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________________ द्रव्यानुयोग-(२) उ. गौतम ! जब वह कंद अपने भारीपन के कारण नीचे गिरता है यावत् अन्य जीवों का हनन करता है। तब वह पुरुष कायिकी यावत् पारितापनिकी इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीरों से मूल, स्कन्ध यावत् बीज निष्पन्न [ ९१४ । उ. गोयमा ! जावं च णं से कंदे अप्पणो गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेइ, तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पारितावणियाए चउहिं किरियाहिं पुढे, जेसिं पि य णं जीवा णं सरीरेहिंतो मूले निव्वत्तिए, कंदे निव्वत्तिए जाव बीए निव्वत्तिए ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पारितावणियाए चउहिं किरियाहिं पुट्ठा, जेसिं पि य णं जीवा णं सरीरेहिंतो कंदे निव्वत्तिए जाव बीए निव्वत्तिए ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा, जे वि य से जीवा अहे वीससाए पच्चोवमयमाणस्स उवग्गहे वटंति, ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहि किरियाहिं पुट्ठा। जहा कंदे एवं जाव बीयं। -विया. स.१७, उ.१,सु. १०-१४ वे जीव कायिकी यावत् पारितापनिकी इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं, जिन जीवों के शरीरों से कन्द यावत् बीज निष्पन्न हुए हैं वे जीव कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। जो जीव स्वाभाविक रूप से नीचे गिरते हुए कन्द के सहायक होते हैं, वे जीव कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। जिस प्रकार कन्द के विषय में आलापक कहा, उसी प्रकार (स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल) यावत् बीज के विषय में भी कहना चाहिए। २६. पुरुष को मारने वाले की क्रियाओं का प्ररूपणप्र. भंते ! कोई पुरुष किसी पुरुष को भाले से मारे या अपने हाथ से तलवार द्वारा उसका मस्तक काटे तो भंते ! उस पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं? उ. गौतम ! जब वह पुरुष उस पुरुष को भाले द्वारा मारता है या अपने हाथ से तलवार द्वारा उसका मस्तक काटता है, तब वह पुरुष कायिकी यावत प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। तत्काल मारने वाला एवं दूसरे के प्राणों की परवाह न करने वाला वह (पुरुष) पुरुष-वैर से स्पृष्ट होता है। २६. पुरिसवधकस्स किरिया परूवणंप. पुरिसे णं भंते ! पुरिसं सत्तीए समभिधंसेज्जा, सयपाणिणा वा से असिणा सीसं छिंदेज्जा तओ णं भंते ! से पुरिसे कइ किरिए? उ. गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे तं पुरिसं सत्तीए समभिधंसेइ, सयपाणिणा वा से असिणा सीसं छिंदइ, तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुढें। आसन्नवहएण य अणवकखणवत्तीएणं पुरिसवेरेणं पुढें। -विया.स.१,उ.८,सु.८ २७. धणुपक्खेवगस्स किरिया परूवणंप. पुरिसे णं भंते ! धणु परामुसइ, परामुसित्ता उसु परामुसइ, उसुं परामुसित्ता ठाणं ठाइ, ठाणं ठिच्चा आययकण्णाययं उसु करेइ आययकण्णाययं उसुं करेत्ता उड्ढं वेहासं उसुं उव्विहइ, तएणं से उसु उड्ढं वेहासं उव्विहए समाणे जाई तत्थ पाणाई जाव सत्ताइं अभिहणइ जाव जीवियाओ ववरोवेइ,तएणं भंते ! से पुरिसे कइ किरिए? उ. गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे धणुं परामुसइ जाव जीवियाओ ववरोवेइ, तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहिँ किरियाहिं पुढे, जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिंतो धणुं निव्वत्तिए ते वि य णं जीवा काइयाए जाव पाणाइवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं २७. धनुष प्रक्षेपक की क्रियाओं का प्ररूपणप्र. भंते ! कोई पुरुष धनुष को स्पर्श करता है, स्पर्श करके वह बाण को ग्रहण करता है, ग्रहण करके आसन से बैठता है, बैठकर बाण को कान तक खींचता है, खींच कर ऊपर आकाश में फेंकता है, ऊपर आकाश में फैंका हुआ वह बाण जिन प्राणियों यावत् सत्वों को मारता है यावत् जीवन से रहित कर देता है तब भंते! उस पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? उ. गौतम !जब वह पुरुष धनुष को ग्रहण करता है यावत् प्राणियों को जीवन से रहित कर देता है तब वह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीरों से वह धनुष निष्पन्न हुआ है वे जीव भी कायिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। इसी प्रकार धनुःपृष्ठ जीवा (डोरी), हारू (स्नायु) बाण, शर, पत्र, फल और हारू (निर्माता) भी पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। पुछे, एवं धणुं पुढे पंचहि किरियाहिं, जीवा पंचहिं, हारू पंचहिं, उसू पंचहिं, सरे, पत्तणे, फले, न्हारू पंचहिं।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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