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________________ ( ९४८ ८. अदुवा वागुरिए, ९. अदुवा साउणिए, १०. अदुवा मच्छिए, ११. अदुवा गोपालए, १२. अदुवा गोघायए, १३.अदुवा सोवणिए,१४.अदुवा सोवणियं तिए। १. से एगइओ अणुगामियभावं पंडिसंधाय तमेव अणुगमियाणुगमिय हंता छेत्ता भेत्ता लुपइत्ता विलुपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। २. से एगइओ उवचरगभावं पडिसंधाय तमेव उवचरइ हता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। ३. से एगइओ पाडिपहियभावं पडिसंधाय तमेव पडिपहे ठिच्चा हंता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। - द्रव्यानुयोग-(२)] ८. अथवा वागुरिक (मृगों को पकड़ने वाला) बनकर, ९. अथवा शाकुनिक (पक्षियों को जाल में फंसाने वाला) बनकर, १०.अथवा मात्स्यिक (मच्छीमार) बनकर,११.अथवा गोपालक बनकर, १२. अथवा गौघातक (कसाई) बनकर, १३. अथवा श्वपालक (कुत्तों को पालने वाला) बनकर, १४. अथवा शौवनिकान्तिक (कुत्तों से शिकार करवाने वाला) बनकर १. कोई पापी पुरुष ग्रामान्तर जाते हुए किसी धनिक के पीछे-पीछे जाकर उसे डंडे से मारता है,(तलवार आदि से) छेदन करता है, (भाले आदि से) भेदन करता है, (केश आदि पकड़कर) घसीटता है, (चाबुक आदि से मारकर) उसे जीवन रहित कर उसके धन को लूट कर आजीविका करता है। इस प्रकार वह महान् पाप कर्मों के कारण महापापी के नाम से अपने आपको जगत् में प्रख्यात कर लेता है। २. कोई पापी पुरुष किसी धनवान का सेवक होकर उसका पीछा करता हुआ उसको डंडे आदि से मारकर यावत् जीवन रहित कर धन छीन कर आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पापकर्मों से महापापी के रूप में अपने आपको जगत् में प्रख्यात कर लेता है। ३. कोई पापी पुरुष लुटेरे का भाव बनाकर ग्राम से आते हुए किसी धनाढ्य पुरुष का मार्ग रोक कर उसे डंडे आदि से मारकर यावत जीवन रहित कर धन छीन कर आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पाप कर्मों से अपने आपको महापापी के रूप में जगत् में प्रसिद्ध करता है। ४. कोई पापी पुरुष धनिकों के घरों में सेंध लगाकर, प्राणियों का छेदन, भेदन कर यावत् उन्हें जीवन रहित कर उनका धन छीनकर आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पाप कर्मों से स्वयं को महापापी के नाम से जगत् में प्रसिद्ध करता है। ५. कोई पापी पुरुष धनाढ्यों के धन की गांठ काटने का धन्धा अपना कर उसके स्वामी का छेदन-भेदन कर यावत् उन्हें जीवन रहित कर उनका धन छीनकर आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पाप कर्मों के कारण वह स्वयं को महापापी के रूप में जगत् में विख्यात कर लेता है। ६. कोई पापी पुरुष भेड़ों का चरवाहा बनकर उन भेड़ों में से किसी को या अन्य किसी भी त्रस प्राणी को मार-पीटकर यावत उन्हें जीवन रहित कर उनका मांस खाता है या उनका मांस बेचकर आजीविका चलाता है। इस प्रकार वह महान पापकर्मों के कारण जगत् में स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है। ७. कोई पापी पुरुष सुअरों को पालने का या कसाई का धन्धा अपना कर भैंसे, सुअर या दूसरे त्रस प्राणी को मार-पीट कर यावत् उन्हें जीवन रहित कर अपनी आजीविका का उपार्जन करता है। इस प्रकार वह महान् पाप-कर्मों के कारण संसार में अपने आपको महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है। ४. से एगइओ संधिच्छेदगभावं पडिसंधाय तमेव संधिं छेत्ता भेत्ता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। ५. से एगइओ गंठिच्छेदगभावं पडिसंधाय तमेव गंठिं छेत्ता भेत्ता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। ६. से एगइओ उरब्भियभावं पडिसंधाय उरब्भं वा, अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ। ७. से एगइओ सोयरियभावं पडिसंधाय महिसं वा। अण्णयरं वा तसं पाणं हंता जाव उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ। इइ से महया पावेहि कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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