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________________ ९५० अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुरायालएणं गाहावईण था, गाहावइपुत्ताण वा सयमेव अगणिकाएणं सस्साइं झामेइ, अणेण वि अगणिकाएणं सस्साई झामावेइ, अगणिकाएण सस्साई झामंत पि अण्णं समणुजाण । इड से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उबखाइत्ता भवइ । ३. से एगइओ केणइ आयाणेण विरुद्धे समाणे अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा, गाहावइपुत्ताण वा उट्टान बा, गोणाण वा, घोडगाण वा, गद्दभाण वा सयमेव घूराओ कप्पे, अण्गेण वि कप्पाड, कप्पंत्तं पि अण्णं समणुजाणइ । इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ । ४. से एगइओ केणइ आयाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा, गाहावइपुत्ताण वा उट्टसालाओ वा, गोणसालाओ था, घोडगसालाओ वा गद्दभसालाओ वा कंटगबोंदियाए पडिपेहित्ता, सयमेव अगणिकाएणं झामेइ, अण्णेण वि झामावेइ, झामंत पि अन्नं समणुजाणइ । इइ से महया पायेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइता भवइ । ५. से एगइओ केणइ आयाणेण विरुद्धे समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा, गाहावइपुत्ताण या कुंडलं वा मणिं वा, मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ, अन्नेण वि अवहरावेद, अवहरंतं पि अन्नं समणुजाणइ । इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ । ६. से एगइओ केणइ आयाणेणं विरुद्धे समाणे समणाणं वा, माहणाणं वा, छत्तगं वा, दंडगं वा, भंडगं वा, मत्तगं था, लट्ठिगं वा, भिसिंग वा, चेलगं या चिलिमिलिगं वा चम्मगं वा. चम्मच्छेदणगं वा, चम्मकोस वा सयमेव अवहरद अन्नेण वि अवहरावे. अवहरंतं पि अन्नं समणुजाणइ । इइ से मइया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ । 7 ७. से एगइओ णो वितिगिंछद गाडावईण वा गाहावइपुत्ताण वा. द्रव्यानुयोग - (२) अथवा खराब अन्नादि दे देने से सुरापात्र का अभीष्ट लाभ न होने देने से नाराज या कुपित होकर उस गृहपति के या गृहपति के पुत्रों के धान्यों को स्वयं आग लगाकर जला देता है, दूसरों से जलवा देता है, जलाने वाले को अच्छा समझता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। ३. कोई पापी पुरुष किसी कारण से विरुद्ध होने पर अथवा खराब अन्नादि दे देने से या सुरापात्र का अभीष्ट लाभ न होने देने से उस गृहपति के या गृहपति पुत्रों के ऊँट, बैल, घोड़े और गधे के अंगों को स्वयं काटता है। दूसरों से कटवाता है। काटने वाले को अच्छा समझता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों के कारण जगत् में महापापी के रूप में प्रसिद्ध हो जाता है। ४. कोई पापी पुरुष किसी कारण से विरुद्ध होने पर अथवा खराब अन्न आदि दे देने से या सुरापात्र का अभीष्ट लाभ न होने देने से उस गृहपति की या गृहपति के पुत्रों की उष्ट्रशाला, गौशाला, अश्वशाला या गर्दभशाला को काँटों से ढक कर स्वयं आग लगा कर जला देता है, दूसरों से जलवा देता है जलाने वाले को अच्छा समझता है। इस प्रकार वह महान् पाप कर्मों के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। ५. कोई पापी पुरुष किसी कारण से विरुद्ध होने पर अथवा खराब अन्न आदि दे देने से या सुरापात्र का अभिष्ट लाभ न होने देने से उस गृहपति के या गृहपति पुत्रों के कुण्डल, मणि या मोती का स्वयं अपहरण करता है, दूसरे से अपहरण कराता है, अपहरण करने वाले को अच्छा समझता है। इस प्रकार वह महान् पाप कर्मों के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। ६. कोई पापी पुरुष किसी कारण से विरुद्ध होने पर, श्रमणों या माहनों के छत्र, दण्ड, उपकरण, पात्र, लाठी, आसन, वस्त्र, पर्दा (मच्छरदानी), चर्म, चर्म-छेदनक (चाकु) या चर्मकोश (चमड़े की थैली) का स्वयं अपहरण कर लेता है, दूसरे से अपहरण करवाता है, अपहरण करने वाले को अच्छा जानता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। ७. कोई पापी पुरुष बिना विचारे किसी गृहपति के या गृहपति-पुत्रों के धान्यों को,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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