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________________ क्रिया अध्ययन ९३७ "एक जीव एक समय में एक क्रिया करता है", यथा १. ईर्यापथिक या २. साम्परायिक। जिस समय ईर्यापथिक क्रिया करता है उस समय साम्परायिक क्रिया नहीं करता, जिस समय साम्परायिक क्रिया करता है उस समय ईर्यापथिक क्रिया नहीं करता। ईर्यापथिक क्रिया करते हुए साम्परायिक क्रिया नहीं करता, साम्परायिक क्रिया करते हुए ईर्यापथिक क्रिया नहीं करता, इस प्रकार एक जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है, यथा१. ईर्यापथिक या २. साम्परायिक। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एग किरियं पकरेइ, तं जहा१. इरियावहियं वा २. संपराइयं वा। जं समयं इरियावहियं पकरेइ, नो तं समयं संपराइयं पकरेइ, जं समयं सपंराइयं पकरेइ, नो तं समयं इरियावहियं पकरेइ। इरियावहियाएपकरणयाए नो संपराइयं पकरेइ, संपराइयाए पकरणयाए नो इरियावहियं पकरेइ, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एग किरियं पकरेइ, तं जहा१. इरियावहियं वा २. संपराइयं वा। -विया.स.१,उ.१०.सु.२ ५१. कज्जमाणी दुक्ख निमित्ता किरियाप. अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति, "पुब्बिं किरिया दुक्खा, कज्जमाणी किरिया अदुक्खा, किरिया समय विइक्कंतं च णं कडा किरिया दुक्खा," जा सा पुब्बिं किरिया दुक्खा, कज्जमाणी किरिया अदुक्खा, किरियासमयविइक्वंतं च णं कडा किरिया दुक्खा, सा किं करणओ दुक्खा अकरणओ दुक्खा? अकरणओ णं सा दुक्खा, णो खलु सा करणओ दुक्खा, सेवं वत्तव्वं सिया। अकिच्चं दुक्खं, अफुसं दुक्खं, अकज्जमाणकडं दुक्खं अकटु पाण-भूय-जीव-सत्ता वेयणं वेदेंतीति वत्तव्वं-सिया। से कहमेयं भंते ! एवं? उ. गोयमा ! ज णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव वेयणं वेदेंतीति वत्तव्यं सिया। जे ते एवमाहंसु ते मिच्छा। अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव एवं परूवेमि'पुव्विं किरिया अदुक्खा, कज्जमाणी किरिया दुक्खा, किरियासमयविइक्कंतं च णं कज्जमाणी किरिया अदुक्खा। जा सा पुव्विं किरिया अदुक्खा, कज्जमाणी किरिया दुक्खा, किरियासमयविइक्कंतं च णं कज्जमाणी किरिया अदुक्खा। सा किं करणओ दुक्खा, अकरणओ दुक्खा? करणओ णं सा दुक्खा नो खलु सा अकरणओ दुक्खा-सेवं वत्तव्यं सिया। किच्चं दुक्खं, फुसं दुक्खं, कज्जमाणकडं दुक्खं कटु पाण-भूय-जीव-सत्ता वेयणं वेदेंती ति वत्तव्वं सिया। -विया. स. १, उ. १०,सु.१ १. ठाणं अ. ३, उ.३,सु. १७५ ५१. क्रियमाण क्रिया दुःख का निमित्तप्र. भंते। अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते है यावत् प्ररुपणा करते हैं कि-“करने से पूर्व की गई क्रिया दुःखरूप है, की जाती हुई क्रिया दुःखरूप नहीं है, करने का समय बीत जाने के बाद की कृत क्रिया दुःखरूप है।" वह जो पूर्व की क्रिया है, वह दुःख रूप है, की जाती हुई क्रिया दुःखरूप नहीं है और करने के बाद की कृत क्रिया दुःखरूप है, तो क्या वह करने से दुःखरूप है या न करने से दुःखरूप है? न करने से वह क्रिया दुःखरूप है और करने से दुःखरूप नहीं है ऐसा कहना चाहिए। अकृत्य दुःख है, अस्पृष्य दुःख है और अक्रियमाणकृत दुःख है ऐसा न कहकर प्राण, भूत, जीव और सत्व वेदना भोगते हैं ऐसा कहना चाहिए। तो भंते ! क्या अन्यतीर्थिकों का यह मत सत्य है? उ. गौतम ! जो वे अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत् (प्राणादि) वेदना वेदते हैं ऐसा कहना चाहिए। जो ऐसा कहते हैं वे मिथ्या कहते हैं, गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ यावत् प्ररुपणा करता हूँ कि"पूर्व की क्रिया दुःखमय नहीं है, की जाती हुई क्रिया दुःखरूप है, करने का समय बीत जाने के बाद की कृत क्रिया दुःखरूप नहीं है। वह जो पूर्व की क्रिया है वह दुःखरूप नहीं है, की जाती हुई क्रिया दुःखरूप है और करने के बाद की कृत क्रिया दुःखरूप नहीं है। वह करने से दुःखरूप है या नहीं करने से दुःखरूप है? वह करने से दुःखरूप है, नहीं करने से दुःखरूप नहीं है ऐसा कहना चाहिए। कृत्य दुःख है, स्पृष्य दुःख है, क्रियमाण कृत दुःख है और (क्रियाएँ आदि) करके प्राण, भूत, जीव और सत्व वेदना भोगते हैं, ऐसा कहना चाहिए।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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