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________________ १२९ १३० ११८ ११९ ११९ सूत्र विषय पृष्ठांक | सूत्र विषय पृष्ठांक १७. लोक में भवसिद्धिक जीवों का अभाव नहीं, ११२ ३६. पुरुषों से स्त्रियों की अधिकता का प्ररूपण, १२८ १८. जीव निर्वृत्ति के भेद-प्रभेदों का प्ररूपण, ११२-११३ ३७. पुरुषों के भेद-प्रभेद, १२८ १९. संसारी और सिद्ध जीवों में सोपचयादित्व १. तिर्यंचयोनिक पुरुष, १२८ और कालमान का प्ररूपण, ११३ २. मनुष्य पुरुष, १२८-१२९ २०. संसारी और सिद्ध जीवों की वृद्धि हानि ३.देव पुरुष, १२९ अवस्थिति और कालमान का प्ररूपण, ११४-११५ ३८. नपुंसकों के भेद-प्रभेद, २. जीव प्रज्ञापना १. नैरयिक नपुंसक, १२९ २१. विविध विवक्षा से सभी जीवों के भेद, ११५ २. तिर्यंचयोनिक नपुंसक, १२९ १. दो प्रकार, ३. मनुष्य नपुंसक, १२९-१३० ११५-११६ २. तीन प्रकार, ३९. चार प्रकार के जीव, ११७ ४०. पाँच प्रकार के जीव, १३० ३.चार प्रकार, ११७-११८ ४. पाँच प्रकार, ११८ ४१. छह प्रकार के जीव, १३० ४२. सात प्रकार के जीव, ५. छह प्रकार, १३० ४३. आठ प्रकार के जीव, १३० ६. सात प्रकार, ४४. नौ प्रकार के जीव, ७. आठ प्रकार, १३० ४५. दस प्रकार के जीव, ११९-१२० ८.नौ प्रकार, १३१ ९. दस प्रकार, ४६. चौदह प्रकार के जीव, १३१ १२० २२. जीव प्रज्ञापना के दो प्रकार, १२० ४७. चौबीसदंडकों की विवक्षा से संसार समापन्नक २३. असंसार समापन्नक जीव प्रज्ञापना के जीवों के भेद, १३१-१३२ भेद-प्रभेद, १२०-१२१ ४८. चौबीसदंडकों की विवक्षा से जीवों के द्विविधत्व का प्ररूपण, १३२-१३३ ३. सिद्ध वर्णन ४९. संसारसमापन्नक जीव प्रज्ञापना के भेद, १३३ २४. विविध विवक्षा से वर्गणा प्रकार के द्वारा ५०. एकेन्द्रिय जीव प्रज्ञापना के भेद, . १३४ सिद्धों के भेदों का प्ररूपण, १२१-१२२ ५१. पृथ्वीकायिक जीवों की प्रज्ञापना, १३४-१३५ २५. सिद्धों के अनुपम सुख का प्ररूपण, १२२ ५२. अकायिक जीवों की प्रज्ञापना, २६. सिद्धों के आदिगुणों के नाम, ५३. तेजस्कायिक जीवों की प्रज्ञापना, १३६-१३७ २७. सिद्धों की अवगाहना का प्ररूपण, १२३-१२४ ५४. वायुकायिक जीवों की प्रज्ञापना, १३७-१३८ २८. सिद्धों के अवस्थान का प्ररूपण, १२४ ५५. वनस्पतिकायिक जीवों की प्रज्ञापना, १३८ २९. सिद्धों का लक्षण, १. वृक्ष के प्रकार, ३०. एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा सिद्धों के सादि (क) एकास्थिक (एक गुठली वाले), अनादित्व का प्ररूपण, १२४ (ख) बहुत बीज वाले, १३९ ३१. सिद्ध होते हुए जीवों के संहनन संस्थान २. गुच्छ, १४० अवगाहना और आयु का प्ररूपण, १२५ ३. गुल्म, १४० ३२. विविध विवक्षाओं से एक समय में सिद्ध होने ४. लता, १४० वाले जीवों की संख्या का प्ररूपण, . १२५ ५. वल्ली , १४०-१४१ ४. जीवों के भेद-प्रभेद ६. पर्वक, १४१ ३३. संसार समापन्नक जीवों के भेद प्ररूपण का ७. तृण, १४१ उत्क्षेप, १२५-१२६ ८. वलय, १४१ ३४. संसार समापन्नक जीवों के भेदों का विस्तार ९. हरित, १४२ से प्ररूपण, १२६ १०. औषधी, १४२ १. दो प्रकार के जीव, ११. जलरुह, १४२-१४३ २. तीन प्रकार के जीव, १२६ १२. कूहण, १४३ ३५. स्त्रियों के भेद-प्रभेद, १२६ ५६. प्रत्येक शरीरी वनस्पति जीवों के स्वरूप का १. तिर्यक्योनिक स्त्रियाँ, १२६-१२७ प्ररूपण, १४३ २. मनुष्य स्त्रियाँ, १२७ ५७. साधारण शरीरी वनस्पति जीवों के स्वरूप का ३. देव स्त्रियाँ, १२७-१२८ प्ररूपण, १४३-१४४ १३६ १२३ १२४ १३९ १३९ १२६ (७६)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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