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________________ ९१२ उ. हंता, गोयमा ! अस्थि प सा भंते! किं पुट्ठा करजई, अपुट्ठा करणार ? उ. गोयमा ! जहा पाणाड़वाएणं दंडओ एवं मुसावाएण वि। " एवं अविण्णादाणेण वि मेहुणेण वि परिग्गहेण वि एवं एए पंच दंडगा । प. जं समयं णं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ, अपुट्ठा कज्जइ ? उ. गोयमा ! एवं तहेव जाव वत्तव्वं सिया । एवं जाय वैमाणियाणं। एवं जाय परिग्गणं । एए वि पंच दंडगा प. जं देखें णं भंते! जीवाण पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ. सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ, अपुट्ठा कज्जइ ? उ. गोयमा ! एवं जाव परिग्गहेणं । एवं एए वि पंच दंडगा । प. जं पदेसं णं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ, अपुट्ठा कज्जइ ? उ. गोयमा ! एवं तहेव दंडओ। एवं जाब परिग्गणं । एवं एए बीसं दंडगा -विया. स. १७, उ. ४, सु. २- १२ २४. तालफलपवाडमाणस्स पुरिसस्स किरिया परूवणंप. पुरिसे णं भंते ! तालमारूहइ, तालमारूहित्ता तालाओ तालफलं पचालेमाणे वा, पवाडेमाणे वा कइ किरिए ? उ. गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे तालमारूड, तालमारूहित्ता ! तालाओ तालफलं पचालेइ वा, पवाडेइ वा, तावं चणं से पुरिसेकाइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुट्ठे, जेसिं पि य णं जीवाणं सरीरेहिंतो वाले निव्यत्तिए, तालफले निव्यत्तिए से विणं जीवा काइयाए जाय पाणाइवाय किरियाए पंचहि किरियाहिं पुट्ठा। प. अहे णं भंते! से तालफले अप्पणी गरुयत्ताए जाव अहे वीससाए पच्चोवयमाणे जाई तत्थ पाणाई जाव सत्ताई जीवियाओ ववरोवेइ तणं भंते ! से पुरिसे कइ किरिए ? उ. गोयमा ! जावं च णं से तालफले अप्पणी गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेइ, तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पारितायणियाए चउहि किरियाहिं पुट्ठे, सिंपिणं जीवाणं सरीरेहिंतो ताले निव्वत्तिए, ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पारितावणियाए चउहि किरियाहिं पुट्ठा, जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिंतो तालफले निव्यत्तिए, द्रव्यानुयोग - (२) उ. हां, गौतम ! करते हैं। प्र. भंते ! वह क्रिया स्पृष्ट है या अस्पृष्ट है ? उ. गौतम ! जैसे प्राणातिपात का दण्डक कहा उसी प्रकार मृषावाद - क्रिया का भी दण्डक कहना चाहिए। इसी प्रकार अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह क्रिया के विषय में भी जान लेना चाहिए। इस प्रकार ये पांच दण्डक हुए। प्र. भंते! जिस समय जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं, क्या उस समय वे स्पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट क्रिया करते हैं ? उ. गौतम ! पूर्वोक्त प्रकार से "अनानुपूर्वीकृत नहीं है पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। इसी प्रकार पारिग्रहिकी क्रिया पर्यन्त कहना चाहिए। इस प्रकार ये पांच दण्डक हुए। प्र. भंते! जिस देश (क्षेत्र) में जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं क्या उस देश में वे स्पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट क्रिया करते हैं? उ. गौतम ! पूर्ववत् पारिग्रहिकी क्रिया पर्यन्त जानना चाहिए। इस प्रकार ये पांच दण्डक हुए। प्र. भंते! जिस प्रदेश में जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं, उस प्रदेश में वे स्पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट क्रिया करते हैं ? उ. गौतम ! इसी प्रकार पूर्ववत् दण्डक कहना चाहिए । इसी प्रकार पारिग्रहिकी क्रिया पर्यन्त जानना चाहिए। इस प्रकार ये कुल बीस दण्डक हुए। २४. ताड़फल गिराने वाले पुरुष की क्रियाओं का प्ररूपणप्र. भंते ! कोई पुरुष ताड़ के वृक्ष पर चढ़े और चढ़कर फिर उस ताड़ के फल को हिलाए या गिराए तो उस पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती है? उ. गौतम ! जब वह पुरुष ताड़ के वृक्ष पर चढ़ता है और चढ़कर उस ताड़ वृक्ष से ताड़ फल को हिलाता है और गिराता है, तब यह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीरों से ताड़वृक्ष और ताड़ फल बना है, वे जीव भी कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते ! ( उस पुरुष द्वारा तालवृक्ष के हिलाने पर ) जो वह ताड़फल - अपने भार से यावत् अपने आप गिरने से वहां के प्राणी यावत् सत्व जीव रहित होते हैं तब भंते ! उस पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? उ. गौतम (पुरुष द्वारा ताड़वृक्ष के हिलाने पर) जो वह ताड़फल अपने भार से गिरे यावत् जीवन से रहित करता है तो वह पुरुष कायिकी यावत् पारितानिकी इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीरों से ताड़वृक्ष निष्पन्न हुआ है, वे जीव कायिकी यावत् पारितापनिकी इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। जिन जीवों के शरीरों से ताड़फल निष्पन्न हुआ है,
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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