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________________ ८८२ दस वाससहस्साई काउए टिई जहनिया होइ। तिष्णुदही पति ओयम असंखभागं च उक्कोसा ॥ तिष्णुदही पलिय-मसंखभागा जहत्रेण नीलटिई। दस उदही पलिओवम असंखभागं च उक्कोसा ॥ दस उदही पलिय असंखभागं जहन्निया होइ। तेत्तीससागराई उक्कोसा होड़ किण्हाए || एसा नेरइयाणं लेसाणं टिई उ बण्णिया होइ। तेण परं वोच्छामि तिरिय- मणुस्साण देवाणं ॥ अन्तोमुहुत्तमद्धं लेसाण ठिई जहिं जहिं जाउ । तिरियाण नराणं वा वज्जित्ता केवलं लेसं ॥ मुहुत्तद्धं तु जहन्ना उक्कोसा होइ पुव्यकोडी उ नवहि वरिसेहिं ऊणा नायव्या सुकलेसाए ॥ एसा तिरिय नराणं लेसाण ठिई उ वणिया होड़। ते परं वोच्छामि लेसाण ठिई उ देवाणं ॥ दस वाससहस्साइं किण्हाए ठिई जहन्निया होइ । पलियमसंखिज्जइमो उक्कोसा होइ किण्हाए || जाकिहा ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जहत्रेण नीलाए पलियमसंखं तु उच्कोसा ॥ जा नीलाए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमव्यहिया। जहन्नेणं काउए पलियमंसंखं च उक्कोसा ॥ तेण परं योच्छामि तेउलेसा जहा सुरगणाणं । भवणवइ - वाणमन्तर-जोइस - वेमाणियाणं च ॥ पलि ओवमं जहन्ना उक्कोसा सागरा उ दुण्हऽहिया । पलियमसंखेज्जेणं होई भागेण तेऊए ॥ दस बाससहस्साई तेऊए ठिई जहनिया होइ। दुण्णुदही पलिओम असंखभागं च उक्कोसा ॥ जाऊ ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । नेणं हा दस मुहुत्तऽहियाई च उक्कोसा ॥ जा पम्हाए ठिई खलु उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जत्रेणं सुकाए तेत्तीस मुहुत्तममहिया ॥ - उत्त. अ. ३४, गा.४० (२)-५५ ४५. सलेस्स- अलेस्स जीवाणं कायट्ठिई प. सलेस्से णं भंते! सलेसे त्ति कालओ केवचिरं होइ ? उ. गोयमा ! सलेसे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा १. अणाईए वा अपज्जवसिए, २. अणाईए वा सपज्जवसिए । प. कण्हलेस्से णं भंते ! कण्हलेस्से त्ति कालओ केवचिरं होइ ? द्रव्यानुयोग - (२) कापोतलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट स्थिति पत्योपम के असंख्यायें भाग अधिक तीन सागरोपम है। नीललेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम है। कृष्णलेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम है और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम है। यह नैरयिक जीवों की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन किया है। इसके आगे तिर्यज्यों, मनुष्यों और देवों की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूँगा। केवल शुक्ललेश्या को छोड़कर मनुष्यों और तिर्यञ्यों की जितनी भी लेश्याएँ हैं, उन सबकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तमुहूर्त है। शुक्ललेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट स्थिति नौ वर्ष कम एक करोड़ पूर्व है। मनुष्यों और तिर्यञ्चों की लेश्याओं की स्थिति का यह वर्णन किया है, इससे आगे देवों की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूँगा । (देवों की) कृष्णलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवां भाग है। कृष्णलेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, उससे एक समय अधिक नीलेश्या की जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवां भाग है। नीललेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, उससे एक समय अधिक कापोतलेश्या की जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है। इससे आगे भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की तेजोलेश्या की स्थिति का निरूपण करूँगा। तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति एक पल्योपम है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम है। तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम है। तेजोलेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है उससे एक समय अधिक पद्मलेश्या की जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति एक अन्तर्मुहुर्त अधिक दस सागरोपम है। जो पद्मलेश्या की उत्कृष्ट स्थिति है उससे एक समय अधिक शुक्ललेश्या की जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति एक अन्तर्मुहर्त अधिक तेतीस सागरोपम है। ४५. सलेश्य- अलेश्य जीवों की कायस्थिति प्र. भंते! सलेश्य जीव सलेश्य अवस्था में कितने काल तक रहता है ? उ. गौतम ! सलेश्य दो प्रकार के कहे गए हैं, १. अनादि अपर्यवसित, २. अनादि सपर्यवसित। प्र. भंते! कृष्णलेश्या वाला जीव कितने काल तक कृष्णलेश्या वाला रहता है ? यथा
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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