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________________ ९५१ क्रिया अध्ययन सयमेव अगणिकाएणं ओसहीओ झामेइ, अण्णेण वि झामावेइ, झामंतं पि अन्नं समणुजाणइ। इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। स्वयं आग लगाकर जला देता है, दूसरों से जलवा देता है जलाने वाले को अच्छा समझता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। ८.कोई पापी पुरुष बिना विचारे किसी गृहपति के या गृहपति पुत्रों के ऊँट, बैल, घोड़े और गधों के अंगों को स्वयं काटता है, ८. से एगइओ णो वितिगिंछइ गाहावईण वा, गाहवइपुत्ताण वा, उट्टाण वा, गोणाण वा, घोडगाण वा, गद्दभाण वा, सयमेव घुराओ कप्पेइ, अण्णेण वि कप्पावेइ, अण्णं पि कप्पंतं समणुजाणइ। इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। दूसरों से कटवाता है, काटने वाले को अच्छा समझता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। ९. कोई पापी पुरुष बिना विचारे किसी गृहपति की या गृहपति के पुत्रों की उष्ट्रशाला, गौशाला, अश्वशाला या गर्दभशालाओं को कांटो से ढक कर स्वयं आग लगाकर जला देता है। ९. से एगइओ णो वितिगिंछइ गाहावईण वा, गाहावइपुत्ताण वा, उट्टसालाओ वा, गोणसालाओ वा, घोडगसालाओ वा, गद्दभसालाओ वा, कंटगबोंदियाए पडिपेहित्ता, सयमेव अगणिकाएणं झामेइ, अण्णेण वि झामावेइ, झामतं पि अन्नं समणुजाणइ। इइ से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। १०. से एगइओ णो वितिगिंछइ गाहावईण वा, गाहावइपुत्ताण वा, कुंडलं वा,मणिं वा,मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ, अन्नेण वि अवहरावेइ, अवहरंतं पि अन्नं समणुजाणइ। इइ से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। दूसरों से जलवा देता है जलाने वाले को अच्छा समझता है। इस प्रकार वह महान् पाप कर्मों के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। १०. कोई पापी पुरुष बिना विचारे गृहपति या गृहपतिपुत्रों के कुण्डल मणि या मोती का स्वयं अपहरण करता है, दूसरों से अपहरण करवाता है अपहरण करने वाले को अच्छा समझता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। ११. कोई पापी पुरुष बिना विचारे श्रमणों या माहनों के छत्र, दण्ड, उपकरण, पात्र, लाठी, आसन, वस्त्र, पर्दा, चर्म, चर्मछेदनक या चर्मकोश का स्वयं अपहरण करता है। ११.से एगइओ णो वितिगिंछइ, समणाण वा,माहणाण वा, छत्तगंवा, दंडगं वा, भंडगं वा, मत्तगंवा,लट्ठिगं वा, भिसिगं वा, चेलगं वा, चिलिमिलिगं वा, चम्मगं वा, चम्मच्छेदणगं वा, चम्मकोसियं वा-सयमेवअवहरइ अण्णेण वि अवहरावेइ, अवहरंतं पि अन्नं समणुजाणइ। इइ से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। १२. से एगइओ समणं वा, माहणं वा, दिस्सा णाणाविहेहिं पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। अदुवा णं अच्छराए आफालेत्ता भवइ, अदुवा णं फरुसं वदित्ता भवई, कालेण वि से अणुपविट्ठस्स असणं वा जाव साइमं वा णो दव्वावेत्ता भवइ। जे इमे भवंति-वोण्णमंता भारोक्कंता अलसगा वसलगा किमणगा समणगा पव्वयंती ते इणमेव जीवियं धिज्जीवियं संपडिबूहेति। दूसरों से अपहरण करवाता है, अपहरण करने वाले को अच्छा समझता है। इस प्रकार वह महान् पाप कर्मों के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। १२. कोई पुरुष श्रमण या ब्राह्मण को देखकर नाना प्रकार के पापकर्म करने वाले के रूप में अपने आपको प्रख्यात करता है, अथवा चुटकियां बजाता है, अथवा कठोर वचन बोलता है, समय पर घर आए हुए को अशन यावत् स्वाध नहीं देने देता है, वह कहता है-"जो ये होते हैं लकड़हारे, भार ढोने वाले, आलसी, शूद्र, नपुसंक याचक वे इस धिक्कारपूर्ण जीविका वाले जीवन को चलाते हैं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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