसवेए, ३. नपुंसगवेए। -सम. सु. १५६ वेयस्स-सरूवंप. इथिवेएणं भंते ! किं पगारे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! फुफुअग्गिसमाणे पण्णत्ते। -जीवा. पडि.२,सु.५१(२) प. पुरिसवेए णं भंते ! किं पगारे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! वणदवग्गिजालसमाणे पण्णत्ते। प. नपुंसगवेए णं भंते ! किं पगारे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! महाणगरदाहसमाणे पण्णत्ते समणाउसो। -जीवा. पडि. २, सु.६१(२) २. चउवीस दंडएसु वेय बंध परूवणं प. इथिवेयस्सणं भंते ! कइविहे बंधे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! तिविहे बंधे पण्णत्ते,तं जहा १.जीवप्पयोग बंधे, २.अणंतरबंधे,३. परंपरबंधे, प. असुरकुमाराणं भंते ! इत्थिवेयस्स कइविहे बंधे पण्णत्ते? वेद का स्वरूपप्र. भंते ! स्त्री वेद किस प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! फुफु-अग्नि अर्थात् कंडे की अग्नि के समान कहा गया है। प्र. भंते ! पुरुषवेद किस प्रकार का कहा गया है? उ, गौतम ! वन (तृण) दावाग्नि की ज्वाला के समान कहा गया है। प्र. भंते ! नपुंसकवेद किस प्रकार का कहा गया है ? उ. हे आयुष्मन् श्रमण गौतम ! महानगर के, दाह के समान कहा गया है। २. चौबीस दण्डकों में वेद बंध का प्ररूपण प्र. भंते ! स्त्रीवेद का बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! तीन प्रकार का बन्ध कहा गया है, यथा १. जीवप्रयोगबन्ध, २. अनंतरबंध, ३. परंपरबन्ध, प्र. भंते ! असुरकुमारों के स्त्रीवेद का बन्ध कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! पूर्ववत् (तीन प्रकार का है।) इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष-जिसके स्त्रीवेद है, (उसके लिए ही यह जानना चाहिए) इसी प्रकार पुरुषवेद एवं नपुंसकवेद (बन्ध) के विषय में भी वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष-जिसके जो वेद हो, वही कहना चाहिए। उ. गोयमा ! एवं चेव। एवं जाव वेमाणियाणं, णवरं-जस्स इस्थिवेदो अस्थि । एवं पुरिसवेदस्स वि नपुंसगवेदस्स वि जाव (१-२४) वेमाणियाणं, णवरं-जस्स जोअस्थि वेदो। -विया. स.२०, उ.७, सु. १२-१५ ३. बेयकरणभेया चउवीसदंडएसुय परूवणं प. कइविहे णं भंते ! वेयकरणे पण्णत्ते? उ. गोयमा ! तिविहे वेयकरणे पण्णत्ते,तं जहा १. इथिवेयकरणे, २. पुरिसवेयकरणे, ३. नपुंसगवेयकरणे। दं. १-२४ एए सव्वे नेरइयाई दंडगा जाव वेमाणियाणं, जस्स जं अत्थितं तस्स सव्वं भाणियव्वं । -विया.स.१९,उ.९,सु.८ ४. चउवीसदंडएसु वेय परूवणंप. दं. १ नेरइया णं भंते ! किं इत्थिया, पुरिसवेया, नपुंसगवेया पण्णत्ता। ३. वेदकरण के भेद और चौबीस दण्डकों में प्ररूपण प्र. भंते ! वेदकरण कितने प्रकार का कहा गया है? उ. गौतम ! वेदकरण तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १. स्त्रीवेदकरण , २. पुरुषवेदकरण, ३. नपुंसक वेदकरण। दं.१-२४ नैरयिकों से वैमानिकों पर्यन्त सभी दण्डकों में वेदकरण जानने चाहिए। किन्तु जिसके जो वेद हों, उसके वे सब वेदकरण कहने चाहिए। ४. चौबीस दंडकों में वेद का प्ररूपणप्र. दं. १ भंते ! क्या नैरयिक स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक या नपुंसकवेदक कहे गये हैं ?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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