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________________ लेश्या अध्ययन , 3 ८. के तहारूवं समाणं वा माहणं वा अच्चासातेज्जा से य अच्चासातिए समाणे देवे परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेज्जा । तत्थ फोडा संमुच्छंति, ते फोडा भिज्जंति, तत्थ पुला संमुच्छति ते पुला भिजति ते पुला भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा । ९. केइ तहारूयं समणं वा माहणं या अच्चासातेज्जा से य अच्चासातिए समाणे परिकुविए देवे वि य परिकुविए ते दुहओ पडिण्णा तस्स तेयं णिसिरेज्जा । तत्थ फोडा संमुच्छंति, ते फोडा भिजंति, तत्थ पुला संमुच्छंति ते पुला भिज्जति, ते पुला भिण्णा समाणा तामेव सह तेयसा भासं कुज्जा । " १०. केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासातेमाणं तेयं णिसिरेज्जा, से य तत्थ णो कम्मइ णो पकम्मइ, अंचि अधिय करे, करेता, आयाहिणं पयाहिण करेड़ करेत्ता उड़ वेहास उपय, उप्पतेत्ता से णं तओ पडिहए पडिणियत्त, पडिणियत्तित्ता तमेव सरीरगं अणुदहमाणे अणुदहमाणे सह तेयसा भासं कुज्जा जहा वा गोसालस मंखलिपुत्तस्स तवे तेए। -ठाणं. अ. १०, सु. ७७६ ४३. लेस्साणं जहण्णुक्कोसा ठिई १. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना तेत्तीस सागरा मुहुत्तऽहिया। उक्कोसा होइ ठिई नायव्वा किण्हलेसाए ॥ २. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना दस उदही पलियमसंखभागमब्भहिया । उक्कोसा होइ ठिई नायव्या नीललेस्साए ॥ ३. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना तिष्णुदही पलियमसंखभागमव्महिया । उसा होइ टिई नायव्या काउलेस्साए || ४. मुत्तखं तु जहना दो उदही पलियमसंखभागमब्भहिया । उकोसा होइ ठिई नायव्वा तेउलेसाए ॥ ५. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना दस होन्ति सागरा मुहुत्तऽ हिया । उकोसा होइ टिई नायव्या पम्हलेसाए ॥ ६. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना तेत्तीस सागरा मुहुत्तऽहिया। उक्कोसा होइ टिई नायच्या सुकलेसाए ॥ एसा खलु लेसाणं ओहेणं ठिई उ वणिया होइ। ४४. चउगईसु लेस्साणं ठिई - उत्त. अ. ३४, गा. ३४-४० (१) चउसु विगई एतो लेसाण टिई तु वोच्छामि ॥ ८८१ ८. कोई व्यक्ति तथारूप - तेजोलब्धि सम्पन्न श्रमण माहन का अपमान करता है। उसके अपमान करने पर कोई देव कुपित होकर अपमान करने वाले पर तेज फेंकता है। तब उसके शरीर में स्फोट (फोड़े) उत्पन्न होते हैं वे फूटते है उससे छोटी-छोटी फुंसिया निकलती हैं, वे फूटती हैं और फूटकर उसे तेज से भस्म कर देती हैं। ९. कोई व्यक्ति तथारूप - तेजोलब्धि सम्पन्न श्रमण माहन का अपमान करता है। उसके अपमान करने पर मुनि व देव दोनों कुपित होकर उसे मारने की प्रतिज्ञा कर उस पर तेज फेंकते हैं। तब उसके शरीर में स्फोट (फोड़े) उत्पन्न होते हैं। वे फूटते हैं उनमें पुल (फुंसिया) निकलती हैं। वे फूटती हैं और फूटकर उसे तेज से भस्म कर देती हैं। १०. कोई व्यक्ति तथारूप - तेजोलब्धि सम्पन्न श्रमण माहन का अपमान करता हुआ उस पर तेज फेंकता है। वह तेज उसमें घुस नहीं सकता। उसके ऊपर-नीचे, नीचे-ऊपर आता-जाता है, दाएँ-बाएँ प्रदक्षिणा करता है। वैसा कर आकाश में चला जाता है, वहाँ से लौटकर उस श्रमण माहन के प्रबल तेज से प्रतिहत होकर वापस उसी के पास लौट आता है और लौटकर उसके शरीर में प्रवेश कर उसे उसकी तेजोलब्धि के साथ भस्म कर देता है। जिस प्रकार भगवान महावीर पर छोड़ी गई मंखलीपुत्र गोशालक की तेजोलेश्या का परिणाम हुआ। ( वीतरागता के प्रभाव से भगवान् भस्मसात् नहीं हुए। वह तेज लौटा और उसने गोशालक को ही जला डाला ) । ४३. लेश्याओं की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति १. कृष्णलेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त की है उत्कृष्ट स्थिति एक मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम की जाननी चाहिए। २. नीललेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम की जाननी चाहिये। ३. कापोतलेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागरोपम की जाननी चाहिये। ४. तेजोलेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम की जाननी चाहिये। ५. पद्मलेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति एक मुहूर्त अधिक दस सागरोपम की जाननी चाहिये । ६. शुक्ललेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट स्थिति एक मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम की जाननी चाहिए। लेश्याओं की यह स्थिति संक्षेप में वर्णित की गई है। ४४. चार गतियों की अपेक्षा लेश्याओं की स्थिति अब चारों गतियों में लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूँगा।
SR No.090159
Book TitleDravyanuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages806
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size29 MB
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