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________________ सूत्र के भेद, १८४ १८५ विषय पृष्ठांक | सूत्र विषय पृष्ठांक ५८. प्रत्येक साधारण वनस्पति शरीरी जीवों के ८१. जीव-चौबीसदंडकों में प्रत्याख्यानादि से निर्वर्तित लक्षण, १४४-१४८ आयुत्व का प्ररूपण, १७८ ५९. निगोदों के भेद-प्रभेदों का प्ररूपण, १४८-१४९ ८२. जीव-चौबीसदंडकों में सुप्त-जागृत और संवृत६०. निगोदों की द्रव्यप्रदेश की अपेक्षा संख्या का असंवृत आदि का प्ररूपण, १७८ प्ररूपण, १४९-१५०, ८३. जीव-चौबीसदंडकों में आत्मारंभादि का प्ररूपण, १७८-१७९ ६१. चार प्रकार के त्रस, १५० ८४. जीव-चौबीसदंडकों का अधिकरणी आदि पदों ६२. द्वीन्द्रिय जीवों की प्रज्ञापना, १५० द्वारा प्ररूपण, १७९-१८० ६३. त्रीन्द्रिय जीवों की प्रज्ञापना, १५१ ८५. शरीर निष्पन्न करने वाले जीवों के अधिकरणी६४. चतुरिन्द्रिय जीवों की प्रज्ञापना, १५१-१५२ अधिकरण का प्ररूपण, १८०-१८१ ६५. पंचेन्द्रिय जीवों की प्रज्ञापना के भेद, १५२ ८६. इन्द्रिय निष्पन्न करने वाले जीवों के अधिकरणी६६. नैरयिक जीवों की प्रज्ञापना, १५२ अधिकरण का प्ररूपण, १८१-१८२ ६७. तिर्यंचयोनिकों के भेद, १५२-१५३ ८७. योग-निष्पन्न करने वाले जीवों के अधिकरणी६८. पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों की प्रज्ञापना अधिकरण का प्ररूपण, १८२४ १५४ ८८. जीव-चौबीसदंडकों में बालत्व आदि का प्ररूपण, १८२ १. जलचर जीवों की प्रज्ञापना, ८९. जीव-चौबीसदंडकों में शाश्वतत्व-अशाश्वतत्व १५४-१५५ २. स्थलचर जीवों की प्रज्ञापना, का प्ररूपण, १८२-१८३ १५५-१५६ परिसॉं की प्रज्ञापना, ९०. जीव-चौबीसदंडकों में सकम्प-निष्कम्पत्व का १५६ प्ररूपण, १८३-१८४ उरःपरिसॉं की प्रज्ञापना, १५६-१५८ ९१. जीव-चौबीसदंडकों में कालादेश से सप्रदेशादि भुजपरिसॉं की प्रज्ञापना, १५८-१५९ चौदह द्वारों का प्ररूपण, ३. खेचर जीवों की प्रज्ञापना, १५९-१६० १. सप्रदेश द्वार, १८४-१८५ ६९. मनुष्य जीवों की प्रज्ञापना के भेद, १६१ २. आहारकद्वार, ७०. सम्मूर्छिम मनुष्यों की प्रज्ञापना, . ३. भव्य द्वार, १८५ ७१. गर्भज मनुष्यों की प्रज्ञापना, १६१ ४. संज्ञी द्वार, १. अंतर्दीपक, १६२ ५. लेश्या द्वार, १८५ २. अकर्मभूमिज, १६२ ६. दृष्टि द्वार, १८६ ३. कर्मभूमिज, ७. संयत द्वार, १८६ १. अनेक प्रकार के म्लेच्छ, १६२-१६३ ८. कषाय द्वार, १८६ २. अनेक प्रकार के आर्य, १६३-१७१ ९. ज्ञान द्वार, १८६ ७२. देवों की प्रज्ञापना, १७१-१७३ १०. योग द्वार, १८६-१८७ ५. जीव-चौबीसदंडक ११. उपयोग द्वार, १८७ १२. वेद द्वार, १८७ ७३. जीव-चौबीसदंडकों में चैतन्यत्व का प्ररूपण, १७३ १३. शरीर द्वार, ७४. जीव-चौबीसदंडकों में प्राण धारण करने का १४. पर्याप्ति द्वार, १८७ प्ररूपण, १७३-१७४ ९२. जीव-चौबीसदंडकों में अजीवद्रव्य के परिभोगत्व ७५. जीव-चौबीसदंडकों में प्रत्याख्यानी आदि का का प्ररूपण, १८७-१८८ प्ररूपण, ९३. जीव-चौबीसदंडकों में कामित्व, भोगित्व और ७६. जीव-चौबीसदंडकों में मूलोत्तरगुण प्रत्याख्यानी अल्पबहुत्व का प्ररूपण, १८८-१८९ आदि का प्ररूपण, १७४-१७५ ९४. जीव-चौबीसदंडक और सिद्धों में पुद्गली और ७७. जीव-चौबीसदंडकों में सर्वदेश मूलोत्तरगुण पुद्गलत्व का प्ररूपण, १८९-१९० प्रत्याख्यानी आदि का प्ररूपण, १७५-१७६ ९५. चौबीसदंडक जीवों की विविध विवक्षाओं से ७८. जीव-चौबीसदंडकों में सवीर्यत्व-अवीर्यत्व का वर्गणा का प्ररूपण, १९०-१९२ प्ररूपण, १७६-१७७ ९६. चौबीसदंडक जीवों के अनन्तर परंपरोपपन्नकादि ७९. जीव-चौबीसदंडकों में प्रत्याख्यानादि का प्ररूपण, १७७ दस प्रकार, १९२ ८०. जीव-चौबीसदंडकों में प्रत्याख्यानादि के जानने __ ९७. चौबीसदंडकों में महानवादि चार पदों का और करने का प्ररूपण, प्ररूपण, १९२-१९४ १६१ १८५ १६२ १८७ १७४ १७७ (७७)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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