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________________ क्रिया अध्ययन ९४९ ८. से एगइओ वागुरियभावं पडिसंधाय मिगं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। ९. से एगइओ साउणियभावं पडिसंधाय सउणिं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। १०. से एगइओ मच्छियभावं पडिसंधाय मच्छं वा अण्णयर वा तसं पाणं हंता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। ११. से एगइओ गोपालगभावं पडिसंधाय तमेव गोणं वा परिजविय परिजविय हंता जाव उद्दवइत्ता आहार आहारेइ। इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। १२. से एगइओ गोघातगभावं पडिसंधाय गोणं वा अण्णयर वा तसं पाणं हंता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। ८. कोई पापी मनुष्य शिकारी का धन्धा अपनाकर मृग या अन्य किसी त्रस प्राणी को मार-पीट कर यावत् जीवन रहित कर अपनी आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों के कारण जगत् में वह स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है। ९. कोई पापी मनुष्य बहेलिया बनकर पक्षियों को या अन्य किसी त्रस प्राणी को मारकर यावत् जीवन रहित कर अपनी आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों के कारण जगत् में स्वयं को महापापी के नाम से प्रख्यात कर लेता है। १०. कोई पापी मनुष्य मछुआ बनकर मछली या अन्य त्रस जलजन्तुओं को मारकर यावत् जीवन रहित कर अपनी आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों के कारण जगत् में स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है। ११. कोई पापी मनुष्य गो पालन का धन्धा स्वीकार करके (कुपित होकर) उन्हीं गायों या उनके बछड़ों को टोले से पृथक् निकालनिकाल कर बार-बार उन्हें मारता-पीटता है यावत् जीवन रहित कर अपनी आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पाप कर्मों के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। १२. कोई पापी मनुष्य गोवंशघातक (कसाई) का धन्धा अपना कर गाय, बैल या अन्य किसी भी त्रस प्राणी को मारकर यावत् जीवन रहित कर अपनी आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पाप कर्मों के कारण जगत् में अपने आपको महापापी के रूप में प्रसिद्ध कर लेता है। १३. कोई पापी मनुष्य कुत्ते पालने का धन्धा अपना कर उनमें किसी कुत्ते को या अन्य किसी त्रस प्राणी को मारकर यावत् जीवन रहित कर अपनी आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों के कारण जगत् में स्वयं को महापापी के रूप में प्रसिद्ध कर लेता है। १४. कोई पापी मनुष्य शिकारी कुत्तों से शिकार करवाने का व्यवसाय अपनाकर मनुष्य या अन्य प्राणी को मारकर यावत् जीवन रहित कर अपनी आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों के कारण जगत् में महापापी के रूप में प्रसिद्ध हो जाता है। १. कोई पापी पुरुष परिषद् के बीच में उठकर कहता है कि-"मैं इस प्राणी को मारता हूँ।" तत्पश्चात् वह तीतर, बतख, चिड़ी, लावक, कबूतर, कपि, पपीहा या अन्य किसी त्रसजीव को मारता है यावत् प्राणरहित करके उसका आहार करता है। इस प्रकार वह महान् पाप कर्मों के कारण जगत् में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। २. कोई पापी पुरुष किसी से विरुद्ध होने पर कोई कारण से इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। १३. से एगइओ सोवणियभावं पडिसंधाय सुणगं वा अण्णयर वा तसं पाणं हंता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। १४. से एगइओ सोवणियंतियभावं पडिसंधाय मणुस्सं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उद्दवइत्ता आहार आहारेइ। इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। १. से एगइओ परिसामज्झाओ उठ्ठित्ता अहमेयं हणामि त्ति कटु तित्तिरं वा, वट्टगं वा, चडगं वा, लावगं वा, कवोयगं वा, कविं वा, कविंजलं वा अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। २.से एगइओ केणइ आयाणेणं विरुद्ध समाणे
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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