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________________ ९३६ से कहमेयं भंते ! एवं? उ. गोयमा ! जन्नं से अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेंतिएवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ, तहेव जाव सम्मत्तकिरियं च, मिच्छत्तकिरियं च। जे ते एवमाहंसुतं णं मिच्छा। अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि द्रव्यानुयोग-(२) भंते ! उनका यह कथन कैसा है ? उ. गौतम ! जो अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं किएक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है उसी प्रकार यावत् सम्यक्त्वक्रिया और मिथ्यात्वक्रिया। जो वे इस प्रकार कहते हैं वह मिथ्या है। गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करता हूँ कि"एक जीव एक समय में एक क्रिया करता है, यथा एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं किरियं पकरेइ, तं जहा१. समत्तकिरियं वा, २. मिच्छत्तकिरियं वा। १. जं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेइ नो तं समयं मिच्छत्तकिरियं पकरेइ, २. जं समय मिच्छत्तकिरियं पकरेइ, नो तं समयं सम्मत्तकिरियं पकरेइ, सम्मत्तकिरिया पकरणयाए, नो मिच्छत्तकिरियं पकरेइ, मिच्छत्तकिरिया पकरणयाए, नो सम्मत्तकिरियं पकरेइ, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एग किरियं पकरेइ, तं जहासम्मत्तकिरियं वा, मिच्छत्तकिरियं वा। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १०४ प. अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेंति? १. सम्यक्त्वक्रिया या. २. मिथ्यात्वक्रिया। १. जिस समय सम्यक्त्व क्रिया करता है उस समय मिथ्यात्वक्रिया नहीं करता। २. जिस समय मिथ्यात्वक्रिया करता है उस समय सम्यक्त्व क्रिया नहीं करता। सम्यक्त्वक्रिया करते हुए मिथ्यात्वक्रिया नहीं करता, मिथ्यात्वक्रिया करते हुए सम्यक्त्वक्रिया नहीं करता। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है, यथासम्यक्त्वक्रिया या मिथ्यात्वक्रिया। प्र. भंते ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं किएक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है, यथा एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ तं जहा१. इरियावहियं च, २. संपराइयं च। १. जं समयं इरियावहियं पकरेइ, तं समयं संपराइयं पकरेइ, २. जं समयं संपराइयं पकरेइ, तं समयं इरियावहियं पकरेइ, इरियावहियाए पकरणयाए संपराइयं पकरेइ, संपराइयाए पकरणयाए इरियावहियं पकरेइ, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ, तं जहा१. इरियावहियं च, २. संपराइयं च। से कहमेयं भंते ! एवं? उ. गोयमा ! जंणं ते अण्णउत्थिया एवमाइक्खंति जाव एवं परूवैति एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेइ,तं जहा१. इरियावहियं च, २. संपराइयं च। जे ते एवमाहंसुतं णं मिच्छा। अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि १. ईर्यापथिक और २. साम्परायिक। १. जिस समय ईर्यापथिक क्रिया करता है, उसी समय साम्परायिक क्रिया भी करता है। २. जिस समय साम्परायिक क्रिया करता है, उसी समय ईर्यापथिक क्रिया भी करता है। ईर्यापथिक क्रिया करते हुए साम्परायिक क्रिया करता है। साम्परायिक क्रिया करते हुए ईर्यापथिक क्रिया करता है। इस प्रकार एक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है, यथा १. ईर्यापथिक और २. साम्परायिक। भंते ! उनका यह कथन कैसा है? उ. गौतम ! जो अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि-एक जीव एक समय में दो क्रियाएँ करता है, यथा१. ईर्यापथिक और २. साम्परायिक। जो वे इस प्रकार कहते हैं वह मिथ्या है। गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करता हूँ कि १. विया. स.७, उ. ४, सु.१
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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