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________________ ४५३ ४३९ ४४४ सूत्र विषय पृष्ठांक | सूत्र विषय पृष्ठांक ३५. तेजस शरीर की अवगाहना, ४३१-४३३ १४. मायी का विकुर्वणा करना और उत्पत्ति का ३६. कार्मण शरीर की अवगाहना, ४३३ प्ररूपण, ४५२ ३७. सिद्धगत जीव की उत्कृष्ट जीव प्रदेशावगाहना, ४३३ १५. असंवृत अनगार की विकुर्वणा सामर्थ्य का ३८. चौबीसदंडकों में अवगाहना स्थान, ४३३ प्ररूपण, ४५२-४५३ ३९. शरीर-अवगाहना का अल्पबहुत्व, ४३४ १६. चौदहपूर्वी के हजार रूप करने का सामर्थ्य, ३. संस्थान १७. भावितात्मा अनगार का अवगाहन सामर्थ्य, ४५३-४५४ १८. पाँच प्रकार के देवों की विकुर्वणा शक्ति, ४५४-४५५ ४०. औदारिक शरीर का संस्थान, ४३५-४३७ १९. चतुर्विध देव-देवेन्द्र और सामानिकादिकों की ४१-४३. वैक्रिय शरीर का संस्थान, ४३७-४३८ ऋद्धि विकुर्वणा आदि का प्ररूपण, ४५५-४६३ ४४. आहारक शरीर का संस्थान, ४३८ २०. देवों में यथेच्छा विकुर्वणा करने नहीं करने का ४५. तेजस् शरीर का संस्थान, ४३८-४३९ सामर्थ्य, ४६३-४६४ ४६. कार्मण शरीर का संस्थान, २१. पुद्गलों के ग्रहण द्वारा विकुर्वणा करना, ४६४-४६५ ४७. छह संस्थान, ४३९ २२. पुद्गलों के ग्रहण द्वारा वर्णादि का परिणमन, ४६५-४६६ ४८. संस्थानानुपूर्वी, ४३९-४४० २३. रूपी भाव को प्राप्त देव की अरूपी विकुर्वणा ४९. चौबीसदंडकों में संस्थान, - ४४० . . के असामर्थ्य का प्ररूपण, ४६६-४६७ ५०. चौबीसदंडकों में संस्थान-निवृत्ति का प्ररूपण, ४४०-४४१ २४. वैमानिक देवों की विकुर्वणा शक्ति, ... ४६७ ४. संहनन २५. शक्र की विकुर्वणा शक्ति, ४६७-४६८ ५१. चौबीसदंडकों में जीवों का संहनन, ४४१ २६. महर्द्धिक देव का संग्राम में विकुर्वणा सामर्थ्य, ४६८ २७. देवासुर संग्राम में शस्त्र बिकुर्वणा, ४६८ १५. विकुर्वणा अध्ययन २८. नैरयिकों द्वारा विकुर्वित रूपों का प्ररूपण, ४६८-४६९ १. विकुर्वणा के विविध प्रकार, २९. वायुकाय की विकुर्वणा का प्ररूपण, ४६९-४७० २. अरूपी जीव द्वारा विकुर्वणा के असामर्थ्य का ३०. बलाहक का स्त्री आदि रूपों के परिणमन का प्ररूपण, ४७० प्ररूपण, ४४४-४४५ ३. भावितात्मा अनगार की विकुर्वणा शक्ति का । १६. इन्द्रिय अध्ययन प्ररूपण, ४४५-४४७ ४. बाह्य पुद्गलों के ग्रहण द्वारा भावितात्मा अनगार १. क. इन्द्रियों के भेदों का प्ररूपण, ४७३ की विकुर्वणा शक्ति का प्ररूपण, .. . ४४७-४४८ ख. इन्द्रियों का बाहल्य, ४७३ ५. भावितात्मा अनगार द्वारा स्त्रीरूप के विकुर्वण ... ग. इन्द्रियों की विशालता, ४७३ का प्ररूपण, ४४८ घ. इन्द्रियों के प्रदेश, ४७३ ६. भावितात्मा अनगार द्वारा ढाल-तलवार हाथ ङ. इन्द्रियों का प्रदेशावगाढ़त्व, ___में लिए हुए रूप के विकुर्वण का प्ररूपण, ४४८-४४९ च. इन्द्रियों के संस्थान, ४७३-४७४ ७. भावितात्मा अनगार द्वारा पताका लिये हुए रूप .. २. इन्द्रियों के विविध अर्थ, ४७४-४७५ के विकर्वण का प्ररूपण, ३. इन्द्रियों का स्पृष्ट-अस्पृष्ट और प्रविष्ट-अप्रविष्ट ८. भावितात्मा अनगार द्वारा यज्ञोपवीत धारण किए विषयों का ग्रहण, ४७५-४७६ हुए रूप के विकुर्वण का प्ररूपण, ४. इन्द्रियों के विषय क्षेत्र का प्रमाण, ४७६ ९. भावितात्मा अनगार द्वारा पल्हथी मारकर बैठे ५. छद्मस्थ और केवली द्वारा शब्द श्रवण के हुए रूप के विकुर्वण का प्ररूपण, ४४९-४५० . .. सामर्थ्य का प्ररूपण, ४७६-४७७ १०. भावितात्मा अनगार द्वारा पर्यकासन करके ६. इन्द्रिय-विषयों के काम और भोगिस्व का बैठे हुए रूप के विकुर्वण का प्ररूपण, . ४५० प्ररूपण, ४७७-४७८ ११. भावितात्मा अनगार का अश्व आदि रूपों के ७. पाँच इन्द्रियों के विषयों का पुद्गल परिणाम, ४७८-४७९ ____ आभियोगित्व का प्ररूपण, ४५० ८. इन्द्रियलब्धि के भेद और चौबीसदंडकों में १२. भावितात्मा अनगार द्वारा ग्रामादि के रूपों की प्ररूपण, ४७९ विकुर्वणा का प्ररूपण, ४५०-४५१ ९. इन्द्रियोपयोग काल के भेद और चौबीसदंडकों १३. विकर्वणाकारी अणगार के आराधक में प्ररूपण, ४७९ विराधकत्व का प्ररूपण, ४५१-४५२ १०. इन्द्रियों के उपयोग काल का अल्पबहुत्व, ४७९-४८० ४७३ ४४९ (८३)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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