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________________ क्रिया अध्ययन ९१३ ते वियणं जीवा काइयाए जाय पाणाइवायकिरियाए पंचहि किरियाहिं पुट्ठा, जे वि य से जीवा अहे वीससाए पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे वटैंति, ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा। -विया. स. १७, उ. १, सु. ८-९ २५. रुक्खमूलाइ पवाडमाणस्स पुरिसस्स किरियापरूवणं- प. पुरिसे णं भंते ! रुक्खस्स मूलं पचालेमाणे वा, पवाडेमाणे वा कइ किरिए? उ. गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे रुक्खस्स मूलं पचालेइ वा, पवाडेइ वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाएपंचहिं किरियाहिं पुढे, जेसिं पि य णं जीवाणं सरीरेहिंतो मूले निव्वत्तिए जाव बीए निव्वत्तिए ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाएपंचहिं किरियाहिं पुट्ठा। प. अहे णं भंते ! से मूले अप्पणो गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेइ तओ णं भंते ! से पुरिसे कइ किरिए? वे जीव कायिकी यावत प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। जो जीव स्वाभाविक रूप से नीचे पड़ते हुए ताड़फल के सहायक होते हैं, वे जीव भी कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। २५. वृक्षमूलादि को गिराने वाले पुरुष की क्रियाओं का प्ररूपणप्र. भंते ! कोई पुरुष वृक्ष के मूल को हिलाए या गिराए तो उसको कितनी क्रियाएं लगती हैं ? उ. गौतम ! जब वह पुरुष वृक्ष के मूल को हिलाता या गिराता है तब वह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीरों से मूल यावत् बीज निष्पन्न हुए हैं, वे जीव भी कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते ! यदि वह मूल अपने भारीपन के कारण नीचे गिरे यावत् जीवों का हनन करे तब उस पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं? उ. गौतम ! जब मूल अपने भारीपन के कारण नीचे गिरता है यावत् अन्य जीवों का हनन करता है, तब वह पुरुष कायिकी यावत् पारितापनिकी इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से वह कन्द यावत् बीज निष्पन्न हुआ है, वे जीव कायिकी यावत् पारितापनिकी इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। जिन जीवों के शरीरों से मूल निष्पन्न हुआ है, वे जीव कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। उ. गोयमा ! जावं च णं से मूले अप्पणो गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेइ, तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पारितावणियाए चउहिं किरियाहिं पुढे, जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिंतो कंदे निव्वत्तिए जाव बीए निव्वत्तिए, ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पारितावणियाए चउहि किरियाहिं पुट्ठा, जे सिं पि य णं जीवा णं सरीरेहिंतो मूले निव्वत्तिए, ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा, जे वि य णं से जीवा अहे वीससाए पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे वटैंति। ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहिँ किरियाहिं पुट्ठा। प. पुरिसे णं भंते ! रुक्खस्स कंदे पचालेमाणे वा, पवाडेमाणे वा कइ किरिए? उ. गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे कंदे पचालेमाणे वा, पवाडेमाणे वा, तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवाय किरियाए पंचहि किरियाहिं पुढे, जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिंतो कंदे निव्वत्तिए जाव बीए निव्वत्तिए, ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवाय किरियाए पंचहि किरियाहिं पुट्ठा। प. अहे णं भंते ! से कंदे अप्पणो गरुयत्ताए जाव जीवयाओ ववरोवेइ तओ णं भंते ! से पुरिसे कइ किरिए? जो जीव स्वाभाविक रूप से नीचे गिरते हुए मूल के सहायक होते हैं, वे जीव कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते ! कोई पुरुष वृक्ष के कन्द को हिलाए या गिराए तो उसको कितनी क्रियाएं लगती हैं ? उ. गौतम ! जब वह पुरुष कन्द को हिलाता या गिराता है, तब वह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से कन्द यावत् बीज निष्पन्न होता है, वे जीव कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी की इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते ! यदि वह कन्द अपने भारीपन के कारण नीचे गिरे यावत जीवों का हनन करे तो उस पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं?
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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